कांवड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है: सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान शिवभक्त कांवड़ यात्रा के लिए जाते हैं। इस यात्रा के कई प्रकार होते हैं और प्रत्येक के लिए विशेष नियम होते हैं।
कांवड़ यात्रा की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था। विष के प्रभाव को समाप्त करने के लिए रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसके अलावा, रामायण के अनुसार, भगवान राम ने भी कांवड़िया बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
देश भर के विभिन्न हिस्सों से शिव मंदिरों तक कांवड़ यात्रा करने वाले श्रद्धालु अलग-अलग तरीकों से कांवड़ लेकर जाते हैं। हर प्रकार की कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व और नियम होते हैं।
साधारण कांवड़ (Simple Kanwar):
सामान्य कांवड़ यात्रा में कांवड़िए दो बर्तनों में गंगाजल भरकर एक बांस की छड़ी पर लटकाते हैं। इसे अपने कंधे पर रखकर पैदल चलते हैं और यात्रा के दौरान जल को संतुलित रखना आवश्यक होता है।
डांक कांवड़ (Dank Kanwar):
डांक कांवड़ तेजी से पूरी की जाने वाली यात्रा होती है। इसमें कांवड़िए बिना रुके तेजी से चलते हैं और निर्धारित समय में अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। इसमें विश्राम और गंगाजल का जमीन पर गिरना वर्जित होता है।
खड़ी कांवड़ (Khadi Kanwar):
कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर यात्रा करते हैं, जो संकेत करती है कि वे अपने पैरों पर खड़े होकर शिव की पूजा के लिए तत्पर हैं। यह यात्रा शारीरिक और मानसिक संयम को विकसित करने का एक तरीका है।
दांडी कांवड़ (Dandi Kanwar):
दांडी कांवड़ यात्रा में भक्त नदी तट से शिव धाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। यह कठिन यात्रा होती है, जिसमें कई दिन और कभी-कभी एक माह का समय लग जाता है।
सफेद कांवड़ (Safed Kanwar):
यह कांवड़ विशेष भक्तों द्वारा प्रयास की जाती है, जिसमें साधारण लंबे लकड़ी के डंडे का उपयोग होता है और इसे सफेद वस्त्र में बांधा जाता है।
पालकी कांवड़ (Palki Kanwar):
इस प्रकार की कांवड़ में एक पालकी उठाई जाती है, जिसमें गंगा जल रखा जाता है। यह भक्त द्वारा परिक्रमा करते समय उठाई जाती है।
कांवड़ यात्रा का अनवरत क्रम
देवघर स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम के पांडा के अनुसार, कांवड़ यात्रा 365 दिन चलती है और कभी समाप्त नहीं होती। सावन में रक्षाबंधन तक देवघर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है, लेकिन कांवड़ यात्रा वर्षभर अनवरत चलती है।
कांवड़ यात्रा का महत्व और उसके नियमों का पालन करते हुए भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं और पवित्र गंगाजल से उनका अभिषेक करते हैं।
सावन महीने की शुरुआत हो गई है, साथ ही कांवड़ यात्रा भी। हर साल की तरह इस बार भी उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में कांवड़ यात्रा के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सावन का समापन 19 अगस्त को होगा। इस समय में स्वास्थ्य और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। मानसून में बीमारियां या बैक्टीरियल इंफेक्शन आम बात है, लेकिन इम्यूनिटी को मजबूत कर हम खुद को स्वस्थ रख सकते हैं और इम्यूनिटी के लिए सबसे बेस्ट ऑप्शन है 40 से भी ज्यादा हर्ब्स वाला डाबर च्यवनप्राश।