Masahiro Hara QR Code Creator: आज के दौर में जब भी आप बाजार जाते हैं, चाहे सब्जी खरीदनी हो या मॉल में शॉपिंग, एक चीज हर जगह नजर आती है—वह छोटा सा चौकोर, अजीबोगरीब डिजाइन वाला कोड, जिसे हम और आप QR Code कहते हैं। जेब में नकद न भी हो, तो बस मोबाइल निकाला, स्कैन किया और भुगतान हो गया। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह जादुई कोड आखिर आया कहां से? किसने इसे बनाया? और सबसे अहम सवाल, जिसने इसे बनाया, वह आज दुनिया का सबसे अमीर आदमी क्यों नहीं है?
हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में, राज्यसभा सांसद और प्रसिद्ध लेखिका सुधा मूर्ति ने इस तकनीक के पीछे छिपे एक गुमनाम नायक की कहानी दुनिया को याद दिलाई। यह कहानी एक ऐसे जापानी इंजीनियर की है, जिसकी एक निस्वार्थ सोच ने वैश्विक अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल दिया।
बारकोड की सीमाओं ने दिया नए आविष्कार को जन्म
कहानी की शुरुआत 1994 में जापान से होती है। उस समय दुनिया बारकोड पर निर्भर थी—वही काली और सफेद लाइनों वाला कोड। जापान की एक ऑटोमोबाइल कंपनी ‘डेंसो’ के सामने एक बड़ी चुनौती थी। कार के कलपुर्जों पर लगे बारकोड में बहुत सीमित जानकारी ही स्टोर हो पाती थी। अगर एक से ज्यादा जानकारी चाहिए होती, तो एक ही पुर्जे पर दस-दस बारकोड लगाने पड़ते थे। मशीनें भी इन्हें पढ़ने में काफी समय लेती थीं।
बोर्ड गेम से मिला क्रांतिकारी विचार
इस समस्या से तंग आकर डेंसो के ही एक इंजीनियर, मसाहिरो हारा (Masahiro Hara), ने इसका समाधान खोजने का बीड़ा उठाया। उन्हें ‘गो’ (Go) नाम का एक बोर्ड गेम खेलने का शौक था। इसी गेम के बोर्ड को देखते-देखते उनके दिमाग में एक विचार कौंधा। उन्होंने सोचा कि अगर बारकोड की सीधी लाइनों को चौकोर (स्क्वायर) में बदल दिया जाए, तो जानकारी को ऊपर-नीचे और दाएं-बाएं दोनों तरफ से पढ़ा जा सकता है।
ऐसे तैयार हुआ ‘क्विक रिस्पांस’ कोड
मसाहिरो हारा ने अपनी टीम के साथ दिन-रात मेहनत की और आखिरकार ‘क्विक रिस्पांस कोड’ यानी QR Code तैयार किया। यह नया कोड बारकोड की तुलना में 10 गुना तेज था और इसमें कई गुना ज्यादा जानकारी स्टोर की जा सकती थी। इसकी सबसे खास बात यह थी कि अगर यह कोड थोड़ा फट जाए या गंदा भी हो जाए, तब भी मशीनें इसे आसानी से पढ़ सकती थीं।
अरबों डॉलर ठुकराकर चुना मानवता का रास्ता
कहानी का सबसे भावुक और अहम मोड़ यहीं आता है, जिसका जिक्र सुधा मूर्ति ने संसद में किया। जब कोई नई और क्रांतिकारी तकनीक बनती है, तो आमतौर पर उसका आविष्कारक उसे पेटेंट करवा लेता है, ताकि दुनिया जब भी उसका इस्तेमाल करे, उसे रॉयल्टी मिले। अगर मसाहिरो और उनकी कंपनी चाहती, तो वे QR Code पर अपना एकाधिकार जमा सकते थे।
आज दुनिया भर में हर रोज अरबों बार QR Code स्कैन होता है। जरा सोचिए, अगर हर स्कैन पर उन्हें मामूली 10 पैसे भी मिलते, तो वे आज बेशुमार दौलत के मालिक होते। लेकिन मसाहिरो हारा ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इस तकनीक को मानव कल्याण और ‘बहुजन हिताय’ के लिए मुफ्त कर दिया। उन्होंने पेटेंट तो लिया, लेकिन इसके इस्तेमाल को ‘ओपन सोर्स’ रखा, यानी दुनिया का कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे मुफ्त में इस्तेमाल कर सकती है। उनका मानना था, “मैं चाहता हूँ कि यह तकनीक पूरी दुनिया के काम आए।”
कोविड काल में बना जीवन का आधार
मसाहिरो हारा के उस एक फैसले ने दुनिया बदल दी। शुरुआत में यह सिर्फ फैक्ट्रियों में इस्तेमाल हुआ, लेकिन 2000 के बाद जब मोबाइल फोन में कैमरे आए, तो QR Code घर-घर पहुँच गया। और फिर वह दौर आया जिसने इसे हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बना दिया—कोविड-19 महामारी। जब लोग एक-दूसरे को छूने या नोट लेने-देने से डरते थे, तब इसी QR Code ने कॉन्टैक्टलेस पेमेंट (बिना छुए भुगतान) को संभव बनाया। आज भारत के छोटे से छोटे गाँव में एक रेहड़ी लगाने वाला भी डिजिटल पेमेंट ले रहा है, यह सब मसाहिरो हारा की उसी सोच का नतीजा है।
असली कामयाबी बैंक बैलेंस में नहीं
आज रेलवे टिकट हो, अस्पताल की रिपोर्ट, रेस्टोरेंट का मेन्यू या किसी वेबसाइट का लिंक, सब कुछ इस छोटे से कोड में समा गया है। मसाहिरो हारा आज भी बड़ी विनम्रता से कहते हैं, “मैंने तो बस एक समस्या का हल खोजा था। इसे बड़ा तो दुनिया के भरोसे ने बनाया है।” सुधा मूर्ति ने बिल्कुल सही कहा कि ‘सोशल इनोवेटर’ सिर्फ आविष्कार नहीं करते, वे समाज को एक बेहतर जगह बनाते हैं। मसाहिरो हारा ने साबित कर दिया कि असली कामयाबी बैंक बैलेंस में नहीं, बल्कि इस बात में है कि आपके काम से कितने लोगों की जिंदगी आसान हुई है।
मुख्य बातें (Key Points)
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QR Code का आविष्कार 1994 में जापानी इंजीनियर मसाहिरो हारा ने किया था।
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इसे बारकोड की सीमाओं, जैसे कम डेटा स्टोरेज और धीमी स्कैनिंग, को दूर करने के लिए बनाया गया था।
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मसाहिरो हारा को QR Code का विचार ‘गो’ नामक एक बोर्ड गेम से आया।
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उन्होंने इस तकनीक को पेटेंट कराने के बावजूद दुनिया के लिए ‘ओपन सोर्स’ और मुफ्त रखा।
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मसाहिरो हारा के इस निस्वार्थ फैसले ने डिजिटल पेमेंट और वैश्विक अर्थव्यवस्था में क्रांति ला दी।






