Supreme Court Presidential Reference Verdict : सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि अदालतें राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी विधेयक (Bill) पर निर्णय लेने की कोई निश्चित समय सीमा (Timeline) तय नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे इन उच्च अधिकारियों के लिए ‘डेडलाइन’ निर्धारित करना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि राज्यपाल किसी भी बिल को अनिश्चितकाल के लिए दबाकर बैठ जाएं।
‘अनिश्चितकाल तक बिल रोकना गलत’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने का अधिकार कोर्ट के पास नहीं है, तो इसका लाभ उठाकर वे बिलों को हमेशा के लिए रोक नहीं सकते। पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘डीम्ड असेंट’ (Deemed Assent) यानी ‘मान ली गई मंजूरी’ का सिद्धांत संविधान की मूल भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है।
जस्टिस बी.आर. गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अगर राज्यपाल किसी बिल को मंजूरी नहीं देना चाहते, तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा और बिल को सदन के पास पुनर्विचार के लिए भेजना होगा।
संवाद से हल निकालें, रुकावट न बनें
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को नसीहत देते हुए कहा कि भारत के संघीय ढांचे (Federalism) में राज्यपाल को राज्य सरकार और विधानसभा के साथ सहयोग का रवैया अपनाना चाहिए। यदि किसी बिल पर मतभेद है, तो उन्हें बातचीत के जरिए इसे सुलझाना चाहिए, न कि रुकावट डालने वाली प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर राज्यपाल बिना किसी ठोस कारण और प्रक्रिया के बिलों को रोकते हैं, तो यह संघवाद की भावना के खिलाफ माना जाएगा। राज्यपाल का काम संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर रहकर चुनी हुई सरकार के कामकाज में सहयोग करना है।
जानें पूरा मामला
यह पूरा विवाद तमिलनाडु सरकार और वहां के राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच हुई तनातनी से उपजा था। इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि जब राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर 3 महीने के अंदर फैसला लेना होगा। इस फैसले को संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन मानते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत ‘प्रेसिडेंशियल रेफरेंस’ (Presidential Reference) का इस्तेमाल किया था और सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर राय मांगी थी। इसी पर अब 5 जजों की पीठ ने यह बड़ा फैसला सुनाया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल पास करने की समय सीमा तय नहीं की जा सकती।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक रोक कर नहीं रख सकते।
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विवाद होने पर राज्यपालों को विधानसभा के साथ बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए।
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यह फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा मांगे गए ‘प्रेसिडेंशियल रेफरेंस’ पर आया है।






