Vande Mataram Controversy Parliament: संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ को लेकर एक बार फिर सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। सदन के भीतर इतिहास के पन्ने पलटते हुए जहां एक तरफ कांग्रेस पर ‘तुष्टीरण’ और देश के बंटवारे का आरोप लगाया गया, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने पलटवार करते हुए इसे बंगाल चुनाव और सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की साजिश करार दिया।
यह बहस उस वक्त तीखी हो गई जब सत्ता पक्ष की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू और वंदे मातरम को लेकर 1937 की घटनाओं का जिक्र किया गया।
‘नेहरू, जिन्ना और 1937 का वो खत’
सदन में इतिहास का हवाला देते हुए दावा किया गया कि पिछली सदी में वंदे मातरम के साथ बड़ा अन्याय हुआ। आरोप लगाया गया कि जब 15 अक्टूबर 1937 को मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से वंदे मातरम के खिलाफ नारा बुलंद किया, तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता हुआ दिखा।
दावा किया गया कि नेहरू ने मुस्लिम लीग को करारा जवाब देने के बजाय तुष्टीरण की राह चुनी। 20 अक्टूबर को उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने जिन्ना की भावनाओं से सहमति जताते हुए कहा कि ‘वंदे मातरम’ की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है।
‘वंदे मातरम के टुकड़े करने का आरोप’
सत्ता पक्ष ने आरोप लगाया कि 26 अक्टूबर को कोलकाता में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई, जिसमें वंदे मातरम की समीक्षा की गई और अंततः इस गीत के ‘टुकड़े’ कर दिए गए। इसे सामाजिक सद्भाव का चोला पहनाया गया, लेकिन असल में यह मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेकने जैसा था। वक्ता ने कहा कि इसी तुष्टीरण की राजनीति के कारण कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा।
‘प्रियंका गांधी का पलटवार: बंगाल चुनाव है मकसद’
इस हमले का जवाब देने के लिए जब प्रियंका गांधी खड़ी हुईं, तो उन्होंने सरकार की मंशा पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री भाषण तो अच्छा देते हैं, थोड़ा लंबा होता है, लेकिन तथ्यों में कमजोर पड़ जाते हैं। प्रियंका ने सीधा आरोप लगाया कि आज सदन में राष्ट्रगीत पर बहस सिर्फ दो वजहों से हो रही है।
पहला कारण उन्होंने आगामी ‘बंगाल चुनाव’ बताया, जिसमें प्रधानमंत्री अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। दूसरा कारण, स्वतंत्रता सेनानियों पर नए आरोप मढ़कर देश का ध्यान जनता के असली और ज्वलंत मुद्दों से भटकाना है।
‘प्रधानमंत्री वो नहीं रहे जो थे’
अपने भाषण में प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमला भी बोला। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि “आज मोदी जी वह प्रधानमंत्री नहीं रहे जो एक समय में थे।” उन्होंने दावा किया कि पीएम का आत्मविश्वास घटने लगा है और उनकी नीतियां देश को कमजोर कर रही हैं।
प्रियंका ने कहा कि सत्ता पक्ष के लोग भी दबी जुबान में मानते हैं कि सारी सत्ता एक जगह केंद्रित करने से देश का नुकसान हो रहा है।
‘वंदे मातरम कण-कण में है, बहस की जरूरत नहीं’
बहस को समाप्त करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि यह सरकार वर्तमान और भविष्य की ओर देखना ही नहीं चाहती, इसलिए बार-बार अतीत में मंडराती रहती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम भारत के कण-कण में जीवित है और इस पर किसी बहस की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सरकार सिर्फ शोर मचाकर असल मुद्दों से भागना चाहती है।
‘जानें पूरा मामला’
संसद में यह पूरा विवाद वंदे मातरम के इतिहास और उसके राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर शुरू हुआ। सत्ता पक्ष ने 1937 में कांग्रेस द्वारा वंदे मातरम के कुछ हिस्सों को हटाकर उसे संक्षिप्त करने के फैसले को मुस्लिम तुष्टीरण बताया। इसके जवाब में विपक्ष ने इसे वर्तमान राजनीति और चुनावों से प्रेरित मुद्दा बताया। यह बहस ऐतिहासिक तथ्यों बनाम वर्तमान राजनीतिक चुनौतियों (जैसे बेरोजगारी, महंगाई) के बीच सिमट कर रह गई।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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सत्ता पक्ष ने नेहरू पर 1937 में जिन्ना के दबाव में वंदे मातरम से समझौता करने का आरोप लगाया।
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प्रियंका गांधी ने कहा कि यह बहस सिर्फ बंगाल चुनाव को ध्यान में रखकर की जा रही है।
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कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार अपनी नाकामियों और ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटका रही है।
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प्रियंका गांधी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास गिर रहा है और जनता नाखुश है।






