Kolhapuri Chappal Prada: भारत के आम बाजारों में 1500 रुपये में मिलने वाली कोल्हापुरी चप्पल अब इटली के Luxury Brand प्राडा (Prada) के शोरूम में करीब 85,000 रुपये में बिकेगी। यह ऐतिहासिक फैसला इटली-इंडिया Business Forum 2025 के दौरान हुए एक समझौते के बाद लिया गया है, जिसके तहत भारतीय कारीगरों का हुनर अब पूरी दुनिया में अपनी चमक बिखेरेगा।
वर्ष 1979 में आई Film ‘सुहाग’ में अमिताभ बच्चन ने अपनी कोल्हापुरी चप्पल दिखाते हुए कहा था, “देखने में नंबर नौ और फटके में 100″। दशकों तक भारतीय संस्कृति और मजबूती की पहचान रही यह चप्पल अब Global होने जा रही है।
शोरूम में 85 हजार होगी कीमत
महाराष्ट्र और कर्नाटक में तैयार होने वाली यह देसी चप्पल अब इटली के सबसे बड़े Fashion House प्राडा के आलीशान Showrooms की शोभा बढ़ाएगी। जो चप्पल भारत में सामान्य दुकानों पर 1500 रुपये तक में मिल जाती है, उसकी कीमत प्राडा के Store में 80 से 85 हजार रुपये के बीच होने की उम्मीद है। इस समझौते के बाद कोल्हापुरी चप्पल को एक नई वैश्विक पहचान मिलेगी और कारीगरों को उनकी मेहनत का सही दाम मिल सकेगा।
40 देशों में होगी बिक्री
समझौते के मुताबिक, फरवरी 2026 से प्राडा के शोरूम्स में कोल्हापुरी चप्पलों की बिक्री शुरू हो जाएगी। दुनिया भर में मौजूद प्राडा के 40 Stores और Online प्लेटफॉर्म पर इन चप्पलों को बेचा जाएगा। शुरुआती दौर में प्राडा ने 2000 जोड़ी चप्पलों का ऑर्डर दिया है, जिन्हें महाराष्ट्र और कर्नाटक के कारीगर अपने हाथों से तैयार करेंगे।
कारीगरों को मिलेगी ट्रेनिंग
इस Partnership का एक बड़ा फायदा स्थानीय कारीगरों को भी मिलेगा। प्राडा की तरफ से कारीगरों को पारंपरिक तरीके के साथ-साथ नई Technology का इस्तेमाल करने की Training भी दी जाएगी। हालांकि, इस खुशी के बीच कारीगरों के मन में कुछ सवाल भी हैं। उन्हें अभी यह स्पष्ट नहीं है कि Material क्या इस्तेमाल करना होगा और Design में क्या बदलाव होंगे, ताकि उन्हें इस डील का सीधा फायदा मिल सके।
विवाद से शुरू हुई कहानी
यह बड़ा समझौता अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे एक विवाद की कहानी है। जून 2025 में प्राडा के एक Ramp Walk के दौरान Models जो चप्पलें पहने नजर आए थे, वे हूबहू कोल्हापुरी चप्पल जैसी दिख रही थीं। उस समय प्राडा के Collection में इसकी कीमत 1200 रुपये रखी गई थी और इसे केवल ‘लेदर फुटवियर’ बताया गया था। कंपनी ने कोल्हापुरी डिजाइन और इसके सांस्कृतिक महत्व का कोई जिक्र नहीं किया था।
कंपनी को माननी पड़ी गलती
जब प्राडा पर ‘सांस्कृतिक अपहरण’ (Cultural Appropriation) के आरोप लगे और विवाद बढ़ा, तो कंपनी ने माना कि इस Design की जड़ें भारत में हैं। इसके बाद प्राडा की एक Team ने कोल्हापुर का दौरा किया और उन कारीगरों व दुकानदारों से मुलाकात की जो असल में यह चप्पल बनाते हैं। इसी के बाद यह आधिकारिक समझौता हुआ।
इतिहास और बनाने का तरीका
कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास 12वीं और 13वीं शताब्दी से जुड़ा है, जब राजा बिजल और मंत्री बसवन्ना का शासन था। 100% हाथ से बनने वाली इस चप्पल में किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। इसके चमड़े को 3 से 6 हफ्तों तक प्राकृतिक तरीके से सब्जी के रंगों से तैयार (Treat) किया जाता है। एक जोड़ी बनाने में 3 से 15 दिन लगते हैं। इसकी खासियत यह है कि यह गर्मी सोख लेती है और पैरों को ठंडक देती है। इसे जुलाई 2019 में GI Tag भी मिल चुका है।
जानें पूरा मामला
यह पूरा घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब एक विदेशी ब्रांड ने भारत की विरासत को अपना बताकर बेचने की कोशिश की। विवाद के बाद, इटली-इंडिया Business Forum 2025 में एक MOU साइन किया गया। अब लक्ष्य रखा गया है कि कोल्हापुरी चप्पल का Export एक अरब डॉलर तक पहुंचाया जाए। यह समझौता न केवल फैशन की दुनिया में कारीगरों की कला की सुरक्षा का उदाहरण है, बल्कि इससे भारतीय शिल्प को Global Brand के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
मुख्य बातें (Key Points)
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Launch Date: फरवरी 2026 से दुनिया भर के 40 प्राडा स्टोर्स में कोल्हापुरी चप्पलें बिकेंगी।
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Price Hike: भारत में 1500 रुपये की चप्पल प्राडा के शोरूम में 80-85 हजार रुपये में मिलेगी।
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Origin: विवाद के बाद प्राडा ने माना कि डिजाइन का मूल भारत में है और 2000 जोड़ियों का ऑर्डर दिया।
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Process: ये चप्पलें 100% हैंडमेड हैं और इन्हें बनाने में प्राकृतिक रंगों और तरीकों का इस्तेमाल होता है।






