दो साल के बच्चे को संभाले या काम पर जाएं?

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नई दिल्ली, 06 सितंबर,(The News Air): राजधानी दिल्ली की भीषण गर्मी में सोनू नाम का एक 23 वर्षीय डिलीवरी राइडर अपने दो साल के बेटे सार्थक के साथ सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करता है। सोनू की कहानी प्यार, संघर्ष और एक पिता के अटूट हौसले की कहानी है। अपने बेटे के बेहतर भविष्य के लिए सोनू कड़ी धूप में घंटों काम करता है और हर मुश्किल का सामना करता है।

घर चलाने के लिए करते हैं डिलीवरी राइडर का काम

सोनू मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। छोटी उम्र से ही उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी उठाई और पढ़ाई के साथ-साथ काम भी किया। 2019 में उन्हें नैंसी नाम की लड़की से प्यार हो गया और उन्होंने दिल्ली आकर शादी की। दिल्ली में शुरुआत में मजदूरी की, फिर सिक्योरिटी गार्ड का काम किया। सोनू पिछले तीन साल से डिलीवरी राइडर है। कुछ महीने पहले नैंसी बेटे को सोनू के पास छोड़कर गांव चली गई।

बेटे के बेहतर भविष्य के लिए दिनभर करते हैं मेहनत


इसके बाद से सोनू अपने बेटे के साथ दिल्ली की सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं। अपनी किराये की बाइक पर वह सारा दिन काम करते हैं ताकि सार्थक को अच्छी जिंदगी दे सके। वह चाहते हैं कि सार्थक पढ़े-लिखे और जीवन में आगे बढ़े। सोनू ने कहा कि मैं बस चाहता हूं कि मेरा बेटा जल्दी स्कूल जाए, पढ़ाई करे और अपने सपनों को पूरा करे, दोस्तों के साथ खेले। बेटे को बेहतर भविष्य मिले और उसे जीवन में उचित अवसर मिले।

‘बेटे से मिलकर सारी थकान हो जाती है गायब’


सोनू 12 घंटे से ज्यादा काम करते हैं और 500 रुपये कमा पाते हैं। कभी फुटपाथ पर, तो कभी पार्क में आराम करते हुए वह सार्थक से बातें करते हैं और थकान भूल जाते हैं। सोनू की ख्वाहिश है कि एक दिन ऐसा आए जब वह सार्थक के साथ समय बिता सकें, खेले, खाएं और एक-दूसरे के साथ खुश रहे।

‘बेटे को अपने साथ काम पर लाने का फैसला था बड़ा’


सोनू बताते हैं कि सार्थक को काम पर लाना या अकेला छोड़ना उसके लिए बहुत मुश्किल फैसला होता है। उसे ट्रैफिक, हादसे, प्रदूषण और धूल से सार्थक को बचाने की चिंता सताती रहती है। एक बार आवारा कुत्तों ने उनका पीछा किया था, एक कुत्ते ने उसे काटा भी था लेकिन बेटे की सुरक्षा के लिए सोनू को हर मुश्किल का सामना करना पड़ता है। सोनू ने कहा, “ऐसा कई बार हुआ है जब आवारा कुत्तों ने मेरी बाइक का पीछा किया है और मुझे खतरे से निपटने के साथ-साथ अपने बेटे की रक्षा करनी पड़ी है। मुझे कुत्तों ने भी काटा है, फिर भी मैं डिलीवरी करता रहता हूं, और इस दौरान अपने बेटे को सुरक्षित रखने की कोशिश करता रहता हूं।”

‘कई बार खाना खरीदने तक के नहीं होते पैसै’
 
एक डिलीवरी राइडर के रूप में सोनू की कमाई उसके द्वारा पूरे किए गए ऑर्डर पर निर्भर करती है। इसलिए अपने परिवार के लिए पैसे कमाने के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा डिलीवरी करनी पड़ती है। वह बताते हैं, “कई बार ऐसा भी हुआ है जब मेरे पास खाना खरीदने के पैसे नहीं थे, लेकिन मैंने हमेशा अपने बेटे के खाने को प्राथमिकता दी। मेरी पत्नी ने भी, अपनी घर के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए नौकरानी का काम किया। अब जब वह हमारे गांव लौट गई है, तो मैं अपने बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी मेरे कंधे पर है। थकान, डर और जिम्मेदारी के बीच सोनू अपने बेटे के बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष कर रहा है। सोनू जैसी कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि प्यार और समर्पण की कोई सीमा नहीं होती।
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