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लिट्टे, एक ऐसा संगठन जिसने इकट्ठा कर लिया था तबाही का हर हथियार, सेना को भी धकेल दिया था पीछे

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गुरूवार, 16 फ़रवरी 2023
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लिट्टे, एक ऐसा संगठन जिसने इकट्ठा कर लिया था तबाही

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तमिल राष्ट्रवादी नेता पाझा नेदुमारन ने 13 फरवरी को एक ऐसा दावा किया जिससे श्रीलंका और भारत में सुर्खियां बन गईं.  उन्होंने दावा किया कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) का चीफ वेलुपिल्लई प्रभाकरण जिंदा है. वेलुपिल्लई प्रभाकरन वही है जिसने पूरे श्रीलंका में तहलका मचाने वाले उग्रवादी संगठन लिट्टे की शुरुआत की थी. इसके अलावा उस पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की भी साजिश रची थी.  

श्रीलंका सरकार ने लिट्टे नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरन की मौत की घोषणा 18 मई, 2009 को यानी 14 साल पहले कर दी थी. अब एक बार फिर उसके जिंदा होने की खबर ने सबको चौंका कर रख दिया है. इस दावे पर श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने तमिल राष्ट्रवादी नेता पाझा नेदुमारन के दावे को खारिज कर दिया है. उनकी कहना है कि लिट्टे प्रमुख मारा गया था और यह बात डीएनए टेस्‍ट में भी साबित कर चुकी है.

सबसे पहले जानते हैं कौन है वेलुपिल्लई प्रभाकरन

श्रीलंकाई तमिल गुरिल्ला और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) का संस्थापक था वेलुपिल्लई प्रभाकरन. लिट्टे एक ऐसा संगठन है जिसने श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाने की मांग की थी.

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LTTE यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ने लगभग तीन दशकों तक अपनी दहशत से लोगों को डराकर रखा था. इसके बाद श्रीलंका की सेना ने 2009 में लिट्टे चीफ प्रभाकरन को मौत के घाट उतार दिया था.

प्रभाकरन पर भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या की साजिश का भी आरोप है. इसके अलावा वह श्रीलंका के एक और राष्ट्रपति की हत्या की कोशिश, सैकड़ों राजनीतिक हत्याओं और कई आत्मघाती हमलों का जिम्मेदार है.

प्रभाकरन को कैसे मारा गया था

प्रभाकरन की मौत को लेकर कई मीडिया रिपोर्ट्स ने अलग अलग तरह की बात कही. किसी रिपोर्ट में बताया गया कि प्रभाकरन ने सैनिकों के बीच घिरे रहकर खुद को गोली मार ली थी और कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि वह श्रीलंका के सैनिकों की गोली का शिकार हुआ था.

एक रिपोर्ट के अनुसार जब श्रीलंकाई सेना लिट्टे के क्षेत्र में प्रवेश कर रही थी तो, प्रभाकरन और उसके शीर्ष नेता मुल्लैतिवु भाग गए, जिसे रोकने के लिए सैनिकों ने रॉकेट हमला किया और प्रभाकरन मारा गया, जब वह एक एम्बुलेंस में संघर्ष क्षेत्र से भागने की कोशिश कर रहे थे, उनका शरीर बुरी तरह जल गया था. हालांकि समर्थक विद्रोही ने दावा किया कि वे जीवित था.

बाद में प्रभाकरन का शरीर नानडिकाथल लैगून के उत्तर में पाया गया था. डीएनए टेस्ट से इस बाद की पुष्टि हुई कि ये शव उसका ही है. रिपोर्ट में कहा गया कि उनकी मौत सिर पर भारी चोट लगने से या नजदीक से गोली लगने के कारण हुई थी.

श्रीलंका की सेना ने दावा किया कि उन्हें प्रभाकरन का शव एक झील में मिला था. श्रीलंकाई सेना ने उसकी तस्वीर भी साझा की थी. उसकी शक्ल प्रभाकरन की तरह थी और एक बड़ी गोली का निशाना उसके माथे पर था, जो इस बात को सिद्ध करता था कि उसके सिर पर गोली लगी थी.

