Zoroastrianism in India एक ऐसी ऐतिहासिक गाथा है जो धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक समावेश और भारत की उदार परंपरा का साक्षात प्रमाण है। आज जिन पारसी (Parsi) लोगों को हम भारत में बेहद सम्मान और रईसी के साथ देखते हैं, वे कभी ईरान (Iran) से सताए जाने के कारण भारत आने को मजबूर हुए थे। यह समुदाय भारत की औद्योगिक प्रगति में रतन टाटा (Ratan Tata), जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) जैसी विभूतियों के रूप में एक अमिट छाप छोड़ चुका है।
पारसी धर्म (Zoroastrianism) की स्थापना छठी शताब्दी ईसा पूर्व में पैगंबर जरथुस्त्र (Prophet Zarathustra) ने की थी। उस समय ईरान को पारस (Persia) कहा जाता था और यह धर्म वहीं फला-फूला। पारसी धर्म एकेश्वरवादी धर्मों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इस धर्म में अग्नि पूजा (Fire Worship) को विशेष स्थान प्राप्त है और माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को न्याय का सामना करना होता है।
तीसरी शताब्दी में पारस में ससैनियन साम्राज्य (Sassanian Empire) का स्वर्ण युग था और पारसी धर्म चरम पर था। लेकिन 652 ईस्वी में जब अरब के मुसलमानों (Arab Muslims) ने पारस पर हमला किया तो हालात पूरी तरह बदल गए। इस्लामिक शासन की स्थापना के बाद पारसियों पर जजिया कर (Jizya Tax) लगाया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाने लगा। इससे तंग आकर पारसी लोग अपनी मातृभूमि छोड़कर भारत (India) की ओर निकल पड़े।
किस्सा-ए-संजान (Qissa-i-Sanjan) नामक ऐतिहासिक दस्तावेज में उल्लेख मिलता है कि पारसी समाज ने यह निर्णय लिया कि यदि वे पारस में रुके तो उनकी पहचान और बुद्धिमत्ता समाप्त हो जाएगी। इसलिए वे समुद्री रास्ते से भारत आए। लगभग 1200 साल पहले पारसी लोग गुजरात (Gujarat) के तट पर पहुंचे, जहां एक हिंदू राजा का शासन था। प्रारंभ में राजा ने पारसियों को बसने की अनुमति नहीं दी, लेकिन एक पारसी पुजारी ने राजा को एक उदाहरण देकर समझाया।
पुजारी ने दूध के गिलास में चीनी डालकर यह दर्शाया कि पारसी समाज भारतीय संस्कृति में उसी तरह घुल-मिल जाएगा जैसे दूध में चीनी। यह उदाहरण राजा को भा गया और उसने पारसियों को बसने की अनुमति दे दी। हालांकि, उनसे यह शर्त रखी गई कि वे भारतीय संस्कृति को अपनाएंगे, भारतीयों की तरह कपड़े पहनेंगे और उनकी भाषा में बातचीत करेंगे। यहीं से पारसी समुदाय का भारत में एक नया अध्याय शुरू हुआ।
आज पारसी समाज भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, समर्पण और समृद्धि का प्रतीक है। उन्होंने देश की आर्थिक, औद्योगिक और सामाजिक व्यवस्था को मजबूती देने में बड़ी भूमिका निभाई है। भारत में उनका आगमन न केवल एक शरणार्थी कथा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत हमेशा से ही विविधता को गले लगाने वाला देश रहा है।