New Labour Codes India Employee Rights भारत के श्रम ढांचे (लेबर स्ट्रक्चर) में दशकों बाद एक बड़ा बदलाव किया गया है। केंद्र सरकार ने 29 पुराने और बिखरे हुए श्रम कानूनों को एक साथ मिलाकर उनकी जगह सिर्फ चार नए कोड लागू किए हैं। ये नए लेबर कोड देश के कारोबारी माहौल से लेकर 40 करोड़ से ज्यादा कर्मचारियों की रोजमर्रा की नौकरी तक हर जगह असर डालने वाले हैं। इन नए नियमों से यह तय होगा कि वेतन कैसे तय होगा, ओवरटाइम का भुगतान कितना मिलेगा, महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति कैसे मिलेगी और फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को क्या नए अधिकार मिलेंगे।
1. वेजेस कोड 2019: वेतन में बड़ा बदलाव
यह कोड चार पुराने कानूनों (पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट, न्यूनतम वेतन अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम और समान परिश्रमिक अधिनियम) को मिलाकर बनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य वेतन से जुड़े सभी नियमों को सरल और पूरे देश में एक जैसा बनाना है।
वेजेस कोड के मुख्य प्रावधान:
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यूनिवर्सल मिनिमम वेज: अब हर कर्मचारी न्यूनतम वेतन पाने का कानूनी हकदार होगा, चाहे वह संगठित हो या असंगठित। पहले यह कानून केवल करीब 30% श्रमिकों पर लागू होता था।
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फ्लोर वेज: केंद्र सरकार एक न्यूनतम आधार वेतन तय करेगी, जिसे कोई भी राज्य कम नहीं कर सकता।
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ओवरटाइम का भुगतान: ओवरटाइम करने पर कर्मचारी को सामान्य वेतन की दोगुनी दर से भुगतान मिलेगा। ओवरटाइम तभी होगा जब कर्मचारी सहमत हो।
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लैंगिक समानता: वेतन में पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकेगा। एक जैसे काम का एक जैसा वेतन देना अनिवार्य होगा।
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समय पर भुगतान: सभी कर्मचारियों को वेतन समय पर मिलना जरूरी है, देर या अनाधिकृत कटौती पर कार्रवाई होगी।
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अपराध मुक्तिकरण: कुछ छोटे मामलों में जेल की सजा हटाकर आर्थिक दंड लगाया जाएगा, जो अधिकतम जुर्माने के 50% तक हो सकता है।
2. इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020: छंटनी और यूनियन के नियम
यह कोड यूनियन एक्ट, स्टैंडिंग ऑर्डर्स एक्ट और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट को जोड़कर बनाया गया है। इसका उद्देश्य श्रम विवाद समाधान और नौकरी से जुड़ी शर्तों को अधिक स्पष्ट और सरल बनाना है।
इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड के मुख्य प्रावधान:
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छंटनी सीमा में इजाफा: अब 300 कर्मचारियों तक की छंटनी के लिए सरकार से अनुमति की जरूरत नहीं होगी, पहले यह सीमा 100 थी। राज्यों को इसे और बढ़ाने की छूट है।
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रीस्किलिंग फंड: छंटनी किए गए कर्मचारियों को नया स्किल सीखने में मदद के लिए एक फंड बनाया गया है। इसमें हर हटाए गए कर्मचारी के लिए 15 दिन की सैलरी के बराबर रकम डाली जाएगी।
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फिक्स्ड टर्म रोजगार: समयबद्ध कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को भी वेतन और सुविधाएं स्थाई कर्मचारियों जैसी मिलेंगी और एक साल पूरा होने पर उन्हें ग्रेच्युटी का अधिकार मिलेगा।
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हड़ताल पर नोटिस: किसी भी हड़ताल से कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य किया गया है। समूह में एक साथ आकस्मिक अवकाश लेने को भी अब हड़ताल माना जाएगा।
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वर्कर की नई परिभाषा: सेल्स प्रमोशन स्टाफ, पत्रकार और 18,000 रुपये तक वेतन वाले सुपरवाइजरी कर्मचारी भी अब वर्कर माने जाएंगे, जिससे वे श्रम कानूनों के सुरक्षा दायरे में आएंगे।
3. सोशल सिक्योरिटी कोड 2020: सुरक्षा का दायरा बढ़ा
