Maulana Arshad Madani: संसद से सड़क तक राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ को लेकर छिड़ी बहस के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बड़ा और कड़ा बयान दिया है। मदनी ने दो टूक कहा है कि ‘मर जाएंगे लेकिन शिर्क स्वीकार नहीं करेंगे’। इस बयान ने पहले से ही गरमाए हुए माहौल में और आग लगा दी है।
लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर हुई चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रियंका गांधी तक, सभी ने अपने विचार रखे। अब इस सियासी घमासान में मौलाना अरशद मदनी भी कूद पड़े हैं और उन्होंने अपनी बात रखने के लिए ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक लंबा पोस्ट लिखा है।
‘शिर्क’ का मतलब और मदनी का ऐतराज
मौलाना मदनी ने अपने बयान में ‘शिर्क’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इस्लाम में ‘शिर्क’ का मतलब होता है अल्लाह के साथ किसी और को शामिल करना या किसी और की पूजा करना, जो कि सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है। मदनी का कहना है कि मुसलमान सिर्फ एक अल्लाह की इबादत करता है और उसकी इबादत में किसी को शरीक (शामिल) नहीं किया जा सकता।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘वंदे मातरम’ के कई अंतरों में देश को ‘दुर्गा माता’ के रूप में पेश किया गया है। गीत में ‘मां मैं तेरी पूजा करता हूं’ जैसे शब्द हैं, जो सीधे तौर पर किसी देवी की आराधना दर्शाते हैं। यही कारण है कि यह इस्लामी आस्था के खिलाफ है और इसलिए मुसलमान इसे गा नहीं सकते। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों को दूसरों के ‘वंदे मातरम’ गाने पर कोई ऐतराज नहीं है।
संविधान और सुप्रीम कोर्ट का हवाला
अपने तर्क को मजबूती देने के लिए मौलाना मदनी ने संविधान का हवाला दिया है। उन्होंने अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का जिक्र करते हुए कहा कि किसी भी नागरिक को उसकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ कोई नारा या गीत बोलने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि किसी को राष्ट्रगान तक गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, सिर्फ सम्मान में खड़ा होना जरूरी है।
‘वतन से मोहब्बत है, पूजा नहीं’
मौलाना मदनी ने कहा, “हम वतन से मोहब्बत करते हैं, लेकिन पूजा नहीं करते। हमारी देशभक्ति पर सवाल उठाना बंद कीजिए।” उन्होंने याद दिलाया कि आजादी की लड़ाई में मुसलमानों और जमीयत के बुजुर्गों की कुर्बानियां किसी से छिपी नहीं हैं।
उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए बताया कि 1937 में रवींद्रनाथ टैगोर ने खुद जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर कहा था कि ‘वंदे मातरम’ के सिर्फ पहले दो बंद ही राष्ट्रीय गीत के रूप में उपयुक्त हैं, बाकी बंद एकेश्वरवादी धर्मों की आस्था के खिलाफ हैं। मदनी ने आरोप लगाया कि आज टैगोर के नाम का गलत इस्तेमाल कर पूरे गीत को जबरन गाने की बात करना ऐतिहासिक तथ्यों को नकारना है।
सियासी घमासान के बीच उठा मुद्दा
यह पूरा विवाद ऐसे समय में तूल पकड़ रहा है जब संसद में इस पर चर्चा हो रही है और कुछ ही समय बाद 151वीं वर्षगांठ पर एक भव्य कार्यक्रम होने वाला है, जिसकी जानकारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दी है। विपक्ष, जिसमें प्रियंका गांधी और गौरव गोगोई शामिल हैं, सवाल उठा रहे हैं कि 150 साल पूरे होने पर ही यह चर्चा अचानक क्यों याद आई। आरोप लग रहे हैं कि यह सब आगामी चुनावों को देखते हुए किया जा रहा है। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने भी सदन में यही बात कही थी कि उनका एक ही खुदा है और वह किसी और को नहीं मानते।
मदनी ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल जानबूझकर इस बहस को हवा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बहस धार्मिक आस्था के सम्मान के दायरे में होनी चाहिए, न कि वोट बैंक के लिए। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि देश की चिंताजनक आर्थिक हालत पर चर्चा नहीं होती क्योंकि उससे वोट नहीं मिलते।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ‘मर जाएंगे लेकिन शिर्क स्वीकार नहीं’।
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इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की पूजा (शिर्क) वर्जित है।
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‘वंदे मातरम’ में देश को देवी के रूप में पूजने के कारण मुसलमानों को आपत्ति है।
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मदनी ने संविधान के अनुच्छेद 19, 25 और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।
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उन्होंने कहा कि वतन से मोहब्बत है, लेकिन पूजा नहीं की जा सकती।






