मुंबई, 24 मार्च (The News Air): लोकसभा चुनाव 2024 का शंखनाद हो चुका है। इस बीच वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) प्रमुख प्रकाश आंबेडकर (Prakash Ambedka) ने रविवार को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) से नाता तोड़ लिया। इसके अलावा उन्होंने सीट बंटवारे को लेकर महाविकास अघाड़ी (MVA) में मचे घमासान के बीच चेतावनी दी है कि 26 मार्च से पहले निर्णय लें। वरना वह खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा कि आघाडी के घटक दल कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव सेना में सीट बंटवारे का निर्णय नहीं हो पाया है। तीनों के बीच कई सीटों पर खींचतान चल रही है। खासकर पश्चिम महाराष्ट्र की सांगली सीट पर दोनों दल आमने-सामने हैं।
कब बना भीमशक्ति-शिवशक्ति गठबंधन? : दरअसल आंबेडकर ने पिछले नवंबर में शिवसेना (यूबीटी) के साथ भीमशक्ति-शिवशक्ति गठबंधन बनाया था। उन्होंने एमवीए घटक कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) और शिव सेना (यूबीटी) पर अनदेखी की बात कहते हुए स्वयं के राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया। वीबीए प्रमुख के इस कदम को पार्टी का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने या समान विचारधारा वाले बीजेपी विरोधी या कांग्रेस विरोधी दलों के साथ गठबंधन करने के इरादे के रूप में माना जाता है। कुछ ऐसा ही उन्होंने पांच साल पहले यानी पिछले लोकसभा चुनाव में किया था। आंबेडकर ने कहा कि मैंने एमवीए को 26 मार्च का अल्टीमेटम दिया है। तब तक सीट-बंटवारे का संकट समाप्त हो जाना चाहिए। यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता।
संजय राउत ने गठबंधन टूटने पर क्या कहा? : उधर, शिव सेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा कि भीमशक्ति शिवशक्ति गठबंधन राजनीतिक रूप से प्रेरित नहीं था। इसे सामाजिक उद्देश्य के लिए बनाया गया था। क्योंकि उद्धव के दादा केशव ठाकरे, जिन्हें प्यार से प्रबोधनकर कहा जाता था और वीबीए के प्रमुख दादा डॉ बीआर आंबेडकर ने जातिवाद के खिलाफ मिलकर काम किया था। राउत ने कहा कि हम प्रकाश आंबेडकर से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहेंगे, जो कि बी आर अंबेडकर के पोते हैं। उन्होंने कहा कि वे बीजेपी और उसकी तानाशाही के खिलाफ लड़ाई को एक साझा एजेंडा बनाने की उम्मीद करते हैं।
आंबेडकर की पार्टी ने कांग्रेस-एनसीपी को कैसे पहुंचाई थी चोट : सेना (यूबीटी) प्रमुख ने कहा कि वीबीए के साथ गठजोड़ उनकी कीमत पर नहीं होगा। एमवीए साझेदार जिनके समर्थन से उन्होंने 2019 में सरकार बनाई थी। बीजेपी विरोधी वोटों के विभाजन के डर से एमवीए वीबीए की मांग कर रहा है। भले ही पार्टी के पास कोई विधायक या सांसद नहीं है। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले वीबीए ने बीजेपी विरोधी पार्टियों के साथ गठबंधन किया था। वीबीए ने असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम के साथ गठबंधन किया। पार्टी को लगभग 35 लाख वोट मिले और उसके उम्मीदवारों ने कम से कम आठ से 10 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी (तब गठबंधन में) की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया। कहा जाता है कि उस साल बाद में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने धर्मनिरपेक्ष वोटों को विभाजित किया और कम से कम 32 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस-एनसीपी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया।
वीबीए क्यों चाहती हैं ज्यादा सीट : वरिष्ठ कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट ने कहा कि एमवीए का नजरिया हमेशा समान विचारधारा वाले धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट करने का रहा है। उन्होंने कहा कि वीबीए एक महत्वपूर्ण सहयोगी है और हम चाहते हैं कि वह एमवीए में बना रहे। एमवीए के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि वीबीए की कड़ी सौदेबाजी गठबंधन के नेताओं को पसंद नहीं आई। कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग ने दावा किया कि वीबीए को गठबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं है और यही कारण है कि उसने अनुचित मांगें रख रही है। समझा जाता है कि एमवीए ने आंबेडकर के नेतृत्व वाले संगठन को चार सीटों की पेशकश की है, जिसकी नजर आठ सीटों पर है। वीबीए का तर्क यह है कि सेना और एनसीपी में विभाजन के बाद पार्टियां काफी कमजोर हो गई हैं और गठबंधन के सभी घटक समान भागीदार हैं।