यह कोड नौ अलग-अलग सामाजिक सुरक्षा कानूनों को एक ही ढांचे में जोड़ता है, जिसमें ईएसआईसी, ईपीएफओ, मातृत्व लाभ और जीवन बीमा जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
सोशल सिक्योरिटी कोड के मुख्य प्रावधान:
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गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक शामिल: गिग वर्कर (डिलीवरी पार्टनर, कैब ड्राइवर) जैसे प्लेटफॉर्म वर्कर भी सोशल सिक्योरिटी दायरे में आएंगे।
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सोशल सिक्योरिटी फंड: असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए जीवन, विकलांगता, स्वास्थ्य और वृद्धावस्था लाभ देने के लिए एक स्पेशल फंड बनाया जाएगा।
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ईएसआईसी कवरेज: ईएसआईसी कवरेज अब सिर्फ चुनिंदा क्षेत्रों में नहीं, बल्कि पूरे भारत में लागू होगा।
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दुर्घटना कवरेज: अगर कोई कर्मचारी घर से ऑफिस जाते समय दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे भी रोजगार से जुड़ी दुर्घटना माना जाएगा, जिससे मुआवजा पाने का अधिकार मिलेगा।
4. ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020: महिलाओं के लिए नया नियम
यह कोड कार्यस्थलों पर सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों को मजबूत करने पर जोर देता है।
सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड के मुख्य प्रावधान:
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महिलाएं रात में काम कर सकेंगी: महिलाओं को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद भी काम करने की अनुमति होगी, बशर्ते उनकी सहमति ली जाए और कंपनियां उचित सुरक्षा तथा निगरानी के प्रबंध करें।
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मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच: हर कर्मचारी के लिए साल में एक बार स्वास्थ्य जांच कंपनी की तरफ से कराना जरूरी होगा।
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वर्किंग टाइम: कर्मचारियों के लिए कम से कम 8 घंटे प्रतिदिन और 48 घंटे प्रति हफ्ते का समय तय किया गया है।
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नियुक्ति पत्र: कंपनियों को हर कर्मचारी को एक नियुक्ति पत्र देना होगा, जिसमें वेतन, नौकरी का विवरण और सोशल सिक्योरिटी की जानकारी होगी।
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माइग्रेंट श्रमिकों की नई परिभाषा: अब वे सभी लोग माइग्रेंट वर्कर माने जाएंगे जो सीधे नियुक्त हों, ठेके पर काम करें या काम की तलाश में खुद दूसरे राज्य गए हों।
क्या है पृष्ठभूमि
भारत में श्रम कानूनों का ढाँचा काफी पुराना और जटिल था, जिसमें 29 अलग-अलग अधिनियम शामिल थे। इन बिखरे हुए कानूनों से कर्मचारियों और कंपनियों दोनों को जटिलताएँ होती थीं। सरकार ने इन सभी को मिलाकर चार सरल और स्पष्ट कोड (वेजेस कोड 2019, इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2020, और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी कोड 2020) लागू किए हैं। इसका मकसद पूरे देश में श्रम मानकों को एक समान और पारदर्शी बनाना है, जिससे कारोबार करना आसान हो और कर्मचारियों को भी मजबूत सुरक्षा मिल सके।
मुख्य बातें (Key Points)
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केंद्र सरकार ने 29 पुराने श्रम कानूनों को हटाकर उनकी जगह चार नए लेबर कोड लागू किए हैं।
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अब हर श्रमिक न्यूनतम वेतन (फ्लोर वेज) का हकदार होगा और ओवरटाइम पर दोगुनी दर से भुगतान मिलेगा।
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छंटनी की सीमा 100 कर्मचारियों से बढ़ाकर 300 कर दी गई है, जिसके लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
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गिग वर्कर और प्लेटफॉर्म वर्कर (जैसे डिलीवरी पार्टनर) को भी पहली बार सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया है।
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महिलाओं को उनकी सहमति और पर्याप्त सुरक्षा के साथ रात में काम करने की अनुमति होगी।






