Aravalli Range Supreme Court Order – अरावली की पहाड़ियों और उसके अस्तित्व को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बड़ा और चौंकाने वाला फैसला लिया है। पर्यावरणविदों के भारी विरोध और उठते सवालों के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही 20 नवंबर के आदेश पर ‘ब्रेक’ लगा दिया है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक इस मामले के सभी पहलुओं पर विस्तार से विचार नहीं हो जाता, तब तक अरावली में यथास्थिति बनी रहेगी। अब मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
क्यों लिया सुप्रीम कोर्ट ने यू-टर्न?
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि कोर्ट की कुछ पिछली टिप्पणियों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा था, जिस पर स्पष्टता बेहद जरूरी है। दरअसल, विवाद की मुख्य वजह केंद्र सरकार द्वारा सुझाई गई अरावली की नई परिभाषा है। इस परिभाषा के तहत केवल उन्हीं पहाड़ियों को ‘अरावली’ माना जा रहा था जो स्थानीय स्तर से 100 मीटर ऊंची हैं। पर्यावरणविदों का तर्क था कि इस पैमाने से हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली प्राचीन अरावली श्रृंखला का लगभग 90% हिस्सा ‘पहाड़’ की श्रेणी से बाहर हो जाएगा और वहां खनन (Mining) का रास्ता साफ हो जाएगा।
खनन पर केंद्र से मांगा जवाब
कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार से सीधा सवाल पूछा है कि विवादित क्षेत्रों में खनन जारी रहेगा या रुकेगा? सीजेआई ने सरकार को खनन गतिविधियों पर एक साफ और विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने अरावली की परिभाषा, 500 मीटर के दायरे और खनन की अनुमति जैसे गंभीर मुद्दों को सुलझाने के लिए एक नई उच्च स्तरीय एक्सपर्ट कमेटी (High-Level Committee) गठित करने के निर्देश दिए हैं।
विश्लेषण: अरावली को बचाने की आखिरी उम्मीद (Expert Analysis)
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम पर्यावरण संरक्षण के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। 20 नवंबर के आदेश के बाद ऐसा लग रहा था कि अरावली के एक बड़े हिस्से को कानूनी सुरक्षा कवच से बाहर कर दिया जाएगा, जिससे रियल एस्टेट और खनन माफिया के लिए दरवाजे खुल जाते। लेकिन कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर उस आदेश पर रोक लगाना यह दर्शाता है कि न्यायपालिका पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance) को लेकर कितनी संवेदनशील है। अरावली सिर्फ पत्थर नहीं, बल्कि उत्तर भारत का ‘फेफड़ा’ और थार रेगिस्तान को बढ़ने से रोकने वाली दीवार है। अगर यह दीवार गिरी, तो दिल्ली-एनसीआर का दम घुटने में वक्त नहीं लगेगा।
जानें पूरा मामला (Background)
केंद्र सरकार ने अरावली पर्वतमाला को परिभाषित करने के लिए एक नया मानदंड तय किया था। इसके मुताबिक, 100 मीटर से ऊंची भू-आकृति को ही ‘अरावली पहाड़ी’ और 500 मीटर के भीतर दो ऐसी पहाड़ियों को ‘अरावली रेंज’ माना जाएगा। 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए नई लीज पर रोक लगाई थी। लेकिन आलोचकों का कहना था कि यह परिभाषा इतनी सीमित है कि जमीनी स्तर पर हजारों हेक्टेयर वन क्षेत्र और छोटी पहाड़ियां सुरक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगी, जिससे अवैध खनन और निर्माण को कानूनी जामा पहनाया जा सकेगा।
मुख्य बातें (Key Points)
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Supreme Court ने अपने 20 नवंबर के आदेश पर रोक लगाई, जिसमें अरावली की नई परिभाषा मानी गई थी।
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अब 21 जनवरी 2026 तक अरावली क्षेत्र में Status Quo (यथास्थिति) बनी रहेगी।
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विवादित “100 मीटर ऊंचाई” वाले नियम से 90% अरावली क्षेत्र के बाहर होने का खतरा था।
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कोर्ट ने केंद्र से Mining गतिविधियों पर स्पष्ट जवाब मांगा है।
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मामले को सुलझाने के लिए एक नई High-Level Expert Committee का गठन किया जाएगा।
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न






