Tiger Parenting Effects on Children: क्या आप भी अपने बच्चों पर जरूरत से ज्यादा सख्त हैं और हर बात में उनसे परफेक्शन की उम्मीद करते हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि यह टाइगर पेरेंटिंग आपके बच्चे की मानसिक सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। नारायणा हॉस्पिटल गुरुग्राम के सुकून विभाग में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉक्टर रूपिका धुरजति ने बताया है कि इस तरह की सख्त पेरेंटिंग से बच्चों में आत्मविश्वास की कमी, एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं और इसका असर उनके पूरे जीवन पर पड़ता है।
एक कहानी जो हर घर की है
स्कूल में एक लड़की थी जो पढ़ने में बहुत होशियार थी। एक बार साइंस में उसके 50 में से 48 नंबर आए। आमतौर पर पेरेंट्स इतने अच्छे मार्क्स सुनकर खुश होते हैं लेकिन उसके पापा ने उसकी क्लास लगा दी। बोले कि 48 तो ठीक है पर ये दो नंबर क्यों कटे और ठीक से पढ़ती क्यों नहीं हो। उन्होंने फैसला सुना दिया कि अब से आधे घंटे के लिए भी फोन नहीं मिलेगा और बिल्कुल खेलने नहीं जाओगी। ऐसी पेरेंटिंग को ही टाइगर पेरेंटिंग कहते हैं।
क्या है टाइगर पेरेंटिंग?
डॉक्टर रूपिका बताती हैं कि टाइगर पेरेंटिंग एक तरह की अथॉरिटेरियन पेरेंटिंग होती है जिसमें बच्चों पर बहुत स्ट्रिक्ट नियम लगाए जाते हैं। पढ़ाई और परफॉर्मेंस को लेकर एक्सपेक्टेशंस बहुत हाई रहती हैं और बच्चों को फ्रीडम या छूट बहुत कम दी जाती है। ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चों पर जरूरत से ज्यादा दबाव डालते हैं चाहे वो क्लास में अव्वल आने का हो या खेल में गोल्ड मेडल जीतने का।
बच्चों की मानसिक सेहत पर क्या असर पड़ता है?
डॉक्टर रूपिका के मुताबिक टाइगर पेरेंटिंग की वजह से बच्चों का सेल्फ एस्टीम यानी आत्मसम्मान कम होने लगता है क्योंकि वो अपने आप को कभी अच्छा नहीं मान पाते हैं। उन्हें हमेशा लगता है कि वो अपने पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। परफॉर्मेंस एंग्जायटी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और हमेशा टेंशन रहती है कि मार्क्स दूसरों के मुकाबले ठीक आएंगे या नहीं। दूसरे बच्चों के साथ तुलना भी उन्हें स्ट्रेस में डालने लगती है।
एंग्जायटी और डिप्रेशन का खतरा
जिस उम्र में बच्चे की पहचान बन रही होती है उस समय पर एंग्जायटी बहुत ज्यादा होती है क्योंकि वे अपने आप को किसी भी डिसीजन लेने में सक्षम नहीं महसूस करते। डिप्रेशन भी काफी कॉमन रहता है क्योंकि वो अपने इमोशंस को अंदर दबाने लगते हैं और किसी से शेयर नहीं कर पाते कि उन्हें कैसा महसूस हो रहा है।
क्या सख्ती से पढ़ाई बेहतर होती है?
बहुत से पेरेंट्स को लगता है कि स्ट्रिक्ट डिसिप्लिन या बहुत नियम कानून घर में रखने से बच्चों की परफॉर्मेंस इंप्रूव हो जाएगी और मार्क्स बेहतर आने लगेंगे लेकिन डॉक्टर रूपिका कहती हैं कि यह सच नहीं है। जब बहुत लंबे समय तक स्ट्रिक्टनेस घर में रहती है और पढ़ाई को लेकर एक्सपेक्टेशन ज्यादा रहती हैं तो बच्चे बर्न आउट होने लगते हैं और उनकी परफॉर्मेंस इससे प्रभावित होती है। वो अपने आप पर कभी भरोसा नहीं कर पाते कि वे बेहतर कर पाएंगे और हमेशा डाउट बना रहता है। किसी भी प्रॉब्लम में खुद से हल ढूंढने और क्रिएटिव सॉल्यूशन पर आने की क्षमता भी कम होने लगती है।
किस उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान?
