Maternity Leave for Teachers को लेकर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में शिक्षा विभाग के नियमों और शिक्षिकाओं के अधिकारों के बीच टकराव लगातार गहराता जा रहा है। आगरा (Agra) सहित विभिन्न जिलों से लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां शिक्षिकाओं को दो वर्ष के अंदर दूसरी बार गर्भवती होने पर मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) नहीं दिया जा रहा। मजबूरी में उन्हें न्याय की गुहार के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा है।
पहला मामला आगरा के ताजगंज (Tajganj) स्थित एक कॉलेज की शिक्षिका का है जिन्होंने दो वर्षों में दूसरी बार मेटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया, लेकिन ऑनलाइन आवेदन प्रणाली में “अनुमन्य नहीं है” दिखा कर छुट्टी नहीं दी गई। शिक्षिका को कोर्ट जाना पड़ा, तब जाकर छुट्टी को स्वीकृति दी गई।
दूसरा मामला आगरा के बमरौली (Bamrauli) स्थित एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका का है जिन्हें शादी के चार साल बाद बेटी हुई और फिर दो वर्षों में पुनः गर्भवती हुईं। मेटरनिटी लीव के लिए जब उन्होंने आवेदन किया तो दो बार कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी, उसके बाद ही छुट्टी दी गई।
ये मात्र दो उदाहरण हैं, ऐसे सैकड़ों मामले हर साल सामने आते हैं। हाल ही में फर्रुखाबाद (Farrukhabad) की एक शिक्षिका को भी कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। शिक्षा विभाग की नीति के अनुसार, यदि कोई शिक्षिका दो वर्षों में दो बार मां बनती है तो उसे स्थानीय स्तर पर मेटरनिटी लीव नहीं दी जाती। सिस्टम में यह छुट्टी “अनुमन्य नहीं है” दिखा दी जाती है और आवेदन रिजेक्ट कर दिया जाता है।
हालांकि, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 (Maternity Benefit Act, 1961) के अनुसार महिला कर्मचारियों को पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 सप्ताह का सवेतन अवकाश मिलता है, भले ही यह दो वर्ष के भीतर हो। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की मनमानी शिक्षिकाओं के लिए मानसिक और वित्तीय तनाव का कारण बन रही है।
प्राथमिक शिक्षक संघ (Primary Teachers Union) के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह राठौर (Rajendra Singh Rathore) ने बताया कि शासन को पत्र लिखकर स्पष्ट निर्देशों की मांग की गई है ताकि सभी शिक्षिकाओं को उनका वैधानिक अधिकार मिल सके। उन्होंने यह भी कहा कि किसी महिला के गर्भवती होने के समय को नियंत्रित करने का प्रयास करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
वहीं, प्रदेश कोषाध्यक्ष मुकेश शर्मा (Mukesh Sharma) ने बताया कि यह मुद्दा हाल ही में शिक्षक सम्मेलन में उठाया गया था और उप्र माध्यमिक शिक्षक संगठन (UP Secondary Teachers Association) की ओर से शासन को पत्र भी भेजे गए हैं। उन्होंने कहा कि मां बनना हर महिला का मौलिक अधिकार है और छुट्टी पर रोक लगाना नीतिगत अन्याय है।
डीआईओएस (DIOS) चंद्रशेखर का कहना है कि मेटरनिटी लीव में किसी तरह की परेशानी न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सिर्फ उन्हीं मामलों में “अनुमन्य नहीं है” दर्शाया जाता है जिनके दस्तावेज अधूरे होते हैं, अन्यथा शिक्षिकाओं को छुट्टी दी जाती है।
यह मुद्दा शिक्षा विभाग की नीतियों और महिला अधिकारों के बीच संतुलन का है, जहां अदालतों को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। यदि स्पष्ट और समान नियम बनाए जाएं, तो न सिर्फ महिला शिक्षकों को राहत मिलेगी बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और विश्वास भी बढ़ेगा।