Supreme Court on Urgent Hearing for Rich : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात (Gujarat) की एक रीयल एस्टेट कंपनी वाइल्डवूड्स रिजॉर्ट एंड रियल्टीज (Wildwoods Resort and Realtys) की अर्जेंट सुनवाई की मांग को खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की। जस्टिस दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Datta) और जस्टिस मनमोहन (Justice Manmohan) की बेंच ने सुनवाई को अगस्त 2025 के लिए लिस्ट करते हुए पूछा – “क्या हम अब सिर्फ अमीरों के लिए ही बैठे हैं?” कोर्ट की यह सख्त प्रतिक्रिया उस वक्त आई जब वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने केस को जुलाई में सुनने की अपील की।
कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने दिसंबर 2024 में इस मामले में फैसला दिया था और कंपनी ने अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इतनी देर से दाखिल याचिका में अर्जेंसी का कोई ठोस आधार नहीं बताया गया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिस तरह से याचिका में अर्जेंसी दिखाई गई है, वह केवल दिखावे के लिए है और मामला उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना दर्शाने की कोशिश की गई।
इस प्रोजेक्ट का विवाद वाइल्डवूड्स नेशनल पार्क (Wildwoods National Park) के पास रिजॉर्ट बनाने को लेकर है। राज्य सरकार (State Government) ने इस लोकेशन को वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी (Wildlife Sanctuary) के बेहद करीब बताते हुए बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ (State Board of Wildlife) की अनुमति से इनकार कर दिया था। कंपनी ने कोर्ट में कहा कि उसने 2009 में सरकार के साथ एमओयू (MoU) साइन किया था और सरकार ने परियोजना में मदद का आश्वासन दिया था। इसलिए हाईकोर्ट से मांग की गई कि सरकार को इस प्रोजेक्ट में मदद करने का निर्देश दिया जाए।
हालांकि राज्य सरकार ने इसका विरोध किया और बताया कि प्रस्तावित साइट वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के बहुत नजदीक है और नियमों के मुताबिक किसी भी परियोजना को कम से कम एक किलोमीटर दूर होना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकार करते हुए कंपनी की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एमओयू के अनुसार भी आगे की मंजूरी लेना अनिवार्य था।
इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले भी 2016 में विवाद उठ चुका है, जब आरोप लगे थे कि राजनीतिक पक्षपात के चलते कंपनी को जमीन दिलाई गई। उस समय आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) राज्य की मुख्यमंत्री थीं। हालांकि सरकार और कंपनी दोनों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
इस पूरे घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह दर्शाती है कि अदालत में सभी के लिए बराबरी है और कोई भी अमीरी या रसूख के बल पर कोर्ट की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकता। इस तरह के फैसले देश में न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को मजबूत करते हैं।