नई दिल्ली, 18 जूनः (The News Air)
दुनिया भर में महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया। उन्होंने शुक्रवार रात 11:30 बजे अस्पताल में अंतिम सांस ली। 13 जून को उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था। पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे। उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं।
परिवारिक सदस्यों ने जानकारी देते बताया कि शुक्रवार को जब मिल्खा सिंह की हालत बिगड़ने लगी तो पीजीआई के डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखना होगा। परिजनों ने मिल्खा सिंह को वेंटिलेटर पर रखने से मना कर दिया था। परिजनों को आभास हो गया था कि निर्मल मिल्खा सिंह के जाने के बाद वह ज्यादा दिन तक जी नहीं पाएंगे।
वेंटिलेटर पर उनके जीवन को खींचना ठीक नहीं होगा। पत्नी के साथ उनका बहुत ही ज्यादा लगाव था। दो दिन से उनकी याद आने लगी थी। परिजन अंतिम समय पर चाहते थे कि वे बिना किसी कष्ट के ही शांतिपूर्ण अंतिम यात्रा पर जाएं, हालांकि पीजीआई के डॉक्टर और परिजन लगातार उनकी देख रेख में लगे हुए थे।
पीजीआई से घर लाया गया पार्थिव शरीर- निधन के बाद परिजन उनके पार्थिव शरीर को चंडीगढ़ सेक्टर 8 स्थित घर पर ले आए थे। घर पर सन्नाटा पसरा हुआ था। घर पर जीव मिल्खा सिंह के साथ उनकी पत्नी कुदरत मिल्खा सिंह, बेटा हरजय मिल्खा सिंह और मिल्खा की बेटी मोना और सोनिया मौजूद थीं। मिल्खा सिंह का संस्कार शनिवार को दोपहर बाद सेक्टर-25 में किया जाएगा। इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को लोगों के दर्शन के लिए रखा जाएगा।
मां के बाद पिता नहीं रहे- मिल्खा सिंह के निधन के बाद उनके बेटे व अंतरराष्ट्रीय स्तर के गोल्फर जीव मिल्खा सिंह ने कहा कि मेरे पिता का निधन रात 11.30 बजे के करीब हुआ। शुक्रवार को उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए काफी संघर्ष किया था, लेकिन भगवान के अपने तरीक़े हैं। यह सच्चा प्यार और साथ था कि पांच दिन में मां और पिता दोनों चले गए। हम पीजीआई के डॉक्टरों के उनके साहसिक प्रयासों और दुनिया भर से मिले प्यार और प्रार्थना के लिए आभारी हैं।
उधर ‘फ्लाइंग सिख’ के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़, बॉलीवुड एक्टर शाहरूख ख़ान, पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण समेत कई हस्तियों ने उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी है।
मिल्खा सिंह की जिदंगी से जुड़ी कुछ अहम बातें व यादें- पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। बचपन में ही भारत-पाकिस्तान बँटवारे का दर्द और अपनों को खोने का ग़म उन्हें उम्र भर रहा। बँटवारे के दौरान ट्रेन की महिला बोगी में सीट के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे, शरणार्थी शिविर में रहने और ढाबों पर बर्तन साफ़ कर उन्होंने जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की। फिर सेना में भर्ती होकर एक धावक के रूप में पहचान बनाई। अपनी 80 अंतरराष्ट्रीय दौड़ों में उन्होंने 77 दौड़ें जीतीं, लेकिन रोम ओलंपिक का मेडल हाथ से जाने का ग़म उन्हें जीवन भर रहा। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वह अपने जीते जी किसी भारतीय खिलाड़ी के हाथों में ओलंपिक मेडल देखें, लेकिन अफ़सोस उनकी अंतिम इच्छा उनके जीते जी पूरी न हो सकी। हालांकि मिल्खा सिंह की हर उपलब्धि इतिहास में दर्ज़ रहेगी और वह हमेशा हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे।
हाथ की लकीरों से जिंदगी नहीं बनती, अजम हमारा भी कुछ हिस्सा है, जिंदगी बनाने में…’ जो लोग सिर्फ़ भाग्य के सहारे रहते हैं, वह कभी सफलता नहीं पा सकते। एक साक्षात्कार में मिल्खा सिंह की कही ये बातें उनके संघर्ष के दिनों से सफलता के शिखर तक पहुंचने की कहानी को बयां करती हैं।
