नई दिल्ली, 22 जनवरी (The News Air) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार को अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा (Praan Pratishtha) समारोह के अवसर पर “हिंदू निवासियों की कम संख्या” के आधार पर अन्नदानम (विशेष भिक्षा) आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार करने पर फटकार लगाई। गाँव में मुख्य रूप से ईसाई निवास करते हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna) की अध्यक्षता वाली पीठ ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी से कहा, “हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि आप (राज्य सरकार) इस कारण से घटनाओं को अस्वीकार न करें। हां, अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति हो तो आप नियमन कर सकते हैं। हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम अनुमति न दिए जाने का कारण जानना चाहते हैं। यदि यही कारण बताया जाएगा, तो आप समस्या में पड़ जाएंगे।”
पीठ में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Dutta) भी शामिल थे। अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि द्रमुक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने पूरे तमिलनाडु के सभी मंदिरों में राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ (Praan Pratishtha) समारोह के सीधे प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया है और सभी प्रकार की पूजा, अर्चना, इस अवसर पर अन्नदानम (गरीब भोजन) और भजन पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
याचिका में डिंडीगुल जिले के पुलिस उपाधीक्षक द्वारा 20 जनवरी को पारित एक आदेश संलग्न किया गया है, जिसमें श्री भगवतीअम्मन मंदिर को अन्य बातों के साथ-साथ इस आधार पर विशेष भिक्षाटन (अन्नदानम) आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था कि ए. वेल्लोडु गांव का क्षेत्र मुख्य रूप से ईसाइयों द्वारा बसा हुआ है और हिंदू (Hindu) निवासियों की कम संख्या के कारण, सार्वजनिक शांति और नैतिकता से संबंधित सांस्कृतिक संवेदनशीलता या कानूनी जटिलताओं का सामना करने की संभावना है।
न्यायमूर्ति दत्ता (Justice Dipankar Dutta) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “अगर यह आदेश पूरे तमिलनाडु में लागू किया जाएगा, तो जहां भी अल्पसंख्यक हैं, वे कभी भी प्रार्थना सभा नहीं कर पाएंगे।”
याचिका पर नोटिस (Notice) जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए मौखिक बयान को दर्ज किया कि अयोध्या (Ayodhya) में भगवान राम की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ (Praan Pratishtha) के शुभ अवसर पर किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के सीधे प्रसारण और आयोजन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के अधिकारियों को अनुमति मांगने वाले आवेदन पर कानून के अनुसार निर्णय लेने और अस्वीकृति के मामलों में कारण दर्ज करने का आदेश दिया।
इसमें कहा गया है, “अधिकारी प्राप्त आवेदनों और ऐसे आवेदनों को अनुमति देने और अस्वीकार करने के लिए दिए गए कारणों के संबंध में डेटा भी बनाए रखेंगे।” मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को होने की संभावना है।