Quota within quota: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में सब-केटेगरी बना सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नौकरियों और दाखिलों में रिजर्वेशन देने के लिए राज्यों को सब-कैटेगरी करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गुरुवार 1 अगस्त का अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाना कि क्या राज्यों को नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण के लिए एससी, एसटी में सब-कैटेगरी करने का अधिकार है? सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी करने की शक्तियां हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोटा के लिए एससी, एसटी में सब-कैटेगरी का आधार राज्यों द्वारा मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 6/1 से ये फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ सहित 6 जजों ने इस पर समर्थन दिखाया, जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी इससे असहमत रहीं हैं।
हाशिए पर पड़े लोगों के लिए कोटा जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि पिछड़े समुदायों में हाशिए पर पड़े लोगों के लिए अलग से कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का सब-कैटेगरी जायज है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पर असहमति जताई है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के 2005 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारों को आरक्षण के उद्देश्य से एससी की सब-कैटेगरियां बनाने का कोई अधिकार नहीं है।