Eggoz Eggs Cancer Controversy : सोचिए, सुबह ब्रेकफास्ट के लिए आपने दो अंडे उबाले और तभी आपके फोन पर एक वीडियो आता है जो कहता है कि अंडे खाने से कैंसर हो सकता है। यही डर अभी करोड़ों भारतीयों के मन में बैठ गया है। एगोस ब्रांड के अंडों में कथित तौर पर एक खतरनाक केमिकल मिलने का दावा किया गया है जो डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है, इम्यून सिस्टम कमजोर कर सकता है और रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर भी असर डाल सकता है।
कैसे शुरू हुआ यह विवाद?
इस पूरी कहानी की शुरुआत 7 दिसंबर को हुई। एक इंडिपेंडेंट कंज्यूमर अवेयरनेस YouTube चैनल “ट्रस्टिफाइड” ने एक वीडियो अपलोड किया।
वीडियो का टाइटल था – “Eggs Exposed: Full Lab Test Reveals Hidden Risk, Antibiotics and Safety Levels, Contaminated and Safety Levels”।
इस वीडियो में बताया गया कि एगोस ब्रांड के अंडों का ब्लाइंड लैब टेस्ट कराया गया। अंडे आसानी से टूट सकते थे इसलिए सैंपल कलेक्शन ट्रस्टिफाइड ने नहीं बल्कि लैब ने खुद किया।
लैब टेस्टिंग में क्या निकला?
वीडियो में छह लेवल की टेस्टिंग का पूरा रिपोर्ट कार्ड दिखाया गया। लेवल वन से लेवल पांच तक सब कुछ बिल्कुल ठीक निकला। एगोस के अंडों में प्रोटीन, कार्ब्स, फैट, हैवी मेटल, पेस्टिसाइड, माइक्रोबायोलॉजिकल पैरामीटर्स और एंटीबायोटिक – सभी का एनालिसिस हुआ।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन पांचों स्टेज में एगोस के अंडे पूरी तरह क्लियर मिले। हर पैरामीटर सेफ लिमिट के अंदर था। यानी शुरुआती टेस्ट रिपोर्ट तक कहीं कोई रेड फ्लैग नहीं था।
लेवल 6 पर पलटी कहानी
असली मुसीबत शुरू हुई लेवल सिक्स पर जब बैन ड्रग्स की जांच की गई। ये ड्रग्स लंबे समय से पोल्ट्री बिजनेस में अवैध तरीके से इस्तेमाल होते रहे हैं। क्यों? क्योंकि ये बहुत सस्ते पड़ते हैं और मुर्गियों में इंफेक्शन और बीमारियों को कंट्रोल करते हैं जिससे एग प्रोडक्शन लगातार बना रहता है।
लेकिन समस्या यह है कि इनके मेटाबोलाइट्स कार्सिनोजेनिक यानी कैंसरजनक माने जाते हैं। इसलिए कई देशों ने इन दवाओं को पूरी तरह बैन कर दिया है।
एगोस के अंडों में क्या मिला?
ट्रस्टिफाइड ने दावा किया कि एगोस के अंडों में नाइट्रोफ्यूरन का मेटाबोलाइट AOZ अच्छी-खासी मात्रा में पाया गया। उन्होंने बताया कि लैब से रिचेक भी कराया लेकिन रिजल्ट वही आया।
यह दावा इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि एगोस अपनी वेबसाइट पर साफ तौर पर लिखता है – “No Antibiotics Used” यानी हम एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं करते।
डॉक्टर ने उठाए सवाल
इस विवाद के बीच मुंबई के ऑर्थोपेडिक सर्जन और स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. मनन बोरा ने भी प्रतिक्रिया दी। 9 दिसंबर को अपने Instagram हैंडल पर उन्होंने एक वीडियो डाला। उन्होंने ट्रस्टिफाइड की रिपोर्ट को चिंताजनक बताया।
डॉ. बोरा ने कहा कि रिपोर्ट में AOZ 0.73 मिला है जबकि इसे 0.4 से नीचे होना चाहिए। कई देशों में तो इसकी लिमिट जीरो है। उन्होंने FSSAI से भी सवाल पूछा – दुनिया में जहां इसकी टॉलरेंस जीरो है वहां भारत में इसे अलाउ कैसे किया जा रहा है?
लेकिन डॉक्टर ने एक अहम बात भी कही
डॉ. मनन बोरा ने साफ किया कि यह सिर्फ एक ब्रांड और एक बैच का मामला है। इसके आधार पर यह कहना गलत है कि सभी अंडों से कैंसर हो सकता है। यानी बाजार में बिक रहे बाकी अंडों को इससे जोड़ना सही नहीं होगा। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी और FSSAI दोनों को इस पर स्पष्ट जवाब देना चाहिए।
एगोस कंपनी ने क्या कहा?
एगोस न्यूट्रिशन के को-फाउंडर अभिषेक नेगी ने कहा कि उन्हें इस वीडियो की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा – “हम अपने उपभोक्ताओं को भरोसा दिलाते हैं कि हमारे अंडे सुरक्षित हैं और FSSAI के तय मानकों के अनुरूप हैं।”
अभिषेक ने बताया कि FSSAI ने 1 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम की लिमिट तय की है। इससे ऊपर होने पर ही एक्शन लिया जाता है। जबकि ट्रस्टिफाइड की रिपोर्ट में यह नाइट्रोफ्यूरन मेटाबोलाइट 0.73 निकला है जो FSSAI की सेफ लिमिट से कम है।
LOQ को गलत समझने का दावा
एगोस के को-फाउंडर ने एक अहम बात बताई। उन्होंने कहा कि वीडियो में क्वांटिफिकेशन की सीमा यानी Limit of Quantification (LOQ) को गलत समझा गया है।
LOQ 0.4 का मतलब है कि लैब न्यूनतम कितनी मात्रा माप सकती है। यह कोई सेफ लिमिट या थ्रेशहोल्ड नहीं है। असल में इसकी सेफ लिमिट जीरो होती है। FSSAI, USA, जापान, सिंगापुर समेत सभी नियामक संस्थाओं ने इसे प्रतिबंधित किया है।
भारत में जीरो लिमिट क्यों संभव नहीं?
