Indian Economy and Rupee Fall के मोर्चे पर देश के लिए बुधवार की सुबह एक ऐसी खबर लेकर आई जिसने इतिहास बना दिया, लेकिन यह इतिहास गर्व करने वाला नहीं बल्कि चिंता बढ़ाने वाला है। 3 दिसंबर को पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 90 के स्तर को पार कर गया। यह गिरावट सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी की जेब पर एक बड़ा प्रहार है।
जब रुपया 89 के पार गया था, तब भी इतिहास बना था, लेकिन अब 90.14 का स्तर छूना एक गंभीर संकेत है। उद्योगपति उदय कोटक ने भी इशारा किया है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालकर भाग रहे हैं और उनकी जगह भारतीय निवेशक खरीद रहे हैं। समय ही बताएगा कि असली ‘स्मार्ट’ कौन है, लेकिन फिलहाल डॉलर के टर्म में निफ्टी का एक साल का रिटर्न शून्य दिखाई दे रहा है।

महंगाई का बवंडर और आम आदमी
रुपये की इस गिरावट को लेकर अगर आप बेफिक्र हैं, तो जरा ठहरिए। अप्रैल से अक्टूबर 2025 के बीच भारत का इंपोर्ट बिल करीब 650 बिलियन डॉलर यानी 58 लाख करोड़ रुपये रहा है। रुपया कमजोर होने का सीधा मतलब है कि विदेश से आने वाला कच्चा तेल, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाने-पीने का सामान महंगा होगा। जब क्रूड ऑयल महंगा होगा, तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे और इसका असर सब्जी-फल से लेकर ट्रांसपोर्ट तक हर चीज पर दिखेगा। विदेश में पढ़ना और घूमना भी अब सपना जैसा हो जाएगा।
PM Internship Scheme: विज्ञापनों में शोर, हकीकत में सन्नाटा
एक तरफ गिरता रुपया है, तो दूसरी तरफ युवाओं के लिए लाई गई महत्वकांक्षी योजनाओं का सच। 2024 के बजट में जिस ‘पीएम इंटर्नशिप योजना’ (PM Internship Scheme) का खूब ढिंढोरा पीटा गया था, उसके आंकड़े संसद में सामने आए हैं। सरकार ने दावा किया था कि 5 साल में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप मिलेगी। लेकिन हकीकत यह है कि 26 नवंबर 2025 तक पहले दौर में महज 206 छात्रों ने ही इंटर्नशिप पूरी की है।
हैरानी की बात यह है कि इस योजना पर सरकार ने 73 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसमें से 16 करोड़ रुपये से ज्यादा तो सिर्फ विज्ञापनों पर उड़ा दिए गए। इतना ही नहीं, 4,566 छात्रों ने इंटर्नशिप बीच में ही छोड़ दी। तृणमूल कांग्रेस की सांसद जून मालिया के सवाल पर सरकार ने बताया कि इंटर्नशिप के बाद केवल 95 लोगों को ही 17 कंपनियों में नौकरी मिली है।
नौकरियां क्यों नहीं मिल रही?
नौकरियों के सूखे का असली कारण कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के संजीव प्रसाद ने समझाया है। पिछले 5 सालों में आईपीओ (IPO) के जरिए बाजार से करीब 100 बिलियन डॉलर जुटाए गए। लेकिन इसमें से 40% पैसा तो प्रमोटरों ने अपने शेयर बेचकर (Offer for Sale) अपनी जेब में रख लिया। जो बाकी 60% पैसा कंपनियों के पास गया, उसमें से भी मुश्किल से 15% ही नई फैक्ट्री या मशीनरी लगाने में खर्च हुआ। जब नई फैक्ट्री ही नहीं लगेगी, तो नौकरियां कहां से पैदा होंगी? प्रमोटर अपना रिस्क आम जनता के कंधों पर डालकर निकल रहे हैं।
कंपनियां बंद, नाम बदलने का खेल जारी
लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 5 सालों में 2 लाख से ज्यादा कंपनियां बंद हो गई हैं। अकेले 2022-23 में 83,452 कंपनियां बंद हुईं। लेकिन इन गंभीर आर्थिक मुद्दों पर बात करने के बजाय सरकार नाम बदलने में व्यस्त है। प्रधानमंत्री आवास का नाम ‘लोक निवास’ और पीएमओ कॉम्प्लेक्स का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखने की खबरें आ रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नाम बदलने से अर्थव्यवस्था की सेहत सुधर जाएगी?
मुख्य बातें (Key Points)
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3 दिसंबर को पहली बार 1 डॉलर की कीमत 90.14 रुपये तक पहुंच गई।
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PM Internship Scheme के तहत 16 करोड़ विज्ञापन पर खर्च हुए, लेकिन नौकरी सिर्फ 95 लोगों को मिली।
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विदेशी निवेशकों ने 2025 में भारतीय बाजार से करीब 2 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं।
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पिछले 5 सालों में देश में 2 लाख से ज्यादा कंपनियां बंद हो चुकी हैं।






