LIC Adani Reliance Investment को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जो देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े करती है। आरोप है कि LIC, जिसके पास आम जनता का करीब 57 लाख करोड़ रुपये का फंड है, वह दो बड़े कॉरपोरेट घरानों अडानी समूह और रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम रुख अपना रही है। यह रिपोर्ट दावा करती है कि जब भी इन दोनों समूहों की कंपनियों में कोई प्रस्ताव वोटिंग के लिए आता है, तो LIC हमेशा उनके पक्ष में वोट करती है या गैरहाजिर रहती है, जबकि दूसरी कंपनियों के ऐसे ही प्रस्तावों का वह विरोध करती है।
क्या है ‘मिंट’ की रिपोर्ट का दावा?
बिजनेस अखबार ‘मिंट’ के रिपोर्टर नेहल और वरुण सूद की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023 से लेकर अब तक LIC ने जिन 9000 प्रस्तावों पर वोटिंग में हिस्सा लिया, उनका विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि LIC ने 92% प्रस्तावों के पक्ष में वोट किया, 6% में गैरहाजिर रही और सिर्फ 2% प्रस्तावों का विरोध किया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि पिछले 14 तिमाहियों (1 अप्रैल 2022 से) में LIC ने रिलायंस और अडानी समूह की कंपनियों के किसी भी प्रस्ताव का विरोध नहीं किया।
अडानी-अंबानी पर LIC का ‘एकतरफा प्यार’?
रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज और जियो फाइनेंशियल सर्विसेज में LIC पब्लिक सेक्टर की सबसे बड़ी निवेशक है, जहां उसका करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये लगा है। इन दोनों कंपनियों की तरफ से 63 प्रस्ताव आए और LIC ने सभी को मंजूरी दे दी।
वहीं, अडानी समूह की कंपनियों की तरफ से 368 प्रस्ताव आए, जिनमें से 351 पर LIC ने ‘हां’ कहा और बाकी 17 पर वोटिंग से गैरहाजिर रही। एक भी प्रस्ताव के खिलाफ वोट नहीं किया गया। यह तब है जब LIC के पास 30 करोड़ से ज्यादा पॉलिसीधारकों का पैसा है और एक जिम्मेदार निवेशक के तौर पर उसे कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानकों का ध्यान रखना चाहिए।
दोहरे मापदंड पर उठ रहे सवाल
रिपोर्ट में LIC के दोहरे मापदंडों को उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए, अगस्त 2023 में जब मुकेश अंबानी को रिलायंस के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरपर्सन के रूप में फिर से नियुक्त करने का प्रस्ताव आया, तो LIC ने पक्ष में वोट किया। लेकिन जब TVS मोटर कंपनी के वेणु श्रीनिवासन की इसी तरह की नियुक्ति का प्रस्ताव आया, तो LIC ने न तो पक्ष में वोट किया और न ही विरोध, बस गैरहाजिर रही।
इसी तरह, अडानी एंटरप्राइजेज में गौतम अडानी के भाइयों—राजेश अडानी (MD) और प्रणव अडानी (ग्रुप चेयरमैन)—की पुनर्नियुक्ति के प्रस्ताव पर भी LIC गैरहाजिर रही। जबकि कोरोमंडल इंटरनेशनल, बजाज फाइनेंस और L&T जैसी कंपनियों में ऐसे ही मिलते-जुलते प्रस्तावों का LIC ने विरोध किया था।
सेबी के नियमों की अनदेखी?
बाजार नियामक सेबी (SEBI) का मानना है कि टॉप 500 कंपनियों में चेयरपर्सन और एमडी का पद अलग-अलग व्यक्तियों के पास होना चाहिए। हालांकि, इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है, लेकिन सेबी इसे बेहतर कॉरपोरेट गवर्नेंस मानता है। सवाल यह है कि जब सेबी ऐसा मानती है, तो LIC, जो एक सरकारी संस्था है, एक ही व्यक्ति को दोनों पद देने के प्रस्तावों का समर्थन कैसे कर सकती है? क्या उसे इसका विरोध नहीं करना चाहिए?
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट और सरकार की चुप्पी
इससे पहले ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने भी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि इस साल मई में, जब अडानी समूह वित्तीय दबाव का सामना कर रहा था, तब LIC ने अडानी की कंपनियों में 3458 करोड़ रुपये का निवेश किया था। रिपोर्ट के अनुसार, यह निवेश एक ‘बेलआउट’ जैसा था। हालांकि, LIC और अडानी समूह दोनों ने ही इस रिपोर्ट का खंडन किया है। LIC का कहना है कि उसके सभी निवेश निर्णय स्वतंत्र रूप से और पूरी जांच-परख के बाद लिए जाते हैं।
इन तमाम रिपोर्ट्स के बाद सरकार और LIC की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं। ‘मिंट’ के रिपोर्टरों ने रिलायंस, अडानी समूह और LIC से जवाब मांगा, लेकिन उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
मुख्य बातें (Key Points)
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LIC पर अडानी और रिलायंस समूह के प्रस्तावों का हमेशा समर्थन करने का आरोप है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, LIC ने पिछले कुछ वर्षों में इन दोनों समूहों के किसी भी प्रस्ताव के खिलाफ वोट नहीं किया।
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अन्य कंपनियों के मिलते-जुलते प्रस्तावों का LIC ने विरोध किया या गैरहाजिर रही, जिससे दोहरे मापदंड का पता चलता है।
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LIC के पास जनता का 57 लाख करोड़ रुपये का फंड है, और उसके निवेश फैसलों में पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठ रहे हैं।