अभिषेक ने बताया कि FSSAI समझता है कि मौजूदा परिस्थितियों में जीरो लिमिट आना संभव नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी, हवा और अपस्ट्रीम एग्रीकल्चर – जैसे मक्का, सोया, चावल, गेहूं जो हेन फीड में यूज होते हैं – उनमें दवाइयां इस्तेमाल होती हैं और वो कंटैमिनेट हो जाते हैं। इस वजह से भारत के संदर्भ में जीरो आना संभव नहीं है।
कंपनी ने मांगी जानकारी
अभिषेक ने दावा किया कि उन्होंने ट्रस्टिफाइड को ईमेल करके पूछा है। उन्होंने बैच नंबर, ऑर्डर करने का तरीका, चेन ऑफ कस्टडी और इस्तेमाल की गई लैब की जानकारी मांगी है।
साथ ही पूछा कि क्या वह लैब NABL मान्यता प्राप्त थी? लेकिन अभी तक ट्रस्टिफाइड की ओर से कोई जवाब नहीं आया।
एगोस की टेस्टिंग और रिपोर्ट
अभिषेक ने बताया कि एगोस देश भर में अपने 20-25 फार्म के सभी अंडों की टेस्टिंग करा रहा है। यह टेस्टिंग केवल FSSAI की सर्टिफाइड NABL लैब से ही होगी।
कंपनी ने सितंबर और नवंबर की लैब टेस्ट रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर शेयर की है जिसमें नाइट्रोफ्यूरन मेटाबोलाइट सेफ लिमिट में पाया गया। कंपनी का कहना है कि जल्द ही वह ताजा रिपोर्ट भी शेयर करेंगे।
ट्रस्टिफाइड का नया स्टैंड
विवाद बढ़ने पर ट्रस्टिफाइड ने 9 दिसंबर को एक और वीडियो बनाया। इसमें उन्होंने साफ किया कि एक ब्रांड के अंडे की टेस्टिंग के आधार पर यह कहना गलत है कि सभी तरह के अंडे खाने से कैंसर हो सकता है।
उन्होंने बताया कि अब वो ब्रांडेड और नॉन-ब्रांडेड दोनों तरह के अंडों की टेस्टिंग कराएंगे और सभी की कंबाइंड लैब रिपोर्ट के साथ एक नया वीडियो लाएंगे।
भारत और दुनिया के नियमों में फर्क
ट्रस्टिफाइड ने कहा कि एगोस के अंडों में AOZ नाम का केमिकल मिला है। लेकिन सिर्फ इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि एगोस के अंडे फेल हैं। क्यों? क्योंकि भारत में FSSAI की गाइडलाइन के हिसाब से यह रिजल्ट फेल नहीं माना जाता।
टेस्ट रिपोर्ट में एगोस के अंडों में AOZ की मात्रा 0.73 mcg पाई गई। अन्य देशों की गाइडलाइन के मुताबिक यह मात्रा बैन है लेकिन भारत के नियमों के अनुसार इसे फेल नहीं कहा जा सकता।
FSSAI की चुप्पी
नाइट्रोफ्यूरन मेटाबोलाइट की सेफ लिमिट और FSSAI का पक्ष जानने के लिए 9 दिसंबर को ईमेल किया गया। तीन सवाल पूछे गए – नाइट्रोफ्यूरन की सेफ लिमिट कितनी तय की है? क्या भारत में इसकी टेस्टिंग होती है? और एगोस वाले मामले पर FSSAI का आधिकारिक जवाब क्या है? लेकिन अभी तक FSSAI की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।
आम आदमी पर क्या असर?
यह विवाद सीधे आपकी रसोई से जुड़ा है। अंडा भारतीय घरों में प्रोटीन का सबसे सस्ता और आसान स्रोत माना जाता है। अगर ब्रांडेड अंडों में भी ऐसे केमिकल मिल रहे हैं तो आम आदमी किस पर भरोसा करे? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।
‘क्या है पूरा मामला?’
तो एक तरफ ट्रस्टिफाइड कह रहा है कि एगोस के अंडों में खतरनाक केमिकल मिला। दूसरी तरफ एगोस का दावा है कि टेस्टिंग रिपोर्ट को गलत तरीके से इंटरप्रेट किया गया है। और FSSAI का कोई जवाब नहीं आया है। ऐसे में कंज्यूमर्स के मन में सवाल है – क्या अंडा खाने से सच में कैंसर हो सकता है या एक टेस्ट रिपोर्ट ने अनावश्यक डर पैदा कर दिया है? इन सवालों का असली जवाब तभी मिलेगा जब FSSAI अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया देगा।
मुख्य बातें (Key Points)
- ट्रस्टिफाइड चैनल ने दावा किया कि एगोस अंडों में बैन केमिकल AOZ मिला (0.73 mcg/kg)
- एगोस का कहना है कि यह FSSAI की सेफ लिमिट (1 mcg/kg) से कम है
- कई देशों में इस केमिकल पर जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है, लेकिन भारत में नहीं
- FSSAI ने अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है
- एक ब्रांड के एक बैच के आधार पर सभी अंडों को कैंसरकारी कहना गलत है






