Rajnath Singh Parliament Speech के दौरान लोकसभा में माहौल उस वक्त गरमा गया जब रक्षा मंत्री ने वंदे मातरम को लेकर चल रही बहस पर अपना कड़ा रुख स्पष्ट किया। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि इस गीत को लेकर जानबूझकर भ्रम फैलाया गया है, जबकि सच्चाई यह है कि यह किसी धर्म विशेष का नहीं, बल्कि मां भारती के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है।
संसद के भीतर अपनी बात रखते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि वंदे मातरम पर हिंदू और मुसलमान के बीच कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने अफसोस जताया कि कुछ लोगों ने इस पवित्र गीत का गलत मतलब निकाला और इसे गलत तरीके से पेश किया। उनका कहना था कि हमें यह समझना होगा कि इस्लाम में बुत-परस्ती (मूर्ति पूजा) की हदें कहां हैं और भारतीय मुस्लिमों ने बंकिम चंद्र चटर्जी के भाव को कई नेताओं से कहीं बेहतर समझा है।
‘सूफी परंपरा और एकता का संदेश’
रक्षा मंत्री ने भारतीय संस्कृति की गहराई का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे देश की सूफी परंपरा, विशेषकर पंजाब और बंगाल में, वही भाव देखने को मिलता है जिस भाव से वंदे मातरम लिखा गया था। उन्होंने ख्वाजा गुलाम फरीद की रचनाओं का हवाला देते हुए बताया कि कैसे उन्होंने ईश्वर के नूर को राम, लक्ष्मण और सीता के रूप में भी देखा है। यह भारत की वह खूबी है जहां सत्य और सौंदर्य को किसी एक नाम में नहीं बांधा गया है।
‘अल्लाह, रब और मां का दर्जा’
अपने भाषण को और धार देते हुए राजनाथ सिंह ने मशहूर वकील राम जेठमलानी के एक कथन को याद किया। उन्होंने बताया कि इस्लाम में अल्लाह को ‘रब’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनमें ‘रबूबियत’ यानी पालन-पोषण करने का गुण है। ठीक यही गुण एक मां में होता है जो अपने बच्चे के तन और मन दोनों का पोषण करती है। उन्होंने तर्क दिया कि यही दिव्य गुण हमारी मातृभूमि में भी है, जो हमारा पालन-पोषण करती है।
‘इबादत और देशप्रेम का तर्क’
सदन को संबोधित करते हुए उन्होंने एक बहुत ही तार्किक बात कही। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम अल्लाह की अनंत रबूबियत के लिए उनके सामने सजदा करते हैं, ठीक उसी तरह मां भारती के सामने सजदा करना भी हमारा फर्ज है। यह धरती हमें अन्न-जल देती है, हमारा पोषण करती है, इसलिए वंदे मातरम गाना किसी मजहब के खिलाफ नहीं, बल्कि उस धरती के प्रति आभार जताना है जिस पर हम सांस लेते हैं।
‘भाषाओं की सीमाओं से परे’
राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम ने हमेशा से भारत के लोगों के दिलों को धड़काया है, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। बंगाली और संस्कृत में लिखा गया यह गीत केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह तमिल, मराठी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगु, मलयालम और हिंदी समेत भारत की हर भाषा बोलने वालों के दिलों में घर कर गया।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत का डर’
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने विरोधियों पर निशाना साधते हुए कहा कि यह गीत अनेकता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। इसने उन लोगों को विचलित कर दिया जो ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विचार से डरते थे। पूरे देश ने इसमें संगठित होने की आवाज सुनी थी, लेकिन कुछ लोगों ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इसका गलत अर्थ निकालकर समाज को बांटने की कोशिश की।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि वंदे मातरम हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा नहीं है।
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उन्होंने राम जेठमलानी का हवाला देकर ‘रबूबियत’ और मातृभूमि के पोषण के गुण की तुलना की।
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रक्षा मंत्री ने कहा कि मां भारती के सामने सजदा करना हर इंसान का फर्ज है क्योंकि यह धरती हमारा पालन करती है।
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वंदे मातरम भारत की अनेकता में एकता का प्रतीक है और हर भाषा भाषियों के दिल में बसता है।






