Shortage of small currency notes देश के कई हिस्सों में इन दिनों छोटे मूल्य के नोटों की भारी किल्लत हो गई है, जिससे आम आदमी की जेब और दैनिक लेनदेन पर बुरा असर पड़ रहा है। अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ (AIRBEA) ने इस गंभीर स्थिति पर चिंता जताते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को पत्र लिखा है। संघ का दावा है कि खासकर ग्रामीण इलाकों और कस्बों में 10, 20 और 50 रुपये के नोट बाजार से लगभग गायब हो चुके हैं, जिससे छोटे कारोबारियों और आम जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिलने के बावजूद एक बड़ी आबादी आज भी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नकद पर निर्भर है। ऐसे में छोटे नोटों का न मिलना बाजार की पूरी व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। कर्मचारी संघ ने आरबीआई के मुद्रा प्रबंधन विभाग के प्रभारी डिप्टी गवर्नर टी. रबी शंकर को पत्र भेजकर इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की है।
ATM और बैंकों से गायब हुए छोटे नोट
कर्मचारी संघ ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि वर्तमान में एटीएम से ज्यादातर बड़े मूल्य के नोट ही निकल रहे हैं। इतना ही नहीं, बैंकों की शाखाएं भी ग्राहकों को उनकी मांग के अनुसार 10, 20 या 50 रुपये के नोट उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं। इस वजह से स्थानीय परिवहन, किराना खरीदारी और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए भुगतान करना लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
डिजिटल पेमेंट नहीं है नकद का पूर्ण विकल्प
AIRBEA का मानना है कि भले ही देश में डिजिटल भुगतान की रफ्तार बढ़ी है, लेकिन चलन में मौजूद कुल मुद्रा में भी लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। संघ के मुताबिक, डिजिटल भुगतान अभी भी उस बड़ी आबादी का पूरी तरह विकल्प नहीं बन सकता जो आज भी छोटे-मोटे खर्चों के लिए केवल नकद पर ही भरोसा करती है। छोटे नोटों की कमी ने इस आबादी को सीधे तौर पर संकट में डाल दिया है।
सिक्कों की उपलब्धता भी पड़ी कम
नोटों की कमी को देखते हुए सिक्कों के प्रचलन को बढ़ाने की कोशिशें की गई थीं, लेकिन वे भी पर्याप्त सफलता हासिल नहीं कर पाईं। इसका मुख्य कारण सिक्कों की पर्याप्त उपलब्धता न होना बताया गया है। संघ ने सुझाव दिया है कि वाणिज्यिक बैंकों और आरबीआई काउंटर के जरिए छोटे नोटों का प्रसार बढ़ाया जाए ताकि आम लोगों तक नकदी आसानी से पहुंच सके।
‘कॉइन मेला’ फिर से शुरू करने का सुझाव
बाजार में छोटे मूल्य की मुद्रा के संचार को दुरुस्त करने के लिए कर्मचारी संघ ने ‘कॉइन मेला’ दोबारा शुरू करने की वकालत की है। सुझाव दिया गया है कि इन मेलों का आयोजन पंचायतों, सहकारी संस्थाओं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर किया जाए। इससे न केवल सिक्कों का प्रचलन बढ़ेगा, बल्कि दूर-दराज के इलाकों में मुद्रा की कमी की समस्या भी दूर होगी।
अनुभवी संपादक का विश्लेषण
एक वरिष्ठ पत्रकार के तौर पर यह स्पष्ट है कि मुद्रा प्रबंधन में आई यह कमी केवल एक तकनीकी खामी नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा अवरोध है। जब बाजार से छोटे नोट गायब होते हैं, तो सबसे पहले उसका असर रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे दुकानदारों पर पड़ता है। डिजिटल क्रांति अपनी जगह है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत आज भी ‘खुले पैसों’ के इर्द-गिर्द घूमती है। आरबीआई को इस दिशा में तुरंत कदम उठाने होंगे ताकि जनता का बैंकिंग प्रणाली पर भरोसा बना रहे।
जानें पूरा मामला
अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ ने देशभर में छोटे नोटों की उपलब्धता न होने पर आरबीआई को चेताया है। संघ का कहना है कि 100, 200 और 500 रुपये के नोट तो आसानी से मिल रहे हैं, लेकिन छोटे नोटों की कमी ने दैनिक जीवन की लय बिगाड़ दी है। इसके समाधान के लिए अब केंद्रीय बैंक से तत्काल कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है।
मुख्य बातें (Key Points)
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नोटों की कमी: देश के कस्बों और गांवों में 10, 20 और 50 रुपये के नोटों की गंभीर किल्लत हो गई है।
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ATM की स्थिति: एटीएम से केवल 100, 200 और 500 जैसे उच्च मूल्य के नोट ही निकल रहे हैं।
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जनता पर असर: स्थानीय परिवहन और किराने जैसे दैनिक लेनदेन में नकद की कमी से मुश्किलें बढ़ी हैं।
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समाधान के सुझाव: कर्मचारी संघ ने आरबीआई से ‘कॉइन मेला’ दोबारा शुरू करने और नोटों की सप्लाई सुधारने की मांग की है।






