Eggoz Controversy Health Risk ने भारतीय किचन में एक नई बहस और डर को जन्म दे दिया है। पिछले एक दशक में हमारी खाने की आदतों में एक बड़ा बदलाव आया है। कभी सड़क किनारे अखबार में लिपटे मिलने वाले अंडे अब सुपरमार्केट के एसी रैक पर सज गए हैं। लोग ‘प्रीमियम’, ‘एंटीबायोटिक फ्री’ और ‘हर्बल’ जैसे आकर्षक दावों पर भरोसा करके दोगुनी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। इसी भरोसे की नींव पर घरेलू ब्रांड ‘एगोस’ (Eggoz) ने अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट ने उपभोक्ताओं के विश्वास को हिलाकर रख दिया है।
एक वायरल लैब रिपोर्ट और वीडियो ने दावा किया है कि एगोस के पैकेट बंद अंडों में खतरनाक रसायन मौजूद हैं। यह खबर उन मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, जो सेहत के नाम पर इन महंगे उत्पादों पर भरोसा कर रहे थे। सवाल यह है कि क्या जिस भोजन को हम सेहतमंद समझकर खा रहे हैं, वह असल में हमारे शरीर में धीमा जहर घोल रहा है?
क्या है पूरा विवाद और लैब रिपोर्ट?
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब खाद्य उत्पादों की स्वतंत्र टेस्टिंग करने वाले एक यूट्यूब चैनल ने बाजार से एगोस अंडों के नमूने खरीदे और उन्हें एनएबीएल (NABL) मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा। जांच के नतीजे बेहद चौंकाने वाले थे। रिपोर्ट के मुताबिक, इन अंडों में ‘नाइट्रोफ्यूरोन’ (Nitrofurans) और उसके मेटाबोलाइट ‘एओजेड’ (AOZ) नामक रसायन की पुष्टि हुई। नमूनों में एओजेड की मात्रा 0.73 से 0.74 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम पाई गई। यह रसायन कैंसरकारी माना जाता है और इसका मिलना ब्रांड के ‘हर्बल’ और ‘केमिकल फ्री’ वादे का सीधा उल्लंघन है।
डीएनए बदलने और कैंसर का खतरा
इस मामले में असली खतरा ‘जीनोटक्सिसिटी’ (Genotoxicity) का है। यह किसी रसायन की वह क्षमता है जिससे वह हमारी कोशिकाओं के अंदर मौजूद डीएनए (DNA) को क्षतिग्रस्त कर सकता है। नाइट्रोफ्यूरोन और एओजेड जीनोटक्सिक माने जाते हैं। ये रसायन डीएनए के धागों को तोड़ सकते हैं या उनमें त्रुटियां पैदा कर सकते हैं। जब शरीर इस क्षति को ठीक नहीं कर पाता, तो कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती हैं, जिसे आसान भाषा में कैंसर कहते हैं। यानी इन रसायनों की मौजूदगी से कैंसर की आशंका बढ़ सकती है।
आम आदमी पर सबसे बड़ा असर: सुपरबग्स
कैंसर के अलावा, आम आदमी के लिए एक और गंभीर खतरा ‘एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस’ (AMR) यानी सुपरबग्स का है। जब पोल्ट्री फार्मों में मुर्गियों को बीमारी से बचाने और वजन बढ़ाने के लिए लगातार नाइट्रोफ्यूरोन जैसी एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं, तो उनके पेट के बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। ये ‘सुपरबग्स’ अंडे या मांस के जरिए इंसानों तक पहुंचते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि अगर आप बीमार पड़ते हैं, तो डॉक्टर द्वारा दी गई सामान्य दवाएं आप पर असर करना बंद कर देंगी। एक मामूली संक्रमण भी जानलेवा बन सकता है।
मानकों का खेल और तकनीकी बचाव
इस पूरे मामले में एक बड़ा तकनीकी पेच और विरोधाभास भी सामने आया है। अमेरिका में नाइट्रोफ्यूरोन 2002 से पूरी तरह बैन है। यूरोपीय संघ (EU) में इसकी सहनशीलता सीमा 0.5 है, यानी एगोस के अंडे (0.74 मात्रा वाले) यूरोपीय बाजारों में बेचने लायक भी नहीं हैं। वहीं, भारत में FSSAI ने इसे प्रतिबंधित सूची में तो रखा है, लेकिन जांच के लिए सहनशीलता सीमा 1.0 निर्धारित की है। चूंकि एगोस के अंडों में मिली मात्रा (0.74) भारतीय सीमा (1.0) से कम है, इसलिए कंपनी तकनीकी रूप से खुद को सुरक्षित बता सकती है। यह भारतीय खाद्य सुरक्षा मानकों में एक बड़ी खामी को उजागर करता है।
कंपनी की सफाई
विवाद बढ़ने के बाद एगोस के फाउंडर अभिषेक नेगी ने कंपनी का बचाव किया है। उन्होंने दावा किया है कि उनके फार्मों में किसी भी प्रकार के प्रतिबंधित या गैर-प्रतिबंधित एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता। उन्होंने इसे अपनी ईमानदारी का सवाल बताया और सोशल मीडिया पर अपनी तरफ से कराई गई लैब रिपोर्ट्स भी साझा की हैं। हालांकि, यह विवाद सिर्फ एक ब्रांड का नहीं, बल्कि पूरे असंगठित पोल्ट्री उद्योग का है जो मुनाफे के लिए हमारी सेहत से खिलवाड़ कर रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
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एगोस (Eggoz) अंडों के सैंपल में 0.73-0.74 माइक्रोग्राम एओजेड रसायन मिला।
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यह रसायन डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है और कैंसर का खतरा बढ़ाता है।
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यह मात्रा यूरोपीय मानकों (0.5) से ज्यादा है, लेकिन भारतीय लिमिट (1.0) के अंदर है।
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इससे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (सुपरबग्स) का खतरा पैदा होता है, जिससे दवाएं असर नहीं करतीं।