श्रीलंकाई तमिल पत्रकार डीबीएस जयराज ने साल 2021 के अपने एक रिपोर्ट में प्रभाकरन के मौत के बारे में लिखा था, ‘उसकी लाश को खोजने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया. उसके पास से छह अंगरक्षकों के भी शव मिले थे. प्रभाकरन के शव को देखकर लग रहा था कि उसने मुंह में बंदूक डालकर ऊपर की फायर कर लिया था.’

द इंडियन एक्सप्रेस के 2009 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि जाफना के एक मानवाधिकार समूह, यूनिवर्सिटी टीचर्स फॉर ह्यूमन राइट्स-जाफना (यूटीएचआर-जे) ने एक स्पेशल रिपोर्ट में लिखा है कि “प्रभाकरन को डिवीजन 53 मुख्यालय में एक तमिल सरकार के राजनेता और एक जनरल की उपस्थिति में टॉर्चर किया गया था. जिससे उसकी मौत हो गई.”

प्रभाकरन के मौत के बाद संगठन का क्या हुआ

साल 2009 में जब लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन की मौत हुई तो इस संगठन का आतंक भी धीरे धीरे ख़त्म हो गया लेकिन श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में फैले इसके समर्थक अभी भी चुनौती बने हुए हैं.

अब जानते हैं कि आखिर ये लिट्टे क्या है

श्रीलंका में 70 के दशक की शुरुआत में तमिलों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई संगठनों का जन्म हुआ था. इन संगठनों में तमिल न्यू टाइगर्स (TNT) भी एक था. टीएनटी के साथ पहले छात्र और नौजवान जुड़े थे और इसकी बागडोर वी. प्रभाकरन के हाथों में थी.

1976 में प्रभाकरन ने एस. सुब्रमण्यम के आतंकवादी गुट के साथ हाथ मिला लिया और इस तरह लिट्टे का जन्म हुआ. बीतते वक्त से साथ साथ लिट्टे अन्य तमिल संगठनों की तुलना में सबसे शक्तिशाली संगठन बन गया और अन्य छोटे मोटे संगठनों को या तो अपने साथ मिला लिया या खत्म कर दिया.

एक दशक के अंदर प्रभाकरन ने लिट्टे को मामूली हथियारों के 50 से कम लोगों के समूह से 10 हज़ार लोगों के प्रशिक्षित संगठन में बदल दिया था जो एक देश की सेना तक से टक्कर ले सकता था. 1980 के दशक के मध्य तक लिट्टे तमिलों का नेतृत्व करने वाला एकमात्र संगठन शक्तिशाली के तौर पर उभरा.

लिट्टे के कुख्यात हमले 

    • साल 1983 में इस संगठन के लोगों ने जाफना में 13 श्रीलंकाई सैनिकों की हत्या कर दी. जिसके कारण हिंसा भड़क उठी. लिट्टे और श्रीलंकाई सेना के बीच टकराव बढ़ा. नतीजतन श्रीलंका में गृह युद्ध शुरू हो गया. माना जाता है कि इस दौरान 400 से 3000 के लोगों की मौत हुई थी. जबकि 1.5 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े, और लगभग 8000 घरों और 5000 दुकानों को दंगे में जला दिया गया था.
    • इस संगठन के सबसे कुख्यात हमलों में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति प्रेमदासा पर किये गए  जानलेवा हमले शामिल हैं.
    • 1995 में लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के विमान पर हमला कर उसे गिरा दिया. इसी साल इस संगठन ने श्रीलंका नौसेना के दो नावों को डुबो दिया था.
    • जनवरी 1996 में कोलम्बों के सेंट्रल बैंक पर इस संगठन के लोगों ने आत्मघाती हमला किया था जो कि अब तक का सबसे खतरनाक हमला माना जाता है. इसमें 90 लोग मारे गए थे और 1400 लोग घायल हुए थे.
    • वर्ष 2004 में कोलंबो में एक आत्मघाती हमला किया जो 2001 के बाद का सबसे बड़ा हमला था.
    • साल 2005 के अगस्त महीने में लिट्टे ने श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमर की हत्या कर दी. इस हत्या के बाद देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई.
    • साल 2006 में दिगमपटाया नरसंहार किया. इस हमले में श्रीलंकाई सेना को निशाना बनाते हुए 120 नाविकों को मौत के घाट उतार दिया गया था.

