टेस्ट, विज्ञापन और वो रणनीति… मक्खन के बाजार में कैसे हुआ AMUL का कब्जा?

0
टेस्ट, विज्ञापन और वो रणनीति... मक्खन के बाजार में कैसे हुआ AMUL का कब्जा?
टेस्ट, विज्ञापन और वो रणनीति... मक्खन के बाजार में कैसे हुआ AMUL का कब्जा?
 

नई दिल्ली, 22 फरवरी (The News Air) मक्खन के बाजार में अमूल की 85 फीसदी हिस्सेदारी है. पनीर के मामले में यह आंकड़ा 65-66 फीसदी है. यूं ही भारतीय बाजार में अमूल का कब्जा बढ़ा, इसके पीछे लम्बी कहानी है. अमूल एक बार फिर चर्चा में है. पीएम मोदी गुरुवार को गुजरात पहुंचे. अमूल के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

गुजरात के एक छोटे से गांव से शुरू हुई डेयरी कंपनी अमूल यूं ही नहीं देश का सबसे बड़ा ब्रांड बनी. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण और पश्चिम से लेकर पूरब तक, अमूल का कब्जा है. आंकड़े खुद इसकी सफलता की कहानी कहते हैं.मक्खन के बाजार में अमूल की 85 फीसदी हिस्सेदारी है. पनीर के मामले में यह आंकड़ा 65-66 फीसदी है. शिशु दूध में 63 फीसदी अमूल की हिस्सेदारी बनी हुई है. डेयरी जगत के इतिहास में अमूल का यह मुकाम ऐतिहासिक है.

अमूल एक बार फिर चर्चा में है. पीएम मोदी गुरुवार को गुजरात पहुंचे. अमूल के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में हिस्सा लिया. आजादी से पहले किसानों के शोषण से शुरू हुई अमूल को दूसरे डेयरी ब्रांड से टक्कर मिली लेकिन वो पीछे नहीं हटी और सफलता का इतिहास रच दिया था. जानिए अमूल कैसे बना मार्केट लीडर.

 मक्खन को लेकर क्या रणनीति अपनाई? : मार्केट में अमूल के दूध से लेकर पनीर तक प्रोडक्ट रहे, लेकिन भारतीय बाजार में सबसे ज्यादा अमूल बटर का कब्जा रहा, लेकिन इसका सफर आसान नहीं रहा है. शुरुआती दौर से अमूल को पसंद तो किया जा रहा था, लेकिन पोलसन से तगड़ा मुकाबला मिल रहा था. लोगों को पोलसन का मक्खन बहुत पसंद था. इसकी वजह थी उसके बनाने का तरीका. पोलसन यूरोपियन प्रक्रिया से मक्खन को तैयार करती थी और और उसमें नमक का इस्तेमाल करती थी.

अमूल के मक्खन में नमक नहीं होता था, इसलिए वो फीका लगता है. यहीं पर अमूल ने अपनी रणनीति को बदला. मक्खन में नमक को शामिल किया और इसके स्वाद को बदलाव. इस बदलाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए अमूल गर्ल का जन्म हुआ. सिल्वेस्टर डी कुन्हा ने अमूल गर्ल को बनाया. अमूल का utterly Butterly Delicious विज्ञापन इतना पॉपुलर हुआ फिर कंपनी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

ऐसे आम आदमी की नब्ज को पकड़ा : अमूल ने जिस तरह से भारतीयों के दिलों में जगह बनाई उसमें बड़ा रोल मार्केटिंग का रहा है. कंपनी ने हमेशा से ही अपने प्रोडक्ट की खूबियों को समझाने के लिए रोजमर्रा की चीजों से जोड़कर विज्ञापन जारी किए, जो भावात्मक तौर पर भारतीयों से जुड़ गए. लोग खुद से उसे जोड़ पाते थे. विज्ञापनों के जरिए अमूल अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने लगा.

अमूल ने अपनी बात को कहने और उत्पादों का महत्व समझाने के लिए हास्य और क्रिएटिविटी का सहारा लिया. देश के हालात हों, भारतीयों की उपलब्धि हो या देश में बड़ा बदलाव, अमूल ने अपने विज्ञापनों से लोगों को हंसाया भी और सोचने पर मजबूर भी किया. नतीजा, यह ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा. लोगों के दिमाग में अमूल की छवि एक ऐसी जिम्मेदार कंपनी की बनी जो अपने प्रोडक्ट को डिलीवर करने के साथ संदेश भी देती है.

देश में कोरोना की वैक्सीन का महत्व समझाने की बात हो या फिर प्याज की आसमान छूती कीमतें… देश-विदेश के मुद्दों पर दिलचस्प विज्ञापन बनाए और लोगों के बीच जगह बनाई.

देसी कंपनी औसत कीमत वाले प्रोडक्ट लाई, गिनीज रिकॉर्ड भी बनाया : अमूल ने शुरू से ही लोगों के जेहन एक देसी कंपनी के रूप में अपनी पहचान को मजबूत की. अपना फोकस मिडिल और लो क्लास तक प्रोडक्ट्स को पहुंचाने पर रखा. कीमतें ऐसी रखीं जो लोगों की पहुंच में हों. इस तरह देश की एक बड़ी आबादी तक अपने प्रोडक्ट पहुंचाए. गुजरात से शुरू हुआ अमूल का सफर महाराष्ट्र, उत्तर भारत होते हुए पूर्वी भारत और दक्षिण भारत तक पहुंचा. अमूल ने दक्षिण में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए हैदराबाद को अपना हब बनाया. अमूल का अटरली बटरली कैम्पेन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुआ. यह सबसे लम्बा चलने वाला एड कैम्पेन बना. वहीं, डॉ. वर्गीज कुरियन ने गुजरात के खेड़ा जिले में शुरू हुई अमूल डेयरी के जरिए पूरे देश में सफेद क्रांति ला दी.

0 0 votes
Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments