The News Air- अरसे से अधर में लटके महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ लिया है। बिल को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मोदी सरकार से मांग की है कि बजट सत्र के समाप्त होने से पहले महिला आरक्षण विधेयक पेश कर लोकसभा और विधानसभा में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।
राज्यसभा में टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन सदन के नियम 168 के तहत महिला आरक्षण विधेयक पेश करने की योजना बना रहे हैं। डेरेक ओ ब्रायन ने सोमवार को राज्यसभा की कार्रवाई शुरू होने से पहले एक ट्वीट किया, जिसमें पीएमओ को भी टैग किया है। ट्वीट में उन्होंने महिला आरक्षण बिल को पारित कराने के लिए मोदी सरकार को चुनौती दी है। सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने लिखा, ”56 इंच की छाती वाले प्रधानमंत्री को यह चुनौती है कि वे बजट सत्र के समाप्त होने से पहले महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में पेश करें। मोदी सरकार इस चुनौती को स्वीकार करे और विधेयक पर सदन के नियम 168 के तहत वोट कराएं।”
सरकार के एजेंडे में क्यों नहीं महिला सशक्तिकरण?
टीएमसी सांसद डेरेक ने रविवार को कहा था कि हमारी पार्टी समाज के विकास और राष्ट्र के विकास में महिलाओं की अहम भूमिका को बख़ूबी पहचानती है। टीएमसी लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार आपराधिक पहचान विधेयक, एमसीडी क़ानून को आगे बढ़ाना चाहती है। मेरा सवाल है कि आख़िर केंद्र सरकार के एजेंडे में महिला सशक्तिकरण क्यों नहीं हैं?
महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण कहां और कैसे?
महिलाओं को दो तरीक़े से आरक्षण देने की बात चलती है। पहला- लोकसभा और विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिला सांसदों को के लिए आरक्षित करने और दूसरा- पार्टियों के टिकट में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिले। हालांकि, बिल में राजनीतिक पार्टियों को कितनी महिलाओं को टिकट देना होगा, इसका कोई ज़िक्र नहीं है। सिर्फ़ लोकसभा और राज्यसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने की बात कही गई है।
महिला आरक्षण बिल के फ़ायदे और नुक्सान
फ़ायदा: राजनीतिक विशेषज्ञ आशुतोष का कहना है कि अगर महिला आरक्षण बिल क़ानून बन जाता है तो क़ानून बनाने में देश की आधी आबादी की पूरी भागीदारी नज़र आएगी। संसद में महिलाओं से संबंधित मुद्दे प्राथमिकता के साथ उठाए जाएंगे। क़ानून बनाते वक़्त महिलाओं को पूरी तवज्जो दी जाएगी, जबकि मौजूदा वक़्त में वोट देने में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं, लेकिन फिर भी क़ानून बनाते वक़्त उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है।
नुक्सान: अगर संसद में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलता है, तब क्या होगा? इसे ऐसे समझें-अगर एक ही सीट पर तीन पार्टियों ने महिलाओं उम्मीदवारों को टिकट दी और किन्हीं दो पार्टियों ने वहीं से किसी बड़े क़द के पुरुष नेता को चुनावी मैदान में उतार दिया। यानी कि अब 33 फ़ीसदी आबादी का सीधे-सीधे 66 फ़ीसदी पुरुषों से मुक़ाबला होगा। ऐसे में अगर पुरुष नेता जीत जाता है तो तीन पार्टियों का टिकट में महिलाओं को आरक्षण देने का कोई लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन अगर कोई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होती है तो सभी पार्टियां वहाँ अपनी महिला उम्मीदवार को ही उतारेंगी। ऐसे में किसी भी पार्टी से जीते, लेकिन महिला उम्मीदवार ही जीतेगी।
क्या राजनीतिक घराने की महिलाएं उठाएंगी फ़ायदा?
महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वाले कुछ लोगों का कहना है कि पारित होने के बाद विधानसभा और लोकसभा की एक तिहाई सीटें सिर्फ़ महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। ऐसे में राजनीतिक घराने के लोग अपनी बेटियों और बहुओं को यहां से उतार सकते हैं, जिससे राजनीति में परिवारवाद का चलन और बढ़ेगा।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महिलाएं सिर्फ़ चुनाव लड़ेंगी और उनके पिता या पति काम करेंगे, बिल्कुल वैसे जैसे सरपंच और प्रधान चुनाव में होता है। इसका ज्वलंत उदाहरण उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा नेता दयाशंकर सिंह और उनकी पत्नी स्वाति सिंह हैं। स्वाति की राजनीति में एंट्री भले ही पति की राजनीति बचाने के लिए हुई थी, लेकिन उन्होंने ख़ुद को साबित किया और योगी सरकार में एक मंत्री के तौर अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी निभाई।
क्या संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ने का मिलेगा लाभ?
महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने के लिए महिला सांसद समय-समय पर मांग करती रही हैं। सवाल यह है कि अगर संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ ज़ाती है तो क्या किसी को बिल को पारित कराना आसान होगा? इसके जवाब में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, मुंबई के महिला अध्ययन विभाग की प्रोफेसर आशा सिंह कहती हैं कि ऐसा नहीं है। मान लीजिए कि अभी लोकसभा में 15 फ़ीसदी महिलाएं हैं और वे किसी बिल को पास कराना चाहती हैं, लेकिन उनकी पार्टी उस विधेयक के समर्थन में नहीं है तो पार्टी लाइन महिला सांसदों के आड़े आएगी। ऐसे में वे इस बिल के समर्थन में वोट करने से बचना चाहेंगी।