New Labour Code के 21 नवंबर 2025 से लागू होने के बाद से ही देश भर के नौकरीपेशा लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। हर किसी को यही डर सता रहा था कि नए नियम के चलते उनकी In-hand Salary कम हो जाएगी और पीएफ का पैसा ज्यादा कटेगा। लेकिन अब Ministry of Labour and Employment ने इस पूरे मामले पर पर्दा हटाते हुए असल सच्चाई बता दी है, जिसे जानकर करोड़ों कर्मचारियों ने राहत की सांस ली है।
क्या सच में कम हो जाएगी सैलरी?
केंद्र सरकार द्वारा नए लेबर कोड्स को लागू किए जाने के बाद से ही कर्मचारियों के मन में एक ही टेंशन थी। दरअसल, नए नियम के मुताबिक किसी भी कर्मचारी की Basic Salary और उससे जुड़े हिस्से कुल वेतन का कम से कम 50% होने चाहिए। इसी गणित को देखकर लोगों ने मान लिया था कि अगर बेसिक सैलरी बढ़ेगी, तो जाहिर है कि पीएफ (PF) भी ज्यादा कटेगा और हाथ में आने वाली सैलरी अपने आप घट जाएगी। लोगों को डर था कि कहीं ऐसा न हो कि सुबह सोकर उठें और मोबाइल पर सैलरी क्रेडिट का मैसेज तो आए, लेकिन पैसा कटकर आए। लेकिन अब आपको अपनी धड़कनों को थामने की जरूरत है, क्योंकि मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि यह डर पूरी तरह गलत है।
मंत्रालय ने दूर किया कन्फ्यूजन
लेबर मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने इसी हफ्ते स्पष्ट किया है कि नए कोड्स लागू होने से किसी की भी Take Home Salary अपने आप कम नहीं होगी। सरकार ने इसके पीछे की मुख्य वजह पीएफ कैलकुलेशन का तरीका बताया है। नए वेतन ढांचे में भले ही आपकी बेसिक सैलरी बढ़ जाए, लेकिन पीएफ का योगदान मौजूदा 15,000 रुपये की वैधानिक सीमा (Statutory Limit) पर ही होता रहेगा। यह तब तक नहीं बदलेगा जब तक कि एंप्लॉयर और कर्मचारी खुद अपनी मर्जी से इससे ज्यादा राशि पर पीएफ कटाने का विकल्प नहीं चुनते। चूंकि ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों के लिए यही सीमा मायने रखती है, इसलिए उनकी हर महीने की कटौती (Deduction) उतनी ही रहेगी।
60 हजार की सैलरी का गणित समझिए
इस बात को और आसानी से समझाने के लिए मंत्रालय ने एक सीधा सा उदाहरण भी दिया है। मान लीजिए किसी कर्मचारी की Monthly Salary 60,000 रुपये है। अगर नए नियम के तहत उसकी बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता बढ़ भी जाता है और बाकी 400 रुपये भत्ते के तौर पर मिलते हैं, तो भी पीएफ की गणना 15,000 रुपये पर ही होगी। इसमें शर्त बस इतनी है कि कर्मचारी ने इससे ज्यादा पीएफ बेस चुनने का Option न चुना हो। पुराने नियम और नए कोड्स, दोनों में ही पीएफ का योगदान एक जैसा रहता है। यानी नियोक्ता 1800 रुपये देगा और कर्मचारी भी 1800 रुपये का योगदान करेगा। इस तरह हाथ में आने वाली सैलरी 56,400 रुपये ही रहेगी, जिसमें कोई बदलाव नहीं आएगा।
क्यों किया गया नियमों में बदलाव?
मंत्रालय ने साफ किया है कि इन संशोधित नियमों का मकसद सैलरी स्ट्रक्चर में एकरूपता और स्पष्टता लाना है, न कि किसी की जेब काटना। यह सच है कि नए Labour Codes से सैलरी का स्ट्रक्चर बदल सकता है और कई संगठनों में धीरे-धीरे बेसिक सैलरी और भत्तों के बीच संतुलन बदलेगा। लेकिन इसका वित्तीय असर बहुत सीमित है। आपकी Disposable Income (खर्च करने लायक आय) तभी कम होगी जब आप और आपकी कंपनी मिलकर 15,000 रुपये से ज्यादा की राशि पर पीएफ काटने का फैसला करेंगे। यह पूरी तरह से Optional है। इसलिए कर्मचारियों को सिर्फ इसलिए अपनी मंथली इनकम में तत्काल बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि कोड्स लागू हो गए हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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नए लेबर कोड लागू होने से हाथ में आने वाली सैलरी अपने आप कम नहीं होगी।
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पीएफ की गणना अभी भी 15,000 रुपये की सीमा पर ही होगी, जब तक आप ज्यादा का विकल्प न चुनें।
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60,000 रुपये सैलरी वाले उदाहरण में भी इन-हैंड सैलरी में कोई बदलाव नहीं आएगा।
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सरकार का मकसद सैलरी स्ट्रक्चर में स्पष्टता लाना है, सैलरी काटना नहीं।