क्या था राजीव गांधी का शांति प्रस्ताव 

भारत के पड़ोसी देश में हो रही हिंसा के कारण लाखों तमिल लोग समुद्र के रास्ते भारत की सीमा में आने लगे थे. वहीं लिट्टे चाहता था कि भारत के तमिलों के साथ मिलकर उनका अलग देश बने. जिसका मतलब है कि 1983 में होने वाले श्रीलंकाई गृह युद्ध का असर भारत पर भी पड़ रहा था.

साल 1986 में इस देश की श्रीलंका की स्थिति खराब होती गई. श्रीलंकाई सेना ने तमिलों के गढ़ कहे जाने वाले जाफना में हमला कर दिया. इस हमले में लाखों तमिल नागरिक घायल हुए और कई की मौत भी हुई.

भारत ने इस कत्लेआम को देखते हुए जाफना में घिरे तमिलों की मदद के लिए सेना भेजी. जिसे ऑपरेशन ‘पवन’ का नाम दिया गया. भारत ने सेना समुद्र के रास्ते से भेजनी चाही, लेकिन श्रीलंकाई सैनिकों ने इसकी इजाजत नहीं दी और भारतीय सेना को रोक दिया.

श्रीलंका के इस फैसले से नाराज भारत ने हवाई रास्ते के तमिलों को मदद पहुंचाने का ऐलान कर दिया. अब भारतीय वायुसेना भी शामिल थी. भारत के इस ऐलान और तमिलों की मदद के लिए सेना आने के बाद श्रीलंका सरकार लिट्टे से समझौता करने पर राजी हो गई और जुलाई 1987 में भारतीय शांति सेना की जाफना में तैनाती शुरू हुई. तैनाती के साथ ही शांति समझौते पर हस्ताक्षर के लिए राजीव गांधी भी कोलंबो पहुंचे.

साल 1990 तक शांति समझौते के बाद भारतीय सेना के जवान वहां रहे. इस ऑपरेशन में हमारे देश के 1200 जवान शहीद हुए. यही वो फैसला था जो राजीव की हत्या का कारण भी बना.

दरअसल शांति सेना को भेजने के फैसले के बाद से ही लिट्टे राजीव का दुश्मन बन गया था. साल 1991 में एक आत्मघाती हमले में लिट्टे ने राजीव गांधी की हत्या कर दी.

राजीव गांधी ने दी थी बुलेटप्रूफ जैकेट 

मीडिया रिपोर्ट्स के की माने तो जब लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन भारत-श्रीलंका समझौते को लेकर मान गया था और एक मौका देने के लिए तैयार हो गया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी काफी खुश हुए. उन्होंने प्रभाकरन को एक बुलेटप्रूफ जैकेट भी दी थी ताकि वह किसी भी तरह के हमले से बच सके. कहा जाता है कि राजीव गांधी ने उसकी जुबान पर भरोसा कर लिया था और बदले में प्रभाकरन ने उनकी ही हत्या की साजिश रच डाली.

लिट्टे पर प्रतिबंध 

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. सरकार ने अपने गजट अधिसूचना में कहा कि लिट्टे श्रीलंका का हिंसक और अलगाववादी संगठन है. भारत में इसका समर्थन करना या किसी तरह की सहानुभूति रखना हमारे देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिये खतरा है. यह गैर-कानूनी गतिविधि के दायरे में आता है.

अधिसूचना में यह भी कहा कि मई 2006 में श्रीलंका में अपनी हार के बाद लिट्टे ने ईलम की अवधारणा को नहीं छोड़ा है. यह संगठन उसके बाद भी यूरोप में धन उगाही और प्रचार गतिविधियों को अंजाम देकर ईलम के प्रति दृढ़ता से काम कर रहा है.

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