Lal Bahadur Shastri Jayanti: लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिनका पूरा जीवन सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक रहा। उन्होंने छोटे से कार्यकाल में भी ऐसे फैसले लिए जिनसे देश का मान बढ़ा और राष्ट्र को नई दिशा मिली। उनका प्रसिद्ध नारा – “जय जवान, जय किसान” – आज भी भारतीय राजनीति और समाज का मार्गदर्शक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ। पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे और उनकी माता का नाम रामदुलारी देवी था। पिता का निधन तब हुआ जब वे डेढ़ वर्ष के थे। उनका पालन-पोषण ननिहाल में हुआ और बचपन में उन्हें ‘नन्हें’ कहकर पुकारा जाता था।
शास्त्री जी ने शिक्षा काशी विद्यापीठ से प्राप्त की। यहां उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है ‘विद्वान’। यह उपाधि आगे उनके नाम का स्थायी हिस्सा बन गई।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
गांधीजी से प्रेरित होकर शास्त्री जी 16 वर्ष की उम्र में ही असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। इसके बाद नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी की। अपने जीवन का करीब नौ साल उन्होंने ब्रिटिश जेलों में बिताया।
राजनीति और प्रधानमंत्री पद
आजादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में संसदीय सचिव और मंत्री पद संभाले। केंद्र में भी उन्होंने रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य मंत्री और गृह मंत्री जैसे अहम पदों पर काम किया।
9 जून 1964 को वे देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ डेढ़ साल का रहा, लेकिन इस दौरान उन्होंने देश को कठिन दौर से बाहर निकालने में निर्णायक भूमिका निभाई।
उनका योगदान और उपलब्धियां
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जय जवान, जय किसान:
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान शास्त्री जी ने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और खाद्य संकट से जूझ रहे देशवासियों को प्रेरित किया। इसी समय उन्होंने यह ऐतिहासिक नारा दिया। -
खाद्य और श्वेत क्रांति:
देश को खाद्य संकट से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हरित क्रांति को प्रोत्साहन दिया और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए ‘श्वेत क्रांति’ की नींव रखी। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) का गठन भी उन्हीं के समय हुआ। -
नैतिकता और सादगी:
शास्त्री जी अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। रेल मंत्री रहते हुए जब एक बड़ी रेल दुर्घटना हुई तो उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। यह भारतीय राजनीति में नैतिक मूल्यों की अनोखी मिसाल मानी जाती है।
ताशकंद और निधन
भारत-पाक युद्ध के बाद शांति समझौते के लिए शास्त्री जी ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) गए, जहां 11 जनवरी 1966 को उनका निधन हो गया। देश ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।
लाल बहादुर शास्त्री ऐसे समय प्रधानमंत्री बने जब देश खाद्यान्न संकट, युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था। जवाहरलाल नेहरू के बाद वे जनता की उम्मीद बने। अपने छोटे कद और शांत स्वभाव के बावजूद उन्होंने अपने फैसलों और दूरदृष्टि से साबित कर दिया कि सच्चा नेतृत्व आकार से नहीं, संकल्प से पहचाना जाता है।
मुख्य बातें (Key Points)
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लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ।
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उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर देश को जोड़ा।
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1965 के युद्ध और खाद्यान्न संकट के दौरान उनका नेतृत्व निर्णायक साबित हुआ।
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शास्त्री जी का निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में हुआ और उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।






