Sukhbir Badal Reappointed as SAD President की खबर ने पंजाब की सियासत में हलचल मचा दी है। अमृतसर (Amritsar) स्थित गोल्डन टेंपल (Golden Temple) परिसर में बने तेजा सिंह समुद्री हॉल (Teja Singh Samundri Hall) में हुई शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal – SAD) की अहम बैठक में सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) को एक बार फिर पार्टी का प्रधान चुना गया।
सर्वसम्मति से चुने गए सुखबीर बादल
शिरोमणि अकाली दल की इस महत्वपूर्ण बैठक में कार्यकारी प्रधान बलविंदर सिंह भूंदड़ (Balwinder Singh Bhundar) ने सुखबीर बादल के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे बैठक में मौजूद सभी नेताओं ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। इस चुनाव में सुखबीर के खिलाफ किसी ने भी अपना नामांकन नहीं दिया।
गुलजार सिंह रणिके ने दी औपचारिक मंजूरी
अकाली नेता और इन चुनावों के लिए नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर गुलजार सिंह रणिके (Gulzar Singh Ranike) ने बैठक के दौरान उनके नाम पर मोहर लगा दी और औपचारिक घोषणा की कि सुखबीर सिंह बादल अब फिर से पार्टी के प्रधान होंगे।
धार्मिक विवादों के बीच सियासी वापसी
सुखबीर बादल ने 16 नवंबर 2024 को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, जब उन्हें अकाल तख्त (Akal Takht) द्वारा ‘तनखैया’ (धार्मिक दोषी) घोषित किया गया। 2 दिसंबर 2025 को जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह (Giani Raghbir Singh) ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के लिए अयोग्य बताया था। इसके बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने रघबीर सिंह को उनके पद से हटाकर जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज (Kuldeep Singh Gaggaj) को नियुक्त किया।
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਮਸੀਹਾ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਜੀ ਬਾਦਲ ਨੂੰ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਚੁਣੇ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਲੱਖ-ਲੱਖ ਵਧਾਈਆਂ !!
ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਆਸਾਂ ਤੇ ਉਮੀਦਾਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਉਹ ਡਟ ਕੇ ਪਹਿਰਾ ਦੇਣਗੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਮੁੜ ਖੁਸ਼ਹਾਲੀ ਅਤੇ ਤਰੱਕੀ ਦੀਆਂ ਲੀਹਾਂ ‘ਤੇ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣਗੇ ।… pic.twitter.com/rph5e98zz2— Shiromani Akali Dal (@Akali_Dal_) April 12, 2025
पार्टी नेतृत्व ने झेला धार्मिक दंड
एसएडी के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा (Daljit Singh Cheema) पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि पार्टी नेतृत्व ने अकाल तख्त के निर्देशों के अनुसार धार्मिक दंड भुगत लिया है और अब वे पवित्र माने जाते हैं। हालांकि, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अकाल तख्त का निर्देश अभी भी प्रभावी है और नए नेता की नियुक्ति आवश्यक थी।
समर्थकों का सुखबीर पर भरोसा बरकरार
सुखबीर के समर्थकों को उनके साहस और नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि जब सुखबीर ने धार्मिक सज़ा भुगती, तब गोल्डन टेंपल के बाहर उन पर जानलेवा हमला भी हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सुखबीर पहली बार दिसंबर 2008 में पार्टी के अध्यक्ष बने थे और उन्हें कॉर्पोरेट स्टाइल की राजनीति का प्रतीक माना गया था।
पार्टी के हालात और चुनौतीपूर्ण सफर
2007 से 2017 तक सत्ता में रही अकाली दल को 2022 के विधानसभा चुनावों में बड़ा झटका लगा, जब वह केवल तीन सीटों पर सिमट गई। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी सिर्फ एक सांसद जिताने में सफल रही।
अकाली दल के सामने नई चुनौतियां
अब पार्टी के सामने कांग्रेस (Congress), आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा (BJP) के अलावा दो बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं — पहली, खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) द्वारा गठित नया दल ‘वारिस पंजाब दे’ (Waris Punjab De), और दूसरी, अकाली दल रिफॉर्म कमेटी के बागी नेता, जो नई पार्टी बना सकते हैं या असली अकाली होने का दावा कर सकते हैं।
105 वर्षों का गौरवशाली इतिहास
शिरोमणि अकाली दल की स्थापना 14 दिसंबर 1920 को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के सहयोग से हुई थी। पार्टी ने आज़ादी की लड़ाई से लेकर गुरुद्वारा सुधार आंदोलन, इमरजेंसी के विरोध और पंजाब की राजनीति में अहम भूमिका निभाई है। 1937 के प्रांतीय चुनावों में 10 सीटें जीतकर राजनीति में कदम रखा और तब से अब तक पार्टी ने कई मुख्यमंत्री (Chief Ministers) दिए हैं, जिनमें से प्रकाश सिंह बादल (Parkash Singh Badal) पांच बार मुख्यमंत्री रहे।
बदलते दौर में पार्टी की टूट-फूट
हालांकि समय-समय पर पार्टी में मतभेद और टूट देखी गई — जैसे मास्टर तारा सिंह (Master Tara Singh) और संत फतेह सिंह (Sant Fateh Singh) का अलग होना, लेकिन आज भी सबसे प्रभावशाली इकाई शिरोमणि अकाली दल (बादल) मानी जाती है।
सुखबीर की वापसी और भविष्य की राह
शनिवार का यह चुनाव पंथक राजनीति के लिए नया अध्याय साबित हो सकता है। पार्टी के इतिहास, संघर्ष और विरासत के बीच सुखबीर बादल की वापसी यह संकेत देती है कि SAD अब खुद को एक बार फिर से संगठित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।