सोनिया तो रायबरेली को अपना बेटा सौंप गईं, लेकिन क्या वायनाड चले जाएंगे राहुल गांधी?

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नई दिल्ली, 06 जून (The News Air) : कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार दो संसदीय क्षेत्रों से चुने गए हैं। राहुल गांधी के पास अभी केरल की वायनाड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट भी आ गई है। जनप्रतिनिधित्व कानून कहता है कि कोई उम्मीदवार ज्यादा से ज्यादा दो निर्वाचन क्षेत्रों से ही चुनाव लड़ सकता है। इसी कानून में कहा गया है कि यदि उम्मीदवार दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से जीत जाता है तो उसे 14 दिनों के भीतर एक सीट खाली करनी होगी, जिसके बाद उस सीट पर उपचुनाव कराया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि राहुल गांधी वायनाड और रायबरेली में कौन सी सीट अपने पास रखेंगे और कौन सी छोड़ेंगे? आइए इसकी पड़ताल करते हैं कि राहुल गांधी किसी एक सीट को रखने और दूसरे को छोड़ने का फैसला किन अहम मुद्दों पर ध्यान रखकर करेंगे।

राहुल की वायनाड से बड़ी जीत रायबरेली में

ध्यान रहे कि राहुल गांधी अभी केरल के वायनाड से ही सांसद हैं। वो 2019 का लोकसभा चुनाव भी दो निर्वाचन क्षेत्रों से लड़े थे। लेकिन तब उन्हें उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार स्मृति इरानी से पराजित होना पड़ा था। इस बार उन्होंने अमेठी की जगह रायबरेली से चुनाव मैदान में ताल ठोंकी थी। इसकी चर्चा बाद में, पहले यह जान लेते हैं कि वायनाड में उनका प्रदर्शन कैसा रहा। राहुल गांधी को केरल की वायनाड सीट से इस बार 59.69% वोट मिले और 26.09% वोट पाने वाले सीपीआई कैंडिडेट को उनसे मात खानी पड़ी। दोनों के बीच 3,64,422 वोटों का अंतर रहा। वोट प्रतिशत के लिहाज से देखें तो राहुल ने 33.6% के अंतर से जीत दर्ज की है।


जहां तक बात उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट की है तो यहां से राहुल गांधी को इस चुनाव में 66.17% वोट मिले। वहां उनसे मात खाए बीजेपी कैंडिडेट के खाते में सिर्फ 28.64% वोट गए। इस तरह, राहुल ने कुल 3,90,030 वोटों (37.53%) से जीत दर्ज की। साफ है कि राहुल के लिए वायनाड के मुकाबले रायबरेली की जीत ज्यादा बड़ी है।


जीत की मार्जिन तो एक बात है, इनसे भी महत्वपूर्ण बातें जिन्हें ध्यान में रखकर ही राहुल आखिरी फैसला ले सकते हैं, उन पर गौर करते हैं….

1. मां सोनिया की अपील का अपमान करेंगे राहुल?

दशकों से लोकसभा में रायबरेली का प्रतिनिधित्व कर रहीं सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए बहुत भावुक अपील की थीं। उन्होंने इस लोकसभा चुनाव में एक ही चुनावी सभा को संबोधित किया था। रायबरेली की उस रैली में सोनिया ने मतदाताओं से बहुत भावुक अपील की थी। सोनिया ने कहा था, ‘मैं आपको अपना बेटा सौंप रही हूं। मुझे पूरी उम्मीद है कि आपने अब तक जैसा ख्याल रखा, वैसी ही देखभाल राहुल की भी करेंगे।’ सोनिया की इस अपील का रायबरेली की जनता ने मान रखा तो क्या राहुल के लिए रायबरेली छोड़ना सोनिया की अपील का अपमान नहीं होगा?

2. केरल की कुल सीटों के बराबर यूपी का यह क्षेत्र

केरल में लोकसभा की सिर्फ 20 सीटें हैं जबकि उत्तर प्रदेश में उसकी चार गुना यानी कुल 80 सीटें। रायबरेली, मध्य यूपी का इलाके में आता है। सेंट्रल यूपी में कुल 20 लोकसभा सीटें आती हैं जो पूरे केरल प्रदेश के बराबर है।

3. यूपी में कांग्रेस का मोमेंटम बनाए रखने का टास्क

केरल में वैसे भी कांग्रेस मजबूत है, उत्तर प्रदेश में इसी हालत जर्जर हो गई है। गांधी परिवार की परंपरागत सीटों होने की वजह से रायबरेली और अमेठी का किला ही बचा हुआ है। 2019 के चुनाव में तो अमेठी भी हाथ से निकल गई थी। इस बार कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन में छह सीटें जीत लीं। प्रदेश में पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़कर दोहरे अंकों के आसपास 9.46% तक पहुंच गया है। ऐसे में राहुल की जरूरत उत्तर प्रदेश को ज्यादा है जहां कांग्रेस पार्टी को मोमेंटम देते रहने की दरकार रहेगी। दूसरी तरफ केरल में कांग्रेस ने 2019 में 20 में से 15 और इस बार 14 सीटें जीती हैं। इसका मतलब है कि राहुल के बिना भी केरल कांग्रेस के लिए ठीक परिणाम देता रहेगा।

4. केरल में पहले से ही मजबूत है कांग्रेस

केरल में इस बार बीजेपी ने कमल खिलाने का इतिहास रच दिया है। लेकिन उसने कांग्रेस को नहीं बल्कि वाम दलों के वोट लिए हैं। बीजेपी को वहां जड़ जमाने और कांग्रेस को झटका देने की स्थित में आने में अच्छा-खासा वक्त लग सकता है। बीजेपी अगर केरल में बढ़ी तो पूरी गुंजाइश है कि वह वाम दलों की कीमत पर बढ़ेगी ना कि कांग्रेस को झटका देकर। ऐसे में राहुल को रायबरेली छोड़कर वायनाड में बने रहने की मजबूरी नहीं है।

5. वाम दल की नाराजगी भी होगी दूर

राहुल के केरल से दूर रहने का दबाव भी है। इस बार वाम दलों ने राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने पर घोर आपत्ति जताई थी। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन तक ने सार्वजनिक बयान दिए थे कि कांग्रेस पार्टी हमारी गठबंधन साथी है तो फिर राहुल यहां से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं, उन्हें तो बीजेपी से मुकाबला करना चाहिए। अगर राहुल वायनाड छोड़कर रायबरेली में रहते हैं तो वाम दल की भी शिकायत दूर हो जाएगी और आपसी रिश्ते मजबूत होंगे।

6. ‘मुस्लिम लीग’ वाले आरोप से बचेगी कांग्रेस

वायनाड में राहुल को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का सहारा लेना पड़ता है। इससे बीजेपी को देशभर में कांग्रेस की छवि धूमिल करने का मौका मिल जाता है। बीजेपी आरोप लगाती है कि कांग्रेस मूलतः मुस्लिम पार्टी है और वो कट्टरपंथी मुसलमानों के साथ है। अगर राहुल वायनाड से चले आते हैं तो उन्हें आईयूएमएल से नजदीकी रिश्ते रखने की मजबूरी भी नहीं रहेगी और बीजेपी के हाथ से एक बड़ा हथियार छिन सकता है।

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