डॉक्टर बताती हैं कि दो उम्र के बच्चों पर टाइगर पेरेंटिंग का सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है। पहला है टॉडलर की उम्र यानी जब बच्चा चलना शुरू करता है उससे लेकर 7 साल की उम्र तक क्योंकि इस समय ब्रेन की डेवलपमेंट सबसे ज्यादा होती है। जब इस उम्र में बच्चे को ऐसा वातावरण मिलता है जिसमें वो सेफ महसूस कर सके और खेलने पढ़ाई और नई चीजें सीखने की फ्रीडम हो तो ब्रेन की ग्रोथ बहुत अच्छी होती है। लेकिन अगर इसी दौरान हर चीज के लिए मना किया जाए और कोई खुली छूट ना मिले तो बच्चा डरा सहमा रहने लगता है और हर चीज में खुद पर डाउट करने लगता है।
दूसरी उम्र है 13 से 19 साल यानी टीनएज जब पर्सनालिटी डेवलप हो रही होती है। इस उम्र में बहुत ज्यादा स्ट्रिक्ट डिसिप्लिन की वजह से बच्चे पेरेंट्स से बातें शेयर करना बंद कर देते हैं और रिबेल करने लगते हैं। बिना बताए झूठ बोलना या ऐसी चीजें करना जिनके लिए मना किया गया है यह सब शुरू हो जाता है। इसी दौरान एंग्जायटी और डिप्रेशन भी बहुत ज्यादा देखने को मिलता है।
बैलेंस्ड पेरेंटिंग कैसे अपनाएं?
डॉक्टर रूपिका कहती हैं कि हर बच्चा अलग होता है और उसके ऊपर डिपेंड करता है कि पेरेंटिंग कैसी होनी है। फ्लेक्सिबिलिटी रखनी चाहिए कि बच्चे के हिसाब से डिसिप्लिनिंग ज्यादा या कम करें और उसकी उम्र के हिसाब से पेरेंटिंग को मॉडिफाई करते रहें।
सामान्य तौर पर एक स्ट्रक्चर जरूरी है जैसे नींद का टाइमिंग एक कंसिस्टेंट रखना, खाने के टाइमिंग्स कंसिस्टेंट रखना और खेलने का टाइम रोज रहना। ये चीजें ब्रेन की ग्रोथ को इंप्रूव कराती हैं। अगर कोई स्ट्रक्चर नहीं रहता तो बच्चे को कंफ्यूजन रहती है और डिसिप्लिन भी चला जाता है।
सपोर्टिव एनवायरमेंट देना जरूरी
बच्चे को अपने इमोशंस बताने के लिए खुली छूट और खेलने तथा क्रिएटिविटी दिखाने का समय देना चाहिए। जब बच्चा कुछ बातें बता रहा हो तब जजमेंट से नहीं बल्कि क्यूरियोसिटी से सुनना चाहिए। बहुत ज्यादा कंट्रोल और नियम नहीं रखने चाहिए, बच्चों को फ्रीडम देनी चाहिए, उनकी तुलना दूसरे बच्चों के साथ नहीं करनी चाहिए और एक्सपेक्टेशंस रियलिस्टिक रखनी चाहिए।
एफर्ट को एप्रिशिएट करें, रैंक को नहीं
डॉक्टर का कहना है कि जब कोई भी चीज परफॉर्मेंस रिलेटेड हो जाती है तो बच्चों को लगने लगता है कि उन्हें प्यार तभी मिलेगा जब वे फर्स्ट आएंगे। यह बात बदलनी बहुत जरूरी है। बच्चे ने जो मेहनत की है ट्रेनिंग में, प्रैक्टिस में और पढ़ाई में उसे एप्रिशिएट करना चाहिए न कि रैंक और नंबर्स को। जब एफर्ट एप्रिशिएट होती है तो पढ़ाई में एंजॉयमेंट आती है और मजा आने लगता है। अगर यह नहीं होगा तो आगे जाकर पढ़ाई से डर लगने लगेगा।
आम परिवारों के लिए सीख
बच्चों पर सख्ती बरतने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इसकी भी अति नहीं होनी चाहिए। वरना बच्चा खुलकर बात नहीं करेगा और पढ़ाई तथा खेलने कूदने में उसका मन लगना बंद हो जाएगा। कभी नरम कभी सख्त यही सही तरीका है।
मुख्य बातें (Key Points)
- टाइगर पेरेंटिंग से बच्चों में सेल्फ एस्टीम कम होता है और एंग्जायटी व डिप्रेशन बढ़ता है
- टॉडलर (1-7 साल) और टीनएज (13-19 साल) के बच्चों पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है
- सख्त डिसिप्लिन से पढ़ाई नहीं सुधरती बल्कि बच्चे बर्न आउट होते हैं और परफॉर्मेंस गिरती है
- रैंक की जगह बच्चे की मेहनत को एप्रिशिएट करें और सपोर्टिव माहौल दें