धावक बनने से पहले उनकी जिंदगी कांटों भरी थी। उनका जन्म 20 नवंबर को 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था। वह अपने मां-बाप की कुल 15 संतानों में से एक थे। उनके कई भाई-बहनों की मौत छोटी उम्र में हो गई थी। बँटवारे की आग में उन्होंने माता-पिता, एक भाई और दो बहनों को अपने सामने जलते देखा। इस दर्दनाक मंज़र के बाद वे पाकिस्तान से महिला बोगी के डिब्बे में बर्थ के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे।
कुछ समय तक वे शरणार्थियों के लिए बने शिविर में रहे। इस दौरान पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने फुटपाथ पर बने ढाबों में बर्तन साफ़ किए ताकि कुछ खाने को मिल सके, चाहे वो बचा खुचा ही क्यों न हो। कुछ दिनों तक वह दिल्ली में रहने वाली अपनी बहन के घर पर भी रहे। अपने भाई मलखान सिंह के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद साल 1951 में सेना में भर्ती हो गए। इसके बाद क्रास कंट्री रेस में छठे स्थान पर आए। इस सफलता के बाद सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना।
1958 में भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाज़ा था- 2001 में भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार देने की पेशकश की गई, जिसे मिल्खा सिंह ने ठुकरा दिया था
धावक के तौर पर करिअर- 1956: मेलबोर्न में आयोजित ओलंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1958: कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 और 400 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया। एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। वर्ष 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली, जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले धावक बन गए।
महान धावक और फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का पीजीआई चंडीगढ़ में निधन हो गया है। 91 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।13 जून को उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। दो महान खिलाड़ियों के निधन से खेल जगत में शोक की लहर है। मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की मुलाक़ात साल 1955 में श्रीलंका के कोलंबो में हुई थी। मिल्खा सिंह को पहली नज़र में निर्मल कौर से प्यार हो गया।
प्यार परवान चढ़ा लेकिन निर्मल कौर के परिवार को मिल्खा सिंह पसंद नहीं थे। शादी में अड़चनें आईं तो पंजाब के मुख्यमंत्री को इनकी प्रेम कहानी पूरी करवाने के लिए आगे आना पड़ा था। एक इंटरव्यू में मिल्खा सिंह ने कहा था कि हर खिलाड़ी और एथलीट की जिंदगी में प्यार आता है, उसे हर स्टेशन पर एक प्रेम कहानी मिलती है। मिल्खा सिंह की जिंदगी में तीन लड़कियां आईं। तीनों से प्यार हुआ, लेकिन शादी उन्होंने निर्मल कौर से की।
मिल्खा सिंह और निर्मल कौर 1955 में कोलंबो में एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने गए थे। निर्मल कौर उस समय भारतीय महिला वालीबॉल टीम की कप्तान थीं, जबकि मिल्खा सिंह एथलेटिक्स टीम का हिस्सा थे। पहली नज़र में मिल्खा को निर्मल पसंद आ गईं।
दोनों ने एक-दूसरे से काफी बातें कीं। जब वापस जाने लगे तो मिल्खा सिंह अपने होटल का पता लिखकर देने लगे। जब कोई काग़ज़ नहीं मिला तो उन्होंने निर्मल के हाथ पर ही होटल का नंबर लिख दिया। फिर बातें और मुलाक़ातें होने लगीं और बात शादी तक पहुंच गईं लेकिन शादी में भी अड़चन आ गई। निर्मल पंजाबी खत्री फैमिली से थीं इसलिए परिवार शादी के लिए राज़ी नहीं हो रहा था।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने की थी मदद उस समय मिल्खा सिंह काफी चर्चा में आ गए थे और उनकी शादी में अड़चन की बात भी कई लोगों तक पहुंच चुकी थी। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों को पता चला तो वे मदद के लिए आगे आए और दोनों परिवारों से बात कर शादी तय करवा दी।
