National Herald Case ED Court Order : दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने नेशनल हेरल्ड मामले में ED को बड़ा झटका दिया है। स्पेशल जज विशाल गोगने ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य के खिलाफ 2000 करोड़ रुपये की कथित मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत पर संज्ञान लेने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ED ने बिना अधिकार के जांच शुरू की और कानूनी प्रक्रिया को पूरी तरह उलट दिया।
यह मामला 12 साल से दिल्ली की अदालतों में भटक रहा था। 2014 में BJP के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की निजी शिकायत पर यह शुरू हुआ था। लेकिन सात साल तक CBI और ED दोनों की राय थी कि इसमें कोई अपराध नहीं बनता। फिर अचानक जून 2021 में ED ने शिकायत दर्ज कर दी।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने अपने फैसले में बहुत सख्त टिप्पणी की है। जज ने कहा कि जो तय प्रक्रिया होती है उसका पूरा क्रम ही बदल दिया गया। उलटा कर दिया गया।
कानून के मुताबिक पहले प्रेडिकेट ऑफेंस होता है यानी वह पहला अपराध जिससे काला धन पैदा होता है। उसके बाद मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू होती है। लेकिन ED ने यहां उलटा किया।
प्रेडिकेट ऑफेंस का मतलब है वह आपराधिक गतिविधि जिसकी बुनियाद पर पैसे की गड़बड़ी का मामला खड़ा होता है। जब काले धन को एक खाते से दूसरे खाते में या एक कंपनी से दूसरी कंपनी में घुमाया जाता है तो उसे मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं।
सात साल तक क्यों नहीं हुई FIR
यह सवाल बहुत अहम है। 2014 से 2021 तक यानी पूरे सात साल तक CBI और ED दोनों ने अपनी फाइलों में लिखित रूप से दर्ज किया कि इसमें कोई प्रेडिकेट ऑफेंस नहीं बनता।
कोर्ट के फैसले के पैरा 232 में जज ने “संयुक्त सहमति” शब्द का इस्तेमाल किया है। इसका मतलब है कि दोनों एजेंसियां मानती थीं कि इस मामले में FIR बनती ही नहीं।
अगर कोई अपराध बनता होता तो सात साल तक चुप क्यों बैठते? लेकिन अचानक 30 जून 2021 को शिकायत दर्ज हो गई।
निजी व्यक्ति की शिकायत पर सवाल
कोर्ट ने सबसे बड़ा सवाल यह उठाया कि शिकायत किसने दर्ज कराई। PMLA कानून की धारा 5 में साफ लिखा है कि सिर्फ जांच के लिए अधिकृत व्यक्ति ही शिकायत दर्ज करा सकता है। किसी निजी व्यक्ति की शिकायत पर नहीं।
सुब्रमण्यम स्वामी एक निजी व्यक्ति हैं। वे जांच अधिकारी नहीं हैं। इसलिए उनकी शिकायत पर ED का मामला आगे बढ़ाना ही गलत था।
कोर्ट ने कहा कि यह शिकायत इतनी कमजोर है कि संज्ञान लेना भी मुमकिन नहीं। संज्ञान लेने से इनकार करना कानूनी भाषा में सबसे शुरुआती स्तर पर केस खारिज करना होता है। मतलब कोर्ट ने कहा कि यह मामला घर के दरवाजे के अंदर आने लायक भी नहीं है।
यंग इंडियन कंपनी का मामला
कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में समझाया कि यह मामला कितना अजीब है। यंग इंडियन एक सेक्शन 8 की नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी है। इसका मतलब है कि इससे कोई मुनाफा नहीं कमाया जा सकता।
न तो कोई डिविडेंड ले सकते हैं। न कोई प्रॉफिट बांट सकते हैं। न गाड़ी-घोड़ा ले सकते हैं। कानून में यही लिखा है। तो सवाल उठता है कि जिस कंपनी से एक दमड़ी भी नहीं मिल सकती उसे मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कैसे बनाया गया।
अगर यह राजनीतिक रूप से इतना गंभीर मामला नहीं होता तो यह हास्य का विषय होता।
न पैसा हिला न संपत्ति
मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दो चीजें जरूरी होती हैं। या तो पैसे का स्थानांतरण हो या अचल संपत्ति का। लेकिन इस मामले में न तो पैसा कहीं गया और न ही कोई संपत्ति।
AGL यानी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड करीब 100 साल पुरानी कंपनी है। इसके पास जो अचल संपत्तियां हैं वे आज भी उसी के नाम हैं। 50-80 साल से उसी के नाम हैं। एक मिलीमीटर भी कुछ नहीं हिला।
राहुल गांधी से 55 घंटे पूछताछ
इसी मामले में जून 2022 में राहुल गांधी से 55 घंटे तक पूछताछ हुई। बाद में एक चुनावी सभा में उन्होंने बताया कि उन्होंने ED अधिकारी से क्या कहा।
राहुल गांधी ने कहा था कि मैंने ED अधिकारी से कहा – आप सोच रहे हो कि आपने मुझे यहां बुलाया है। लेकिन आप गलतफहमी में हो। मैं खुद आया हूं। मैं देखना चाहता हूं कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र की हत्या कौन लोग कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पूछताछ के दौरान वहां एक सेल था। मैं सोच रहा था कि मेरे परदादा 12 साल ऐसे सेल में बैठे थे। कम से कम 10 साल तो मुझे भी जाना चाहिए।
ED के निदेशक पर भी उठे सवाल
यह शिकायत संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल में दर्ज हुई। उन्हें ED के निदेशक के रूप में इतनी बार सेवा विस्तार दी गई कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि क्या देश में कोई दूसरा योग्य अफसर नहीं है।
कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें हटाना पड़ा। यह सब दिखाता है कि ED की संस्था के साथ क्या हो रहा है।
दूसरे मामलों में क्या हुआ
संदेशरा ब्रदर्स का मामला देखें। कई हजार करोड़ का बैंक फ्रॉड करके दोनों भाई विदेश भाग गए। ED और CBI दोनों जांच कर रही थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 5100 करोड़ चुकाने के बाद उनके खिलाफ मुकदमे खत्म हो गए।
एक तरफ पैसे लेकर भगोड़े को माफी दी जा रही है। दूसरी तरफ निजी व्यक्ति की शिकायत पर विपक्ष के नेताओं पर केस बनाया जा रहा है।
अडानी मामले में क्या हुआ
जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद विपक्ष ने JPC की मांग की। JPC का गठन नहीं हुआ। ढाई साल बाद SEBI ने जांच पूरी की। उस पर भी सवाल उठे कि एक मोड़ पर जाकर जांच आगे नहीं बढ़ पाई।
15 मार्च 2023 को 18 विपक्षी दलों के सांसदों ने ED के दफ्तर तक मार्च की। उनकी मांग थी कि अडानी मामले में ED कार्रवाई करे। विपक्ष ने ED के तत्कालीन निदेशक को ईमेल भी भेजा कि तीन महीने से ED ने प्रारंभिक जांच भी शुरू नहीं की।
उस समय कहा गया कि जब तक पहले कोई जांच एजेंसी शिकायत दर्ज न करे तब तक ED कार्रवाई नहीं कर सकती। तो फिर नेशनल हेरल्ड केस में यही नियम क्यों नहीं लागू हुआ?
