Heligubbi Volcano Eruption भारत से करीब 45,000 किलोमीटर दूर अफ्रीका महाद्वीप के एक देश इथोपिया में एक ऐसी घटना घटी है, जिसका असर भारत के आसमान तक महसूस किया जा रहा है। इथोपिया के नॉर्थ ईस्ट में स्थित ‘हेलीगुब्बी’ (Heligubbi) नामक ज्वालामुखी, जो पिछले 12,000 सालों से शांत पड़ा था, 23 नवंबर को अचानक फट पड़ा। इस विस्फोट के बाद राख का एक विशाल बादल उठा, जो आसमान में 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक जा पहुंचा।
पश्चिम से बहने वाली तेज हवाओं के झोंकों के साथ यह राख का बादल हजारों किलोमीटर का सफर तय करता हुआ भारत तक आ पहुंचा। यह बादल राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र से होता हुआ दिल्ली, एनसीआर और पंजाब के ऊपर से गुजरा और फिर चीन की तरफ बढ़ गया। इस खबर ने पहले से ही गंभीर प्रदूषण और खराब एक्यूआई (AQI) से जूझ रहे दिल्ली-एनसीआर के लोगों की घबराहट और बढ़ा दी है। सबके मन में एक ही सवाल है: क्या इस ‘विदेशी’ राख से सांस लेना और मुश्किल होने वाला है?
‘सिर्फ धूल नहीं, जहर है राख में’
फोर्टिस हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट की एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर स्वाति महेश्वरी बताती हैं कि ज्वालामुखी की राख को सामान्य धूल समझना भूल होगी। जब ज्वालामुखी फटता है, तो धरती की गहराई से लावा निकलता है। इसके साथ ही बहुत बारीक पत्थर, आयरन, मैग्नीशियम जैसे खनिज और पृथ्वी की पपड़ी में पाए जाने वाले सिलिकेट्स (सिलिकॉन और ऑक्सीजन से बने चट्टानों, रेत और मिट्टी का हिस्सा) भारी मात्रा में बाहर आते हैं।
इतना ही नहीं, इस राख के साथ सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें भी निकलती हैं। इसमें प्रदूषण फैलाने वाले बेहद महीन कण यानी पीएम 2.5 और पीएम 10 भी मौजूद होते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि राख में कांच के बारीक कण भी हो सकते हैं, जो सांस के जरिए शरीर में जाने पर बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं।
‘भारत पर क्या होगा असर?’
राहत की बात यह है कि हानिकारक तत्वों से भरा यह बादल भारत के आसमान में 10 से 18 किलोमीटर की ऊंचाई से गुजरा है। यह वायुमंडल की वह परत (एटमॉस्फियर) है जहां आमतौर पर हवाई जहाज उड़ते हैं। हम जमीन के पास मौजूद हवा में सांस लेते हैं, इसलिए इतनी ऊंचाई पर उड़ रही राख का हमारी सेहत पर कोई सीधा और तुरंत असर पड़ने की आशंका कम है।
हालांकि, डॉक्टर स्वाति महेश्वरी आगाह करती हैं कि राख में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों की वजह से हवा की क्वालिटी थोड़े समय के लिए और खराब जरूर हो सकती है। शहरों में धुंध या स्मॉग की एक परत दिखाई दे सकती है।
‘दिल्ली-एनसीआर वाले बरतें खास सावधानी’
दिल्ली-एनसीआर पहले ही एक गैस चेंबर बना हुआ है। ऐसे में ज्वालामुखी की राख का यह बादल हालात को और बिगाड़ सकता है, भले ही थोड़े समय के लिए ही सही। प्रदूषण से बचने के लिए सभी को, खासकर जिन्हें फेफड़ों या दिल से जुड़ी कोई बीमारी है, उन्हें खास सावधानी बरतने की जरूरत है।
डॉक्टरों की सलाह है कि जब तक हवा की क्वालिटी सुधर नहीं जाती, तब तक घर से बाहर निकलते समय N95 मास्क का इस्तेमाल जरूर करें। जब एक्यूआई बहुत ज्यादा हो, तो बाहर निकलने से बचें। अपने घरों के खिड़की-दरवाजे बंद रखें और हो सके तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
अस्थमा और दिल के मरीजों को अपनी दवाएं समय पर लेनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर इनहेलर का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर प्रदूषण की वजह से आंखों में जलन हो या सांस लेने में कोई भी परेशानी महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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इथोपिया का हेलीगुब्बी ज्वालामुखी 12,000 साल बाद फटा, जिसकी राख का बादल भारत तक पहुंचा।
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यह बादल राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली-एनसीआर और पंजाब के ऊपर से होकर गुजरा।
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राख का बादल 10-18 किमी की ऊंचाई पर है, इसलिए जमीन पर इसका सीधा खतरा कम है।
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राख में हानिकारक गैसें और कांच के कण होते हैं, जो हवा की क्वालिटी को खराब कर सकते हैं।