साल 1962 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए। मिल्खा सिंह ने कई बार सार्वजनिक तौर पर अपनी पत्नी की तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था कि वे ख़ुद दसवीं पास हैं। बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने में उनकी पत्नी निर्मल का ही अहम रोल रहा है। उनकी ग़ैरमौज़ूदगी में निर्मल ने बच्चों की पढ़ाई और बाक़ी सभी बातों का ध्यान रखा। वे अपनी पत्नी को सबसे बड़ी ताक़त मानते थे।
फ्लाइंग सिख के नाम से प्रख्यात भारत के महान धावक मिल्खा सिंह कल देर रात इस दुनिया को छोड़कर चले गए। मिल्खा सिंह की उम्र 91 वर्ष थी और उन्हें कोरोना हो गया था। हालांकि गुरुवार को उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी लेकिन कल उनकी हालत नाज़ुक हो गई थी।
मिल्खा सिंह भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल अयूब ख़ान तक सब मिल्खा सिंह के हुनर के मुरीद थे। मिल्खा सिंह का बचपन बहुत कठिनाइयों से गुज़रा और भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता और कई भाई-बहनों को खो दिया था। मिल्खा सिंह को बचपन से दौड़ने का शौक था। आइए जानते हैं कि उनका नाम फ्लाइंग सिख कैसे पड़ा…
मिल्खा सिंह से बने ‘फ्लाइंग सिख‘– 1960 के दशक में रोम ओलंपिक में पदक चूकने का मिल्खा सिंह के मन में ख़ासा मलाल था। लेकिन इसी साल पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कंपीटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। मिल्खा सिंह के मन में बँटवारे को लेकर काफी दर्द था और इसी वजह से वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फ़ैसला लिया।
उस समय पाकिस्तान में अब्दुल ख़ालिक को वहाँ का सबसे तेज़ धावक माना जाता था। पाकिस्तान में पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा सिंह की रफ़्तार के सामने अब्दुल ख़ालिक टिक नहीं पाए। मिल्खा सिंह का प्रदर्शन देखने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल अयूब ख़ान ने मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख का ख़िताब दिया और कहा कि आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का ख़िताब देते हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय-मिल्खा सिंह ने 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल आयोजित एशिया गेम्स में 200 मी और 400 मी की दौड़ में भी स्वर्ण पदक जीता। इसी साल इंग्लैंड में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में ने मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। आज़ाद भारत में मिल्खा सिंह स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने।
‘फ्लाइंग सिख’ नाम से मशहूर भारत का परचम लहराने वाले महान धावक मिल्खा सिंह का कोरोना से निधन हो गया। उन्होंने 91 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। कामनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे। 20 नवम्बर 1929 को जन्मे ‘फ्लाइंग सिख’ ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। इसके साथ ही उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलो में भी स्वर्ण पदक जीता था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान तोड़ा, लेकिन पदक से वंचित रह गए। इस दौरान उन्होंने ऐसा नेशनल कीर्तिमान बनाया, जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा।
यूँ तो मिल्खा ने भारत के लिए कई पदक जीते हैं, लेकिन रोम ओलंपिक में उनके पदक से चूकने की कहानी लोगों को आज भी याद है। अपने करियर के दौरान उन्होंने करीब 75 रेस जीती। वह 1960 ओलंपिक में 400 मीटर की रेस में चौथे नंबर पर रहे। उन्हें 45.73 सेकंड का वक़्त लगा, जो 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा। मिल्खा सिंह को बेहतर प्रदर्शन के लिए 1959 में पद्म अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था।
