US Nuclear Test Resumption : दुनिया में एक बार फिर परमाणु हथियारों की होड़ शुरू होने का खतरा मंडराने लगा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 1992 के बाद पहली बार परमाणु हथियारों की टेस्टिंग (परमाणु परीक्षण) तुरंत शुरू करने का आदेश दिया है। इस फैसले के पीछे रूस और चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों को मुख्य कारण बताया जा रहा है।
33 साल बाद टूटी चुप्पी अमेरिका ने आखिरी बार 23 सितंबर 1992 को परमाणु परीक्षण किया था, जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने भूमिगत परीक्षणों पर रोक लगा दी थी। अब 33 साल बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने इस रोक को तोड़ने का फैसला किया है। ट्रंप ने रक्षा मंत्रालय को परीक्षणों की तैयारी तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया है।
पुतिन के ‘पोसाइडन’ से बढ़ा दबाव? ट्रंप के इस फैसले को सीधे तौर पर रूस की हालिया गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि पुतिन के नए हथियारों के परीक्षण के दबाव में ही यह फैसला लिया गया है। रूस ने हाल ही में ‘पोजाइडन’ (Poseidon) नाम की एक न्यूक्लियर-पावर्ड सुपर टॉरपीडो का सफल परीक्षण किया था।
इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध में रूस का आक्रामक रुख जारी है। यूक्रेन का कहना है कि रूस ने पिछले तीन महीनों में 23 बार बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों से बड़े हमले किए हैं, जिससे राजधानी कीव में ब्लैकआउट तक करना पड़ा।
चीन भी है बड़ी वजह रूस के अलावा, चीन का तेजी से बढ़ता परमाणु शस्त्रागार भी अमेरिका की चिंता का सबब है। पेंटागॉन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक चीन के पास 1,000 से अधिक परमाणु हथियार हो सकते हैं।
ट्रंप ने खुद ‘ट्रुथ सोशल’ पर पोस्ट किया कि चीन पांच सालों में अमेरिका और रूस के बराबर पहुंच सकता है, इसलिए अमेरिका को अपने हथियारों की विश्वसनीयता (reliability) सुनिश्चित करने और “बराबरी के आधार पर” परीक्षण शुरू करने होंगे।
रूस ने दी सफाई हालांकि, ट्रंप के आदेश के बाद रूस का भी बड़ा बयान आया है। रूस ने सफाई देते हुए कहा कि उसने कोई ‘फुल न्यूक्लियर वेपन’ का परीक्षण नहीं किया है। इसका मतलब है कि रूस ने किसी मिसाइल सिस्टम का टेस्ट किया हो सकता है, लेकिन वास्तविक परमाणु विस्फोट (detonation) नहीं किया है।
नई परमाणु होड़ की आशंका ट्रंप के इस आदेश के बाद दुनिया में एक बार फिर परमाणु हथियारों की रेस शुरू होना तय माना जा रहा है। पेंटागन अब परीक्षण की तैयारी शुरू करेगा, जिसमें करीब 24 से 36 महीने लग सकते हैं। यह घोषणा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ व्यापार वार्ता से ठीक पहले की गई है, जिसे अमेरिका की एक कूटनीतिक चाल के तौर पर भी देखा जा रहा है।
क्या है CTBT संधि? यह पूरा विवाद 1996 की ‘कॉम्प्रीिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी’ (CTBT) से भी जुड़ा है। यह संधि दुनिया भर में भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाती है। हालांकि, चीन और अमेरिका दोनों ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किए थे, लेकिन इसे कभी भी औपचारिक रूप से मंजूरी (ratify) नहीं दी, जिसका फायदा अब उठाया जा रहा है।
मुख्य बातें (Key Points):
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 1992 के बाद पहली बार परमाणु परीक्षण शुरू करने का आदेश दिया।
- इस फैसले की वजह रूस का ‘पोसाइडन’ टॉरपीडो टेस्ट और चीन का बढ़ता परमाणु जखीरा है।
- यूक्रेन युद्ध के बीच रूस की आक्रामकता को भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
- रूस ने सफाई दी है कि उसने ‘फुल न्यूक्लियर वेपन’ (विस्फोट) का परीक्षण नहीं किया है।
- अमेरिका ने 1996 की CTBT संधि पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन उसे कभी मंजूरी (Ratify) नहीं दी।






