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Tirupati Balaji Temple: जानें ‘सप्तगिरि’ का रहस्य, 120 साल जीने का वो दिव्य आशीर्वाद

तिरुपति बालाजी मंदिर, जहां भगवान विष्णु वेंकटेश्वर रूप में विराजमान हैं। जानें मंदिर का गौरवशाली इतिहास, सप्तगिरि पहाड़ियों का महत्व और संत रामानुजाचार्य से जुड़ी कथा।

The News Air Team by The News Air Team
शनिवार, 1 नवम्बर 2025
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Vekateswara Temple
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Tirupati Balaji Temple : आंध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मंदिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध और धनी मंदिरों में से एक है। यह मंदिर तिरुमला पर्वत पर स्थित है, जहां हर साल करोड़ों भक्त भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, के दर्शन मात्र से ही भक्तों के पाप धुल जाते हैं और उन्हें जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने एक समय स्वामी पुष्करणी नामक पवित्र सरोवर के तट पर निवास किया था, जो तिरुमला पर्वत के पास है। माना जाता है कि इसी पावन स्थल पर भगवान विष्णु ने मानव जाति के कल्याण के लिए वेंकटेश्वर अवतार धारण किया।

Vekateswara Temple 1

क्या है ‘सप्तगिरि’ पहाड़ियों का रहस्य?

तिरुपति के चारों ओर फैली सात पहाड़ियां अपने आप में अद्भुत हैं। इन पहाड़ियों को शेषनाग के सात फनों का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इन्हें ‘सप्तगिरि’ (सात पवित्र पहाड़ियां) कहा जाता है। इन्हीं सात पहाड़ियों में से सातवीं पहाड़ी को ‘वेंकटाद्री’ कहते हैं, और इसी पर भगवान वेंकटेश्वर स्वामी का भव्य मंदिर विराजमान है। इसिलए इस मंदिर को “सप्तगिरि का मुकुट” भी कहा जाता है।

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संत रामानुजाचार्य और 120 साल का आशीर्वाद

मंदिर से एक और प्रसिद्ध कथा 11वीं शताब्दी के महान वैष्णव संत रामानुजाचार्य की जुड़ी है। कहा जाता है कि जब वे अपनी भक्ति और तपस्या के साथ सातवीं पहाड़ी ‘वेंकटाद्री’ पर चढ़े, तो उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्रीनिवास (वेंकटेश्वर) उनके समक्ष प्रकट हुए। भगवान ने रामानुजाचार्य को आशीर्वाद दिया कि वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहेंगे और धर्म व भक्ति का प्रसार करेंगे। संत रामानुजाचार्य ने अपना पूरा जीवन भगवान वेंकटेश्वर की महिमा का प्रचार करने में समर्पित कर दिया।

9वीं सदी से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब कांचीपुरम के पल्लव वंश ने यहां शासन स्थापित किया। उस समय यह एक छोटा मंदिर था। बाद में, चोल और पांड्य राजवंशों के संरक्षण में भी मंदिर का विकास हुआ।

विजयनगर साम्राज्य में मिली भव्यता

मंदिर को असली भव्यता और प्रसिद्धि 15वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल में मिली। राजा श्रीकृष्णदेवराय ने मंदिर के निर्माण और जीर्णोद्धार में विशेष योगदान दिया। उन्होंने मंदिर को स्वर्ण कलश, रत्नजड़ित आभूषण और भारी दान देकर इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया, जिससे इसकी ख्याति पूरे भारत में फैल गई।

कैसे होता है मंदिर का प्रबंधन?

आजादी से पहले, 1933 में मद्रास सरकार ने मंदिर के प्रबंधन को अपने नियंत्रण में ले लिया था। इसके बाद मंदिर के संचालन के लिए एक स्वतंत्र संस्था, “तिरुमाला-तिरुपति देवस्थानम” (TTD) का गठन किया गया। 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य बनने के बाद इस समिति का पुनर्गठन किया गया, और तब से TTD ही मंदिर की पूजा व्यवस्था, दान, निर्माण और श्रद्धालुओं की सुविधाओं की पूरी जिम्मेदारी संभालती है।


मुख्य बातें (Key Points):
  • तिरुपति बालाजी मंदिर तिरुमला की सातवीं पहाड़ी ‘वेंकटाद्री’ पर स्थित है, जिसे ‘सप्तगिरि’ कहते हैं।
  • भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो भक्तों को पापों से मुक्ति दिलाते हैं।
  • 11वीं सदी के संत रामानुजाचार्य को यहां भगवान श्रीनिवास ने 120 साल तक धर्म प्रचार करने का आशीर्वाद दिया था।
  • 15वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के राजा श्रीकृष्णदेवराय ने मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान किया।

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