बता दें कि मिल्खा कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी थे, लेकिन बाद में कृष्णा पूनिया ने 2010 में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल किया था। इसके साथ ही उन्होंने 1958 और 1962 एशियन गेम्स में भी स्वर्ण पदक जीते थे। मिल्खा कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।
एशियाई खेलों में चार स्वर्ण पदक और कॉमनवेल्थ गेम्स में एक गोल्ड मेडल जीतने वाले मिल्खा सिंह की रफ़्तार की दीवानी दुनिया थी। फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर इस धावक को दुनिया के हर कोने से प्यार और समर्थन मिला। मिल्खा का जन्म अविभाजित भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ, लेकिन वह आज़ादी के बाद हिंदुस्तान आ गए। मिल्खा की प्रतिभा और रफ़्तार का यह जलवा था कि उन्हें पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल अयूब ख़ान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि से नवाज़ा। इसके बाद से मिल्खा सिंह को पूरी दुनिया में ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से जाना जाने लगा।
बता दें कि आज की तारीख़ में भारत के पास बैडमिंटन से लेकर शूटिंग तक में वर्ल्ड चैंपियन है। बावज़ूद इसके ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह की ख्वाहिश अधूरी रह गई। उनका कहना था कि वे दुनिया छोड़ने से पहले भारत को एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल जीतते देखना चाहते थे।
मैडम तुसाद म्युजियम में भी उड़न सिख को जगह मिली है। यहाँ दुनियाभर की हस्तियों के साथ मिल्खा सिंह का भी मोम का पुतला लगा है। जब मिल्खा ने अपने मोम के पुतले को देखा था तब वे भी दंग रह गए थे। पुतले को देखकर मिल्खा सिंह ने कहा था कि मेरे जाने के बाद लोगों को मेरा पुतला मेरी याद दिलाता रहेगा। पुतला बनाने से पहले कंपनी के प्रतिनिधियों ने उनकी हज़ारों तस्वीरें खीचीं थीं। ख़ासकर जिस तरह से वह जवानी में दौड़ते थे। उनकी छोटी से छोटी मूवमेंट पर बारिकी से गौर किया गया। कपड़ों के माप के लिए विशेष दर्जी बुलाए गए थे। जब उनका पुतला तैयार हुआ तो मिल्खा सिंह का पूरा परिवार हैरान रह गया था। सबने मैडम तुसाद की टीम को इसके लिए दिल से धन्यवाद किया था।
जब जादुई जूते कर दिए नीलाम- जिन जूतों को पहनकर वर्ष 1960 में मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में दौड़े थे, उनको उन्होंने दृष्टिहीन बच्चों की मदद के लिए नीलाम कर दिया था। मिल्खा सिंह को इन जूतों से काफी लगाव था और इन्हें संभालकर उन्होंने अलमारी में रखा हुआ था।
एक बार उन्होंने बताया था कि अभिनेता राहुल बोस चंडीगढ़ स्थित उनके आवास पर मिलने आए थे। बातों-बातों में उन्होंने कहा कि जिन जूतों को पहनकर आप रोम ओलंपिक दौड़े थे, अब उनकी ज़रूरत आ पड़ी है। वह उन जूतों को बेचकर दृष्टिहीन बच्चों की मदद करना चाहते हैं।
राहुल की बात सुनकर मिल्खा सिंह चौंक उठे, क्योंकि उन जूतों से उन्हें काफी प्यार था। उन्हें समझ में नहीं आया कि वे राहुल को क्या जवाब दें लेकिन जब दृष्टिहीन बच्चों के चेहरे उनके सामने आए तो उन्होंने राहुल को नीलामी के लिए हां कर दी। बाद में मुंबई में इन जूतों की नीलामी की गई। जूतों की बोली 10 लाख रुपये से शुरू हुई। इस नीलामी में देश व विदेश के कई नामचीन लोगों ने हिस्सा लिया।
अंत में बॉलीवुड निर्माता व निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने 24 लाख रुपये में इन्हें ख़रीद लिया। राकेश ओम प्रकाश मेहरा मिल्खा सिंह के जीवन पर बनी फ़िल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के निर्देशक भी थे। नीलामी के बाद मिल्खा सिंह ने कहा था कि वह बोली से संतुष्ट हैं। इससे दृष्टिहीन बच्चों की मदद होगी। इस नेक काम में उनके परिवार ने साथ भी दिया था।