चंडीगढ़, 19 फरवरी (The News Air) : 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासत गरमा गई है। सभी राजनीतिक दल मुख्य रूप से अपने-अपने उम्मीदवारों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस बार हर पार्टी के लिए उम्मीदवारों का चयन करना किसी चुनौती से कम नहीं है। पिछले दिनों खबर आ रही थी कि सत्ताधारी दल अपने 5 मंत्रियों को लोकसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है, जिनमें गुरमीत सिंह खुड्डियाँ, बलजीत कौर, कुलदीप धालीवाल, मीत हेयर और अमन अरोड़ा के नाम चर्चा में थे। इसके अलावा कुछ विधायकों पर भी आम आदमी पार्टी दांव खेलने की सोच रही है।
नई जानकारी के मुताबिक फिलहाल सत्ता पक्ष ने इस सुझाव पर रोक लगा दी है। शायद आम आदमी पार्टी को लगता है कि मंत्री बड़ा चेहरा हैं और लोकसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब हो सकते हैं, क्योंकि व्यक्तित्व आधारित राजनीति को सफलता मिल सकती है, लेकिन पार्टी यह भी सोच रही है कि जीत के बाद उनके एमएलए सीट पर चुनाव होगा, जिसके लिए पार्टी को नया उम्मीदवार ढूँढना पड़ेगा। इसके अलावा सत्ताधारी दल नहीं चाहता कि लोकसभा चुनाव के बाद कोई और उपचुनाव हो। इसके साथ ही एक तर्क और दिया जा रहा है कि मान लो गुरमीत खुड्डी को चुनावी मैदान में उतार दिया जाता है तो जीतने के बाद लंबी हलका फिर से खाली हो जाएगा, जहाँ उपचुनाव की तैयारी करनी पड़ेगी। ऐसे में पार्टी कभी भी प्रकाश सिंह बादल की मुश्किल से जीती हुई सीट पर दांव नहीं लगाना चाहती। गौरतलब है कि लंबी विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पार्टी यहाँ पर कोई नया चेहरा ही चुनावी मैदान में उतारेगी।
इसी तरह, फिरोजपुर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो जलालाबाद के विधायक जगदीप सिंह गोल्डी के नाम पर चर्चा चल रही थी, लेकिन पार्टी को यह भी लगता है कि लंबी की तरह जलालाबाद भी काफी महत्त्वपूर्ण सीट है। जिसे सुखबीर सिंह बादल के गढ़ के रूप में जाना था और पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इस सीट पर जीत हासिल कर अपनी उपलब्धियों का नया रिकॉर्ड बनाया था। इसलिए पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि इस सीट पर कोई दांव खेला जाए. ऐसे में यह स्वाभाविक है कि सत्ताधारी दल यहाँ पर कोई नया उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में उतारेगा।
साफ है कि सरकार उपचुनाव से दूर रहना चाहती है, जिसके चलते मौजूदा मंत्री चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। वहीं, कई मंत्री भी पार्टी के अंदरुनी चुनाव नहीं लड़ने के इस फैसले से खुश नजर आ रहे है। क्योंकि जैसे ही चुनाव लड़ने की बात मंत्रियों तक पहुँची और अपने-अपने क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाने का निर्देश दिया गया तो मंत्रियों ने भी नफा-नुकसान परखना शुरू कर दिया। मंत्रियों को डर था कि अगर चुनाव में सफलता नहीं मिली तो वे लोकसभा की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाएंगे और विधायकी भी चली जाएगी, लेकिन पार्टी के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए वे खुलकर ना कहने से बच रहे थे।