नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (The News Air): पिछले सीजन का धान गोदामों और चावल मिलों से उठाने में एफसीआई की विफलता के चलते पंजाब और हरियाणा में धान खरीद संकट की भयावह स्थिति पैदा होने पर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने गहरी चिंता व्यक्त की है। हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दो दिनों के भीतर कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन रिपोर्टों के अनुसार खरीद में तेजी लाने में सीमित प्रगति ही हुई है।
एसकेएम ने पंजाब और हरियाणा में धान खरीद में आई कमी के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और उसकी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2022-23 और 2023-24 में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कटौती की है और 2024-25 में भी इसे जारी रखा है, जिससे खाद्य सब्सिडी में 67552 करोड़ रुपये और उर्वरक सब्सिडी में 87339 करोड़ रुपये की भारी कटौती हो गई है।
केंद्रीय बजट 2022-23 (वास्तविक) में खाद्य सब्सिडी 272802 करोड़ रुपये थी। बजट 2023-24 (संशोधित) में केवल 2,12,332 करोड़ रुपये खर्च किए गए, यानी 60,470 करोड़ रुपये कम खर्च किए गए। 2024-25 के बजट में सब्सिडी का अनुमान 2,05,250 करोड़ रुपये है, यानी सब्सिडी में 7082 करोड़ रुपये और कम किए गए हैं।
इसी तरह उर्वरक सब्सिडी में भी भारी कटौती की गई है। केंद्रीय बजट 2022-23 (वास्तविक) में उर्वरक सब्सिडी 2,51,339 करोड़ रुपये थी और बजट 2023-24 (संशोधित) में केवल 1,88,894 करोड़ खर्च किए गए, जो बजट में रखी गई राशि से 62,445 करोड़ रुपये कम है। 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार उर्वरक सब्सिडी मात्र 1,64,000 करोड़ रुपये है, यानी सब्सिडी में 24,894 करोड़ रुपये और कटौती की गई है।
पंजाब और हरियाणा से पिछले सीजन में खरीदे गए धान के स्टॉक को उठाने में एफसीआई की विफलता की पृष्ठभूमि में, एसकेएम ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मांग की है कि वह लोगों को यह बताएं कि उन्होंने गरीब लोगों की खाद्य सब्सिडी और किसानों की उर्वरक सब्सिडी में कटौती करने की इतने कठोर नीति क्यों अपनाई है?
भाजपा शासित राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के नियमों में बदलाव करके सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की योजना से जोड़ रहे हैं, जिसके तहत सुनियोजित रूप से लाभार्थियों को अनाज देने के बजाए उनके बैंक खातों में नकद हस्तांतरण की योजना को लागू किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने 32 लाख राशन कार्डों को नकद हस्तांतरण में बदल दिया है और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से चावल और अनाज उठाना बंद कर दिया है। कर्नाटक में, गंभीर सूखे के बावजूद, केंद्र सरकार ने चावल उपलब्ध नहीं कराया, जबकि राज्य सरकार ने खाद्यान्न की मांग की थी।
नैफेड और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियों ने भी जानबूझकर अपनी खरीद प्रक्रिया को एपीएमसी प्रणाली से बाहर रखकर कॉर्पोरेट क्षेत्र से संबंधित निजी खिलाड़ियों की एक श्रृंखला के माध्यम से चलाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कॉर्पोरेट घरानों के हितों के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया है। ये सभी उपाय खाद्य क्षेत्र के कॉर्पोरेटीकरण का हिस्सा हैं और इसके खाद्य सुरक्षा और लघु उत्पादन पर बड़े गंभीर परिणाम होंगे और जो लोगों के हितों को, खासकर गरीबों, छोटे और मध्यम किसानों, किरायेदार किसानों और खेत मजदूरों के हितों को नुकसान पहुंचाएंगे। हमें अफ्रीका से सबक सीखना चाहिए, जहां कई देशों में खाद्य उद्योग पर कॉर्पोरेट नियंत्रण के कारण अनाज की कमी ने दंगों और गृहयुद्धों को जन्म दिया है।
केंद्र सरकार ने केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) को खत्म कर दिया है, जिसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र में भंडारण सुविधाओं में बड़े पैमाने पर कमी आई है। एफसीआई ने भी अपनी भंडारण सुविधाओं को अडानी और अंबानी जैसी कंपनियों को किराए पर दे दिया है।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टी ओ) खाद्यान्नों के मामले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य के तंत्र पर हमला कर रहा है। भाजपा सरकार ने कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में विश्व व्यापार संगठन की शर्तों को स्वीकार करके, जो यह तर्क देते हैं कि इससे इससे बाज़ार में गड़बड़ी होगी, जानबूझकर भारतीय किसानों और आम जनता के हितों से समझौता किया है।
इन सभी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के कारण एफसीआई ने चालू सीजन में धान खरीद के लिए आवश्यक क्षमता का प्रबंधन नहीं किया।
एसकेएम ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बड़े व्यवसाय और बहुराष्ट्रीय निगमों और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों के सामने आत्मसमर्पण करने का कड़ा आरोप लगाया है, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली और एपीएमसी बाजारों के माध्यम से एमएसपी आधारित सीमित खरीद प्रणाली को खत्म किया जा सके, जो उत्पादन का केवल 10% कवर करती है।
एसकेएम पंजाब की भगवंत मान सरकार और हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार की भूमिका की भी कड़ी आलोचना करता है, क्योंकि वे गोदामों और चावल मिलों से धान का स्टॉक समय पर उठाने, वर्तमान संकट से बचने और किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में विफल रहे हैं। खरीद प्रणाली पटरी से उतरने के कारण किसानों में अशांति पैदा होगी और खरीद की एपीएमसी प्रणाली से जुड़े सभी तबके निराश होंगे।
घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) के अनुसार, केवल 56% भारतीयों ने दिन में तीन बार भोजन करने की बात कही है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि भारत में सबसे अधिक संख्या में 67 लाख बच्चे हैं, जिन्हें भोजन मिलना दूभर हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण — 2019-21 के एनएफएचएस-5 के अनुसार, भारत में,35% बच्चे बौनेपन और 19% बच्चे कम वजन के शिकार है और 57% महिलाएं और 67% बच्चे में खून की कमी के खतरनाक स्तर की सूचना दी गई है।
ऐसे समय में जब खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के मुद्दों को राष्ट्रीय संकट के रूप में देखा जाना चाहिए और केंद्र सरकार को खाद्य सुरक्षा नेटवर्क का विस्तार करना चाहिए तथा खाद्य टोकरी को बढ़ाना चाहिए, वित्त मंत्री और प्रधान मंत्री सबसे अधिक हाशिए पर पड़े लोगों को धोखा दे रहे हैं, जो भूख और कुपोषण के साथ जी रहे हैं और किसानों, खाद्य उत्पादकों पर हमला कर रहे हैं।.
इस संदर्भ में, एसकेएम देशभर के किसानों और मजदूरों से अपील करता है कि वे एपीएमसी प्रणाली और देश की खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिए संघर्ष के रास्ते पर पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ एकजुटता से खड़े हों, ताकि खाद्य उद्योग पर कॉरपोरेटों का कब्जा न हो।