Freedom of Speech Regulation को लेकर आज (सोमवार, 14 जुलाई) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression) है, लेकिन इसके साथ आत्मनियमन और भाईचारा भी आवश्यक है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया के मौजूदा माहौल में बढ़ती विभाजनकारी प्रवृत्तियों (Divisive Trends) पर गंभीरता से विचार करना होगा और नागरिकों को इस अधिकार के साथ जुड़ी ज़िम्मेदारियों को भी समझना चाहिए।
जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) और जस्टिस केवी विश्वनाथन (Justice KV Viswanathan) की पीठ ने कहा कि राज्य (State) या सरकार (Government) को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए कुछ तार्किक सीमाएं (Reasonable Restrictions) जरूरी हैं। अदालत का स्पष्ट कहना था कि सेंसरशिप (Censorship) नहीं बल्कि आत्मसंयम (Self-restraint) इस दिशा में सबसे कारगर उपाय है।
इस संदर्भ में कोर्ट सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर (Social Media Influencer) शर्मिष्ठा पनोली (Sharmistha Panoli) के खिलाफ वजाहत खान (Wajahat Khan) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्यों और केंद्र सरकार (States and Central Government) को निर्देश दिया कि सोशल मीडिया पर बढ़ते हेट स्पीच (Hate Speech) और अभद्र भाषा (Offensive Language) पर नियंत्रण किया जाए, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पवित्रता (Sanctity) को कोई आघात न पहुंचे।
पीठ ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हेट स्पीच को शेयर, लाइक या प्रमोट करने से नागरिकों को खुद को रोकना चाहिए। अदालत ने कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर प्रसारित की जाने वाली विषयवस्तु को देखने में संयम और विवेक जरूरी है। कोर्ट ने आत्मनियमन और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर विशेष बल देते हुए यह भी कहा कि कोई भी नहीं चाहता कि सरकार इस पर नियंत्रण करे, लेकिन अगर लोग खुद यह दायित्व नहीं निभाएंगे तो परिस्थिति विकट हो सकती है।
गौरतलब है कि वजाहत खान पर विभिन्न राज्यों में धार्मिक विद्वेष फैलाने के आरोप में कई प्राथमिकियां दर्ज हैं। पश्चिम बंगाल (West Bengal) में दर्ज मामलों में वह न्यायिक हिरासत में थे और 3 जुलाई को कोलकाता (Kolkata) की निचली अदालत से उन्हें जमानत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन हफ्ते पहले पश्चिम बंगाल के बाहर दर्ज प्राथमिकियों में उनकी गिरफ्तारी पर भी रोक लगाई थी।
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख यह संकेत देता है कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित रखने के साथ-साथ नागरिकों को संवेदनशीलता, संयम और जिम्मेदारी की भावना से भी जुड़ना होगा। डिजिटल युग में जहां हर व्यक्ति एक प्रसारक बन गया है, वहीं यह ज़रूरी हो गया है कि भाषा की मर्यादा और सामाजिक सौहार्द को प्राथमिकता दी जाए।