मणिपुर, 20 नवंबर (The News Air): मणिपुर में हालिया हिंसा के बाद, राष्ट्रपति शासन की संभावनाओं पर चर्चा फिर से तेज़ हो गई है। राज्य के राजनीतिक और सुरक्षा संकट को लेकर यह बहस गर्मा रही है। यह मुद्दा द फेडरल के विशेष कार्यक्रम कैपिटल बीट में चर्चा का विषय रहा इस कार्यक्रम में होस्ट नीलू व्यास ने कुछ मणिपुर की राजनीतिक पर तस्वीर पर कुछ तीखे सवाल किए। मणिपुर के हर एक पहलू को समझने समझाने के लिए राइट्स एंड रिस्क्स एनालिसिस ग्रुप के निदेशक सुहास चकमा, जेएनयू के प्रोफेसर थोंगखोलाल हाओकिप और द फेडरल के वरिष्ठ संपादक समीर पुरी कायस्थ ने अपने विश्लेषण को पेश किया।
अशांति और राजनीतिक उथल-पुथल
सप्ताहांत में मणिपुर के जिरीबाम जिले में छह शव मिलने से राज्य में फिर से जातीय और राजनीतिक तनाव बढ़ गया। इसके बाद, नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) ने भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इस उथल-पुथल के बीच, कांग्रेस अध्यक्ष के. मेघचंद्र ने घोषणा की कि वह और सभी कांग्रेस विधायक इस्तीफा देने को तैयार हैं, ताकि नए चुनावों के माध्यम से शांति स्थापित हो सके। वहीं, खबरें हैं कि मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह द्वारा बुलाई गई बैठक में 25 भाजपा विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया, जो आंतरिक असंतोष को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांगों के बावजूद, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बिरेन सिंह को बनाए रखने का निर्णय लिया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बिगड़ती सुरक्षा और जन असंतोष के बीच उनका पद पर बने रहना अब असंभव सा लग रहा है। यहां तक कि मणिपुर की मेइती समुदाय, जो भाजपा का मजबूत आधार है, भी अब सरकार से नाराज है।
विशेषज्ञों की राय
सुहास चकमा ने त्वरित कार्रवाई की वकालत करते हुए कहा कि राज्य की समस्याओं के समाधान के लिए केवल मुख्यमंत्री को हटाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि पूरी शासन व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है। हालांकि, उन्होंने राष्ट्रपति शासन लागू करने को लेकर केंद्र की अनिच्छा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति शासन लगाने से सीधे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर जवाबदेही आ जाएगी, जो केंद्र नहीं चाहेगा।”
समीर पुरी कायस्थ ने एनपीपी के समर्थन वापसी के राजनीतिक प्रभावों को रेखांकित करते हुए कहा कि इससे भाजपा सरकार कमजोर हो सकती है, लेकिन यह सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। उन्होंने सामाजिक विश्वास बहाली और समुदायों के बीच मेल-मिलाप की आवश्यकता पर जोर दिया, क्योंकि संकट अब केवल सैन्य या राजनीतिक कार्रवाई से हल नहीं हो सकता।
जटिल संकट की परतें
प्रोफेसर थोंगखोलाल हाओकिप ने इस संकट को राजनीतिक चालबाजियों और जातीय तनाव को दूर करने में राज्य की विफलता से जोड़ा। उन्होंने भाजपा की निर्णय लेने में देरी की आलोचना की। उन्होंने कहा, “नेतृत्व में बदलाव या रणनीति में सुधार पहले ही किया गया होता, तो स्थिति इतनी न बिगड़ती।”
हाल में इंफाल घाटी के छह इलाकों में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) लागू किया गया, जिससे बीते कुछ दिनों में हिंसा में कमी आई। हालांकि, इस कदम ने केंद्र और राज्य सरकार के बीच मतभेद को उजागर किया, क्योंकि बिरेन सिंह ने AFSPA के पुनः लागू होने का विरोध किया है।
आगे क्या होगा?
जहां कई लोग मानते हैं कि राष्ट्रपति शासन राज्य की समस्याओं का समाधान निकालने के लिए एक निष्पक्ष मंच प्रदान कर सकता है, वहीं चकमा और हाओकिप को केंद्र द्वारा इस राजनीतिक रूप से जोखिम भरे कदम को उठाने पर संदेह है। इसके बजाय, भाजपा नेतृत्व सावधानी से कदम बढ़ा रहा है और बिरेन सिंह को हटाने के कोई संकेत नहीं दिखा रहा है।
समीर पुरी कायस्थ ने निष्कर्ष निकाला कि स्थायी समाधान के लिए सामाजिक पहल और युद्धरत जातीय समूहों के बीच सार्थक संवाद की आवश्यकता होगी। उन्होंने चेतावनी दी, “नेतृत्व का अभाव और नीतिगत दिशा की कमी इस संकट को और बढ़ा रही है। विश्वास बहाली और सहयोग के बिना, हिंसा जारी रहेगी।”
निष्कर्ष
मणिपुर की स्थिति नाजुक बनी हुई है। राजनीतिक अस्थिरता और जातीय हिंसा ने राज्य को संकट के कगार पर ला दिया है। क्या केंद्र राष्ट्रपति शासन लगाएगा या अन्य निर्णायक कदम उठाएगा, यह अभी अनिश्चित है। मणिपुर की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी नेतृत्व और एकजुट सामाजिक दृष्टिकोण की सख्त आवश्यकता है