अमेरिका का सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन आठ महीने में पांचवी बार न्यूयॉर्क के कोर्ट में रिपोर्ट दायर कर चुका है कि भारत का कानून मंत्रालय अडानी को कानूनी कागजात नहीं दे रहा।
हेमंत सोरेन का मामला
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव से पहले जेल में डाल दिया गया। पांच महीने जेल में रहे। फिर हाई कोर्ट ने इस आधार पर जमानत दी कि उनके खिलाफ ठोस मामला ही नहीं था।
एक मुख्यमंत्री को इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट में भी ED की इस मामले में हार हुई।
न्यूज क्लिक का मामला
अक्टूबर 2023 में न्यूज क्लिक के दफ्तर और करीब 80 पत्रकारों के घर छापे पड़े। विदेशी फंडिंग के आरोप में संस्थापक प्रवीर पुरकायस्थ गिरफ्तार हुए।
सात महीने जेल में रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी कानून की नजर में अवैध है।
एक संपादक को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया और एक अच्छा खासा मीडिया संस्थान खत्म हो गया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन पर ED के छापे के मामले में तत्कालीन चीफ जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि ED सारी हदें पार कर रही है। एक राज्य के कॉरपोरेशन पर छापे मारकर ED संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है।
जब सरकारी वकील ने कहा कि ऐसी टिप्पणियों से ED की छवि खराब होती है तो जस्टिस गवई ने जवाब दिया कि ED के खिलाफ की गई कोई भी टिप्पणी सिर्फ तथ्यों के आधार पर होती है।
5 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के कथित आबकारी घोटाले के मामले में जस्टिस ओक ने कहा कि ED की शिकायतों में एक पैटर्न है। बिना किसी संदर्भ के आरोप लगा दिए जाते हैं।
8 दिसंबर को मद्रास हाईकोर्ट ने ED के तीन अधिकारियों को अदालत की अवमानना के आरोप में कोर्ट के सामने पेश होने का आदेश दिया।
आगे क्या होगा
यह अंतिम फैसला नहीं है। ED इस आदेश को हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है। खबरों के मुताबिक ED नई शिकायत दर्ज करने पर भी विचार कर रही है।
BJP का कहना है कि कांग्रेस को राहत नहीं मिली है। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने भी इस मामले में FIR दर्ज की है।
लेकिन कोर्ट ने कहा है कि यह मामला एक चुनौती बन गया है। बिना अधिकार के जांच शुरू हुई। बिना अधिकार के शिकायत दायर हुई। इन कानूनी खामियों के कारण अदालत भी संज्ञान लेने का अधिकार नहीं रखती।
क्या है पूरा मामला
2013 में सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल बोहरा, ऑस्कर फर्नांडिस, सुमन दुबे, सैम पितुदा और यंग इंडियन कंपनी के खिलाफ निजी शिकायत दर्ज की। आरोप था कि यंग इंडियन ने AGL की करोड़ों की संपत्तियां हड़प लीं। 2014 में पटियाला हाउस कोर्ट से आदेश जारी हुआ लेकिन सात साल तक CBI और ED दोनों ने माना कि इसमें कोई अपराध नहीं बनता। जून 2021 में अचानक ED ने मामला दर्ज किया। जून 2022 में राहुल गांधी से 55 घंटे पूछताछ हुई। 15 दिसंबर 2024 को कोर्ट ने ED की शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। 16 दिसंबर को कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कोर्ट ने कहा कि शोर बहुत था लेकिन जोर नहीं था। आरोप थे लेकिन आधार एकदम नहीं था।
मुख्य बातें (Key Points)
- दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने नेशनल हेरल्ड मामले में ED की शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार किया
- 2014 से 2021 तक सात साल CBI और ED दोनों की सहमति थी कि इसमें कोई अपराध नहीं बनता फिर अचानक केस दर्ज हुआ
- कोर्ट ने कहा कि निजी व्यक्ति की शिकायत पर ED का केस चलाना PMLA कानून के खिलाफ है
- यंग इंडियन एक नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी है जिससे कोई पैसा नहीं निकाला जा सकता और न ही कोई संपत्ति कहीं ट्रांसफर हुई






