Punjab DGP Summoned: पंजाब की सियासत और पुलिस महकमे में उस वक्त हड़कंप मच गया जब भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) गौरव यादव को तलब कर लिया। यह मामला तरनतारन उपचुनाव के दौरान पुलिस की कार्यप्रणाली, विपक्ष के आरोपों और दर्ज की गई एफआईआर पर उठे गंभीर सवालों से जुड़ा है।
पंजाब के इतिहास में ऐसे मौके बहुत कम देखे गए हैं जब चुनाव आयोग को किसी राज्य के पुलिस प्रमुख को सीधे तलब करना पड़ा हो। आमतौर पर हाई कोर्ट की फटकार या पेशी आम बात हो सकती है, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा डीजीपी गौरव यादव को बुलाया जाना एक बेहद गंभीर संकेत है। यह समन सीधे तौर पर उन 9 एफआईआर (FIR) से जुड़ा है जो उपचुनावों के दौरान और उसके बाद अकाली दल के वर्करों के खिलाफ दर्ज की गई थीं।
अभूतपूर्व है यह समन
मामला केवल मुकदमों तक सीमित नहीं है। अकाली दल ने चुनाव आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई थी कि पुलिस प्रशासन सत्ताधारी पक्ष के इशारे पर काम कर रहा है। आयोग ने इसे गंभीरता से लिया और पहले कार्रवाई करते हुए दो डीएसपी का तबादला किया, जिनके बारे में शिकायत थी कि उनकी पोस्टिंग चुनाव को प्रभावित करने के लिए की गई है।
इसके बाद, आयोग और पंजाब सरकार ने अलग-अलग संदर्भों में एसएसपी डॉ. रवजोत कौर ग्रेवाल को सस्पेंड कर दिया। यह कार्रवाई तब हुई जब अकाली दल ने आरोप लगाया कि एसएसपी और निचला पुलिस अमला नतीजों को प्रभावित करने के लिए विपक्ष को निशाना बना रहा है।
कंचनप्रीत का पीछा और फर्जी नंबर प्लेट
विवाद ने तूल तब पकड़ा जब 6 नवंबर को अकाली उम्मीदवार प्रिंसिपल सुखविंदर कौर रंधावा की बेटी कंचनप्रीत के साथ एक अजीब घटना घटी। कंचनप्रीत, जो अपनी मां के प्रचार का मुख्य चेहरा थीं, का कुछ लोगों ने पीछा किया। जब अकाली वर्करों ने उन्हें रोका और वीडियो बनाई, तो पता चला कि सादे कपड़ों में पुलिस कर्मचारी (सीआईए स्टाफ) ही उनका पीछा कर रहे थे।
हैरानी की बात यह सामने आई कि जिन गाड़ियों से पीछा किया जा रहा था, उन पर फर्जी नंबर प्लेटें लगी थीं। इस घटना ने पुलिस की भूमिका पर बड़े सवाल खड़े कर दिए। इसे कंचनप्रीत की जासूसी और उन्हें परेशान करने (hounding) की कोशिश के तौर पर देखा गया। बाद में कंचनप्रीत पर ही मुकदमा दर्ज कर दिया गया और अब बताया जा रहा है कि वह गिरफ्तारी से बचने के लिए नेपाल या किसी अन्य रास्ते से बाहर चली गई हैं।
जांच रिपोर्ट और डीजीपी की पेशी
एसएसपी के निलंबन के तुरंत बाद, चुनाव आयोग ने डीजीपी को आदेश दिया था कि चुनाव के दौरान दर्ज सभी एफआईआर की समीक्षा (Review) की जाए। शर्त यह थी कि यह जांच एडीजीपी (ADGP) रैंक से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा। डीजीपी गौरव यादव ने यह जिम्मेदारी स्पेशल डीजीपी राम सिंह को सौंपी।
राम सिंह ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उस रिपोर्ट के तथ्यों और एफआईआर के औचित्य को लेकर चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं है या उसे और स्पष्टीकरण चाहिए। इसी रिपोर्ट और जमीनी हालात को आधार बनाकर आयोग ने डीजीपी को 25 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर जवाब देने को कहा है।
गैंगस्टरवाद बनाम पुलिसिया कार्रवाई
इस पूरे घटनाक्रम में एक दिलचस्प पहलू ‘गैंगस्टरवाद’ का भी है। सत्ताधारी पक्ष ने चुनाव बाद आरोप लगाया कि अकाली दल ने गैंगस्टर अमृत बाठ (जो विदेश में है) की मदद ली। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर गैंगस्टर चुनाव प्रभावित कर रहे थे, तो प्रशासन ने उन्हें पहले क्यों नहीं रोका?
जानकारों का कहना है कि एसएसपी के सस्पेंड होने के बाद सरकार ‘पैनिक मोड’ में आ गई और बदले की भावना से कार्रवाई शुरू कर दी। चुनाव जीतने के बाद भी गिरफ्तारियों का दौर जारी रहना और अकाली आईटी विंग के प्रमुख नछत्तर सिंह की गिरफ्तारी इसी कड़ी का हिस्सा मानी जा रही है। अब डीजीपी को आयोग के सामने यह साबित करना होगा कि पुलिस की कार्रवाई निष्पक्ष थी या वे महज ‘कठपुतली’ की तरह काम कर रहे थे।
‘जानें पूरा मामला’
तरनतारन उपचुनाव के दौरान शिरोमणि अकाली दल ने पुलिस पर सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में काम करने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि उनके समर्थकों पर झूठे पर्चे दर्ज किए जा रहे हैं। आयोग ने सख्ती दिखाते हुए पहले अधिकारियों को हटाया और अब सीधे डीजीपी को तलब किया है, जो यह दर्शाता है कि आयोग पुलिस की दलीलों से पूरी तरह सहमत नहीं है।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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चुनाव आयोग ने पंजाब के डीजीपी गौरव यादव को 25 नवंबर को तलब किया है।
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यह मामला तरनतारन उपचुनाव में अकाली वर्करों पर दर्ज 9 एफआईआर और पुलिसिया पक्षपात से जुड़ा है।
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चुनाव के दौरान एसएसपी रवजोत कौर ग्रेवाल को सस्पेंड किया गया था और दो डीएसपी का तबादला हुआ था।
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अकाली उम्मीदवार की बेटी कंचनप्रीत का पुलिस द्वारा फर्जी नंबर प्लेट वाली गाड़ियों से पीछा करने का मामला भी तूल पकड़ गया है।






