The News Air: सड़क दुर्घटना में परिवार को खो देने के बाद संसार से मन ऐसा विरक्त हुआ कि उसने साधु का चोला डाल लिया। रास्ते में चल रहे श्रद्धालुओं द्वारा चप्पल पर पांव रख देने के चलते चप्पल ने साथ छोड़ा तो हमेशा के लिए चप्पल को ही छोड़ दिया। यह कहानी बाबा सुखचैन दास की है। सुखचैन दास संगरूर के रहने वाले हैं।
गरली में संत महात्माओं के सम्मेलन में दर्शन के लिए जाते हुए अंब में बात करते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 2000 में किरते गांव से एक गाड़ी यात्रा के लिए निकली थी। कीरतपुर के पास वह गाड़ी नहर में गिर गई। इस गाड़ी में उनके माता-पिता, पत्नी व 2 बच्चे भी सवार थे। बाकी लोगों के साथ उनकी भी उस दुर्घटना में मौत हो गई थी। इससे आहत होकर उन्होंने साधु का चोला पहन लिया।
गरली में संत महात्माओं के सम्मेलन में जाते बाबा सुखचैन दास।
ससुराल में होने के चलते सिर्फ बहन बची
उन्होंने बताया कि उनकी एकमात्र बहन बची है, जो उस दौरान अपने ससुराल में होने के चलते उनके साथ यात्रा के लिए नहीं गई। नंगे पांव चलने के पीछे उन्होंने बताया कि एक बार वह माता चिंतपूर्णी के दर्शन करने के लिए पैदल आ रहे थे। इसी दौरान भरवाई के पास पीछे चल रहे किसी श्रद्धालु ने उनकी चप्पल पर पांव रख दिया। जिसके चलते उनका सारा दिन खराब रहा।
यहां तक कि उन्हें सारा दिन भोजन भी नसीब नहीं हुआ। इसी के चलते उन्होंने उस दिन से चप्पल पहनना छोड़ दिया। पिछले 22 साल से वह नंगे पांव मणिमहेश सहित हिमाचल के धार्मिक स्थलों की यात्रा कर चुके हैं। सुखचैन ने बताया कि अगर हम लोगों को भगवान पर भरोसा है तो हमें सांसारिक चीजों के पीछे नहीं भागना चाहिए।
5 बार कर चुके मणिमहेश की यात्रा
उन्होंने कहा कि मेरा खाने या रहने का कोई ठिकाना नहीं है। जिस जगह उनका अन्न और जल लिखा होता है, वहां दानी लोग खुद उन्हें बुलाकर खाना खिला देते हैं। उन्होंने बताया कि वह 5 बार मणिमहेश की यात्रा कर चुके हैं।