लेखक- पंडित संदीप
भारत के डिजिटलीकरण की सीतारामण आपके महान योगदान को यह हिंदू भूमि भुलाए नहीं भूलेगी, यह ऐतिहासिक पल कभी नहीं भूल पाएगा आपके टैब से निकले इस शब्द सार को रोटी रोजगार की तलाश में भटकता यंगिस्तान और खेत खलिहान खाद खरीदने में अटकता परेशान किसान। टैब पर उंगलियों से सरासर सरकता पन्ना दर पन्ना में सिमटा लिपटा डिजिटल बजट कब हमारे सिर से पार हो गया समझ ही नहीं आया मुल्क को और ना ही कोई समझा ही पा रहा है कि बजट में देश को क्या मिला? कागज कलम से छूट टैब की जकड़ में जकड़ा बजट “सीता के बोल रमण के विज्ञान की तरह” लगे जो आम आदमी की समझदारी में समाने को तैयार ही नहीं दिखते। आप के आजू-बाजू और पीछे बैठे नेताओं की खिसियानी हंसी भी ये बता ही रही थी कि पल्ले इनके भी कुछ नहीं पड़ा पर मेज भी न पीटते तो करते क्या मजबूरी के मारे बेचारे। उनकी मेज पिटाई तो सबको दिखाई दी, पर छाती पीटता देश किसी को नहीं दिखाई दिया न ही सरकार ने देखने ही दिया। ऐसा हुनर जो आपने डिजिटल रूप में परोसा है इसके चमत्कार से सपने पसर गये, हिम्मत टूट गई और हौसले पस्त हो रहे हैं राम राम की कराह में आम जन पूछ रहे हैं कलयुगी सीता ये तूने क्या किया?
आपकी पोटली खोलने से भाग्य खुलने के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे मजदूर, व्यापारी, बेरोजगार, शिक्षार्थी, डॉक्टर, इंजीनियर सब के अरमानों पर मानो पत्थर पड़ गए। चुनावी बजट समझ सब मन ही मन गुदगुदा रहे थे की राम राज्य की चौखट पर खड़े वतन में सीता जी उपकार करेंगी पर हाय री किस्मत आप तो संहार पर उतर आईं। हे राम जी दया करो सीता को सद् बुद्धि दो न दो जन बुद्धि तो दे ही दो।
डेढ़ घंटे से भी ज्यादा लंबे भाषण शब्दों के साढ़े दस हजार शब्द बाण आपकी वाणी से छूटे। आप नारी शक्ति पुंज बन लोकतंत्र के मंदिर में खड़ी थी पर हाय रे नारी किस्मत 91 मिनट लंबे भाषण में आपके मुँह से बस एक बार ही “महिला” निकला डिजिटल यूनिवर्सिटी बना पाठशालाओं का रूप स्वरूप बदलने का सपना दिखाने वाली सीता जी के मुँह से स्टूडेंट भी एक ही बार उच्चारित हुआ, बिजली की चर्चा में एक शब्द में समेटने की कला कोई आपसे सीखे और डिजिटल भारत की बुनियादी भाषण में गरीब बस गरीब ही रह गया दो बार ही जगह बना पाया, पानी को भी आपकी बेरुखी से ही रूबरू होना पानी पानी पानी एक साथ नहीं पूरे भाषण में बस तीन बार ही पानी बोल पानी का भी काम तमाम कर दिया। सड़क शब्द को चार बार याद किया तो वही महामारी के दर्द से कराह रहे भारत में इस शब्द को माननीय मंत्री ने अपने पूरे भाषण में 6 बार ही बोलने की ज़हमत उठाई मतलब राहत के रास्ते बंद करने जैसी हड़बड़ी दिखी। बेरोजगारी के नए कीर्तिमान से कराहते चित्कारते मेरे देश में युवाओं की सबसे बड़ी चिंता को श्रीमती रमण मुख से 6 बार उच्चारण हुआ पर समाधान का झरोखा दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिया। तीन काले कानूनों को रोकने के लिए जिस देश में 700 से ज्यादा किसानों ने प्राण बलिदान किए हो उनको अपने साढे दस हज़ार शब्दों में 13 बार बोल यूं लगा तेरहवीं की रस्म भी अदा हुई, यह संयोग था या प्रयोग समझ नहीं आया। किसान से इतनी बेरुखी क्यों? किसान को कुछ दिया क्यों नहीं? देश की ग्रोथ को 16 बार आपने दोहराया तो स्वास्थ्य को 17 बार सुनहरे डिजिटल भाषण में जगह मिली आपका प्रिय शब्द टैक्स 18 बार जगह बनाने में कामयाब रहा इंफ्रास्ट्रक्चर ने बाजी मारते हुए 22 बार जगह बनाई और आपका विजेता शब्द बन चमका डिजिटल जिसे आपने बार बार बोलकर 36 बार तक पहुंचा दिया।
नौकरी से हाथ धोते बेरोजगारों की फौज काले कानूनों से लड़ता मरता किसान बॉर्डर पर शहीद होते जवान पेशेवर, मजदूरों, महिलाओं को आपके डिजिटल संसार ने इंतजार के सिवाय क्या दिया? एक झूठीमूठी परियों की कहानी 25 साल बाद स्वर्ग होगा देश। बजट के मायने जानने समझने बजट से सरोकार रखने वाले 30% तक तो शायद स्वर्ग से ही स्वर्ग बनते इस भारत को देख रहे होंगे। बजट यथार्थ है ख्वाबों का पिटारा नहीं, बजट लेखा-जोखा है परियों की झूठी कहानी नहीं, बजट विकास की पटकथा होती है अर्थहीन शब्दों का पुलिंदा नहीं। वायदे पर वायदे मतलब झूठ पर झूठ ही है अगर पिछले वायदों को जमीन पर उतारने की कोशिश भी नहीं हुई तो, इस बजट में आपके दिशाहीन बजट देश को किस दिशा में ले जाएगा, शायद आपको भी नजर नहीं आ रहे हैं बड़े-बड़े शब्द गढे आप ने वाइब्रेंट विलेज, डिजिटल यूनिवर्सिटी, डिजिटल बैंक, डिजिटल करंसी नए-नए दो ऐप भी पेश किए गए निवेदन बस आपसे इतना ही है कि कुछ ऐसा भी करो कि भूख भी डिजिटल हो जाए न आखिर न रहेगी भूख न मांगेंगे हम रोजगार, न बोयेंगे खेत, न काटेंगे फसल, न देखेंगे ख्वाब सब समस्या ही खत्म। सोचो इस बार जो डिजिटल इंडिया परोसा है उस इंडिया में रोटी रोजगार खेत ख्वाब भूख भी डिजिटल कर दो ना देश एहसान मानेगा।