चंडीगढ़, 14 जनवरी (The News Air):– मकर संक्रांति भारत के उन पर्वों में से है, जो न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि खगोलीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशिष्ट स्थान रखते हैं। यह पर्व प्रकृति के परिवर्तन और समाज में समरसता का प्रतीक है।
मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व
मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और ‘उत्तरायण’ की शुरुआत होती है। इसे सर्दियों के अंत और गर्मियों की शुरुआत का संकेत माना जाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, यह समय ‘देवताओं का दिन’ कहा जाता है। उत्तरायण काल को शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर माना जाता है।
इस खगोलीय घटना के आधार पर ही यह त्योहार हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन दिन का समय बढ़ने लगता है, जो प्रकाश और ऊर्जा के बढ़ने का प्रतीक है।
पर्व से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
मकर संक्रांति का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। यह माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर उन्हें पाताल लोक भेजा था। इसलिए इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा, महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का इंतजार किया था।
देश भर में मकर संक्रांति के अलग-अलग रूप
- उत्तर प्रदेश और बिहार:
गंगा, यमुना और सरयू जैसे पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाना और दान करना मुख्य परंपराएं हैं। - पश्चिम बंगाल:
यहां इसे ‘पौष संक्रांति’ कहते हैं। गंगा सागर में स्नान करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। लोग गुड़-पिठा बनाते हैं और भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। - महाराष्ट्र:
महिलाएं एक-दूसरे को तिल-गुड़ देकर कहती हैं, “तिल-गुड़ घ्या, गोड़-गोड़ बोला।” यह प्रेम और मिठास बढ़ाने का प्रतीक है। - गुजरात:
यहां पतंगबाजी का उत्सव होता है। ‘उत्तरायण’ के नाम से मनाया जाने वाला यह पर्व युवाओं और बच्चों में खासा लोकप्रिय है। - तमिलनाडु:
यह पर्व ‘पोंगल’ के नाम से चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन को ‘भोगी’, दूसरे दिन ‘पोंगल’, तीसरे दिन ‘मट्टू पोंगल’ और चौथे दिन ‘कानुम पोंगल’ कहा जाता है। - राजस्थान और मध्य प्रदेश:
यहां इसे ‘सांझा’ और ‘दानपुण्य’ के पर्व के रूप में मनाते हैं।
तिल-गुड़: स्वास्थ्य और संस्कृति का मेल
मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का सेवन एक प्रमुख परंपरा है। सर्दियों के मौसम में तिल और गुड़ शरीर को गर्म रखते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं। यह परंपरा न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि रिश्तों में मिठास लाने का भी प्रतीक है।
पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
मकर संक्रांति समाज में एकता, सद्भाव और परोपकार का संदेश देता है। इस दिन लोग पुराने मतभेद भुलाकर एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करते हैं। दान-पुण्य की महत्ता को इस पर्व में विशेष स्थान दिया गया है।
पर्व से जुड़े खेल और गतिविधियां
- पतंगबाजी: मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना एक रोमांचक परंपरा है। इसे सामूहिक उत्सव और आनंद का प्रतीक माना जाता है।
- खिचड़ी: कई राज्यों में खिचड़ी का सेवन इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है। इसे सादगी और पोषण का प्रतीक माना जाता है।
मकर संक्रांति का वैश्विक महत्व
भारत के अलावा, यह पर्व नेपाल में ‘माघे संक्रांति’, थाईलैंड में ‘सोंक्रान’, और श्रीलंका में ‘उझावर थिरुनल’ के रूप में मनाया जाता है। यह इस पर्व की सांस्कृतिक विविधता और वैश्विक महत्ता को दर्शाता है।
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, खगोलशास्त्र और मानवीय मूल्यों का संगम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में सकारात्मकता, दान और सद्भावना का कितना महत्व है। यह समाज में नई ऊर्जा का संचार करता है और हमें अपने परंपराओं से जुड़ने का अवसर देता है।