The News Air (नई दिल्ली)-किसान आंदोलन के आगे 14 महीने बाद मोदी सरकार झुक गई, लेकिन सीधे किसान नेताओं को क्रेडिट नहीं मिला। बिना बातचीत के ही पीएम मोदी ने सीधे इसकी घोषणा कर दी। अब किसान नेता भी BJP को इसका बेनिफिट नहीं लेने देना चाहते। यही वजह है कि कृषि क़ानून वापस हुए तो किसान नेताओं ने आंदोलन को जारी रखने के लिए MSP, बिजली बिल में अमेंडमेंट और सीड बिल की नई मांगें उठा दी हैं।
MSP, बिजली और सीड बिल पर जारी रहेगा आंदोलन : टिकैत
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हमारा आंदोलन अभी स्थगित नहीं होगा। जब तक संसद में इसे रद्द नहीं किया जाता और MSP पर गारंटी क़ानून नहीं लाया जाता। जब तक हमारी भारत सरकार से बातचीत नहीं होती। किसी ने बड़ा दिल नहीं दिखाया है। बिजली अमेंडमेंट बिल और सीड बिल आ रहा है, इसलिए यह संघर्ष और लंबा चलेगा। हमने सरकार को बातचीत के लिए कहा है, तब तक किसान नहीं लौटेंगे।
लाठियां बरसाने और आतंकवादी कहने वालों को नहीं भूलेंगे किसान : यादव
किसान नेता योगेंद्र यादव ने भाजपा को इसके बेनिफिट के सवाल पर कहा कि जिन्होंने किसानों पर लाठियां बरसाईं। उन्हें गालियां दीं। उन्हें आतंकवादी तक कहा, उसे किसान कैसे भूल सकते हैं। भाजपा को सिर्फ़ चुनाव और वोटों की बात समझ आती है। दिल्ली बॉर्डर से किसान घर लौटेंगे या नहीं, यह ज़िम्मा उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा की मीटिंग पर छोड़ दिया।
चुनाव वाले 5 राज्यों में पंजाब और यूपी अहम
देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब शामिल हैं। किसानों के लिहाज़ से सबसे अहम राज्य पंजाब और यूपी हैं। पंजाब में अधिकांश किसान और लोग भी आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में थे। इसलिए अगर आंदोलन जारी रहा तो पंजाब में भाजपा का बड़ा सियासी नुक्सान होगा। वहीं उत्तर प्रदेश सीटों के लिहाज़ से बड़ा प्रदेश है, जिसका लोकसभा चुनाव पर भी बड़ा असर रहता है। किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले अधिकांश नेता इन्हीं 2 राज्यों से हैं। अगर आंदोलन जारी रहा तो भाजपा के लिए सियासी मुश्किल जारी रहेगी।
चर्चा है कि कुछ किसान नेता आंदोलन को 5 राज्यों में होने और 2024 तक जिन्दा रखने की कोशिश में हैं, ताकि लोकसभा चुनाव में भी इस मुद्दे पर भाजपा को घेरा जा सके। पंजाब के किसान नेता इन्हीं क़ानूनों को वापस लेने की ज़िद पर अड़े हुए थे। उनकी तरफ़ से पीएम मोदी के कृषि क़ानून वापस लेने के फ़ैसले पर आंदोलन को लेकर सहमति नज़र आ रही है।