नई दिल्ली, 19 मार्च (The News Air) : निर्वाचन आयोग ने सोमवार को छह राज्यों के गृह सचिवों को हटा दिया। इस लिस्ट में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अफसर संजय प्रसाद का नाम भी है। यह नाम बहुत खास है, इसलिए कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने संजय प्रसाद पर कार्रवाई के विरोध में जबर्दस्त दलीलें दीं लेकिन निर्वाचन आयोग ने उनकी एक न मानी। संजय प्रसाद उत्तर प्रदेश सरकार के गृह मंत्रालय में प्रधान सचिव के पद पर तैनात थे। उन्हें योगी सरकार ने सितंबर, 2022 में इस पद पर नियुक्त किया था। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुड बुक वाले अधिकारियों में संजय प्रसाद भी शामिल हैं।
क्यों नहीं माना चुनाव आयोग, जानिए : संजय प्रसाद 1995 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे विश्वसनीय अधिकारियों में एक माने जाते हैं। इंग्लिश न्यूज वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि आयोग के आदेश के कुछ घंटे बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा और उसके इस निर्णय का विरोध किया। लेकिन चुनाव आयोग अपने फैसले पर अडिग रहा। लेकिन क्यों? इसकी वजह प्रसाद के मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़ा होना रही। संजय प्रसाद ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) का अतिरिक्त कार्यभार संभाला था।
यूपी ने क्यों किया विरोध, यह भी जान लीजिए : कहा जाता है कि मिश्र ने चुनाव आयोग को लिखी अपनी चिट्ठी में दलील दी कि संजय प्रसाद ने तब सीएमओ का कार्यभार संभाला जब चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ था और आचार संहिता लागू नहीं हुई थी। उन्होंने दलील दी कि इस कारण हितों के टकराव का कोई मामला नहीं बनता है। हालांकि, चुनाव आयोग का दिल इस दलील से नहीं पसीजा और संजय प्रसाद आखिरकार चुनाव कार्यों से हट गए।
चुनाव आयोग ने बिल्कुल नहीं दी तवज्जो : हालांकि, आयोग ने मिश्रा की चिट्ठी पर जवाब दिया और अपना फैसला बदलने के बजाय तीन नामों के सुझाव मांग लिए जिनमें से किसी एक को संजय प्रसाद की जगह पर चुनाव होने तक नियुक्त किया जा सके। सूत्रों के मुताबिक, सोमवार को चुनाव आयोग ने छह राज्यों के गृह सचिवों को हटाया तो उत्तर प्रदेश अकेला राज्य है जिसने उसी दिन आयोग के फैसले पर आपत्ति जता दी। हालांकि, चुनाव आयोग की सोच बिल्कुल स्पष्ट है।
चुनाव आयोग ने क्यों लिया ऐक्शन : निर्वाचन आयोग ने फैसला किया कि राज्य की नौकरशाही और सत्ताधारी दल के बीच कोई कोई तार जुड़ते ही उस पर एक्शन लिया जाए। इसलिए मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े अधिकारियों को तुरंत चुनाव प्रक्रिया से हटाने का फैसला लिया गया। चुनाव आयोग के इस निर्णय से गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के गृह सचिव नप गए जो अपने-अपने सीएमओ से जुड़े थे।