नई दिल्ली, 20 जुलाई (The News Air): रसगुल्ला का नाम सुनते या पढ़ते ही मुंह में पानी आना लाजमी है। देश में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे रसगुल्ला पसंद न हो। शादी समारोह, त्योहार या घर में स्वागत के लिए परोसे जाने वाले पकवानों के बीच रसगुल्ले ने अपनी एक खास जगह बनाई है। हम आज इसका जिक्र इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि आज रसगुल्ला दिवस भी है। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के समापन के दिन ही इस दिवस को मनाने की परंपरा है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस लजीज रसगुल्ले को लेकर दो राज्यों असम और पश्चिम बंगाल के बीच अदावत चल रही थी। दोनों के बीच इस बात की लड़ाई थी कि सबसे पहले रसगुल्ला उनके यहां ही बना था। हालांकि साल 2017 में पश्चिम बंगाल ने यह लड़ाई जीत ली थी और तब से बंगाल को रसगुल्ले का जीआई टैग भी मिला हुआ है। रसगुल्ले दिवस के मौके पर आइए आपको यह दिलचस्प कहानी बताते हैं।
2015 में शुरू हुई थी खींचतान
ओडिशा के भी थे अपने दावे
बंगाल के दावे को ओडिशा के मिठाई वालों ने भी चुनौती दी। कहा कि राज्य में 300 साल से भी ज्यादा समय से भगवान जगन्नाथ को कई तरह के रसगुल्लों का भोग लगाया जाता रहा है, इसलिए रसगुल्ले के GI के असली हकदार वही हैं। ओडिशा सरकार ने तो रसगुल्ला का GI टैग पाने के लिए बाकायदा एक कमेटी बना दी थी। इसके बाद तीन साल तक ऑफिस ऑफ कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स, डिजाइन एंड ट्रेडमार्क्स के मेंबर्स ने कई बार बंगाल और ओडिशा का दौरा किया। उन्होंने वहां के इतिहासकारों से संपर्क किया, बहुत से डॉक्युमेंट्स खंगाले और विवाद से जुड़ी जानकारी भी जुटाई।
इतिहासकारों ने इस विषय पर बताया कि रसगुल्ले की जिस किस्म को बंगाल अपना होने का दावा कर रहा है, वह छेना रसगुल्ला के नाम से प्रसिद्ध है और उसका आविष्कार 1868 में हुआ था। रसगुल्ले की जिस किस्म का भोग भगवान जगन्नाथ को लगाया जाता है, वह खीर मोहन रसगुल्ला है। डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में पेटेंट इंफॉर्मेशन सेंटर के सीनियर साइंटिस्ट महुआ होम चौधरी ने ईटी को बताया था कि हमने रसगुल्ला से जुड़े आंकड़ों और दस्तावेजों का अंतिम निरूपण तैयार कर लिया है। हमने केमिकल एनालिसिस की और अदालत में साबित कर दिया कि रसगुल्ला बंगाल का है।’ वह इस मामले में मिनिस्ट्री के साथ संपर्क में थीं।