Asaduddin Owaisi Vande Mataram: लोकसभा में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर चल रही चर्चा के दौरान एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक जोरदार भाषण दिया है, जिसने सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है। ओवैसी ने साफ शब्दों में कहा कि देशभक्ति को किसी एक धर्म या पहचान से जोड़ना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि किसी पर भी इसे मानने का दबाव न बनाया जाए, क्योंकि अगर जबरदस्ती की गई तो यह संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।
‘अल्लाह के सिवा कोई खुदा नहीं’
ओवैसी ने संसद में अपनी बात की शुरुआत अपने मजहब की बुनियादी तालीम का जिक्र करते हुए की। उन्होंने कहा, “मैं एक मुसलमान हूं और इस्लाम को मानने वाला इंसान हूं। मेरे मजहब की बुनियादी तालीम ‘तौहीद’ है। ला इलाहा इल्लल्लाह, यानी अल्लाह के सिवा कोई खुदा नहीं है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में इबादत सिर्फ अल्लाह की होती है। उन्होंने कहा, “हम अपनी मां की इबादत नहीं करते, हम कुरान की भी इबादत नहीं करते। हमारे लिए सिर्फ अल्लाह ही पूजनीय है।”
‘वफादारी का सर्टिफिकेट मत मांगिए’
एआईएमआईएम सांसद ने भाजपा पर निशाना साधते हुए सवाल उठाया कि क्या वे वंदे मातरम को वफादारी का टेस्ट बनाना चाहते हैं? ओवैसी ने कहा कि वतनपरस्ती को मजहब में तब्दील करना गलत है। उन्होंने कहा, “यह वतन मेरा है और हम इसे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। वफादारी का सर्टिफिकेट हमसे मत लीजिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारतीय मुसलमान जिन्ना के कट्टर विरोधी हैं और यही वजह है कि उन्होंने बंटवारे के वक्त पाकिस्तान के बजाय भारत में रहने का फैसला किया।
संविधान और आजादी का हवाला
ओवैसी ने तर्क दिया कि भारत को आजादी इसलिए मिली क्योंकि देश ने मुल्क और मजहब को एक नहीं माना। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना (Preamble) का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान की शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ (We the People) से होती है, न कि किसी देवी-देवता के नाम से। उन्होंने याद दिलाया कि संविधान सभा में वंदे मातरम से जुड़े बदलावों पर विचार हुआ था, लेकिन प्रस्तावना को किसी देवी के नाम से शुरू करने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया था।
‘मुल्क की मोहब्बत ईमान का हिस्सा’
अपने भाषण में ओवैसी ने पैगंबर मोहम्मद साहब का उदाहरण देते हुए कहा कि जब वे मदीना गए थे, तो उन्होंने उस वतन के लिए दुआ की थी कि “अल्लाह मदीने की मोहब्बत हमारे दिलों में मक्के से ज्यादा कर दे।” ओवैसी ने कहा कि मुसलमान होने और मुल्क से मोहब्बत करने के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। मुल्क की मोहब्बत उनके ईमान के आड़े नहीं आती, लेकिन इसे पूजा या इबादत से जोड़ना गलत है।
आम आदमी पर असर
यह बहस सिर्फ संसद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर समाज के ताने-बाने पर पड़ता है। ओवैसी ने चेतावनी दी कि अगर देशभक्ति को किसी खास धार्मिक पहचान या निशान से जोड़ा गया, तो इससे समाज में निश्चित तौर पर फूट बढ़ेगी। संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को अपने धर्म, विश्वास और अंतरात्मा की आजादी देता है, और किसी भी नागरिक पर उसकी मर्जी के खिलाफ कुछ भी थोपना लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है।
‘जानें पूरा मामला’
लोकसभा में वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में चर्चा हो रही थी। इसी दौरान यह मुद्दा उठा कि क्या वंदे मातरम का गायन या उद्घोष देशभक्ति का पैमाना होना चाहिए। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस पर तीखी नोकझोंक हुई। ओवैसी का यह बयान उसी बहस का हिस्सा है, जहां उन्होंने संविधान के आर्टिकल 25 और ‘लिबर्टी ऑफ थॉट, एक्सप्रेशन, बिलीफ, फेथ एंड वरशिप’ का हवाला देते हुए अपनी बात रखी।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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ओवैसी ने कहा कि देशभक्ति को किसी धर्म से जोड़ना संविधान के खिलाफ है।
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उन्होंने स्पष्ट किया कि मुसलमान अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करते।
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ओवैसी ने कहा कि भारतीय मुसलमान जिन्ना के विरोधी हैं और उन्हें वफादारी का सर्टिफिकेट देने की जरूरत नहीं।
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उन्होंने सरकार से अपील की कि वंदे मातरम को लेकर किसी पर जबरदस्ती न की जाए।






