Women Reservation Bill 2023 : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जज बीवी नागरत्ना (BV Nagarathna) ने शुक्रवार को लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यों की विधानसभाओं (State Assemblies) में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को जल्द से जल्द लागू करने की जोरदार वकालत की। जस्टिस नागरत्ना ने आशा जताई कि यह ऐतिहासिक कदम उनके जीवनकाल में ही साकार होगा और यह दिन भारत के संविधान निर्माताओं (Constitution Makers) द्वारा देखे गए वास्तविक समानता के सपने की पूर्णता का प्रतीक बनेगा। उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण लागू होना एक आदर्श लक्ष्य की सिद्धि होगी, जिसे हमारे संविधान ने प्रारंभ से ही महत्व दिया है।
भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की तैयारी
जस्टिस बीवी नागरत्ना (BV Nagarathna) सितंबर 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) बनने जा रही हैं। शुक्रवार को वह वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी (Mahalakshmi Pavani) द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘Women Laws – From the Womb to the Tomb’ के विमोचन कार्यक्रम में बोल रही थीं। इसी मौके पर उन्होंने महिला आरक्षण (Women Reservation) को लेकर अपने विचार व्यक्त किए।
महिलाएं हक वापस ले रही हैं, जगह नहीं छीन रही हैं
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महिलाएं पुरुषों की जगह नहीं ले रही हैं, बल्कि वह हक वापस ले रही हैं जो पितृसत्तात्मक सोच और भेदभाव ने उनसे छीन लिया था। उन्होंने कहा कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 (Nari Shakti Vandan Act, 2023) के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। यह कानून महिलाओं द्वारा सदियों से चली आ रही समानता की लड़ाई की परिणति है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हम पुरुष विरोधी नहीं हैं, बल्कि महिला समर्थक हैं।
कानून आयोग से किया खास अनुरोध
कार्यक्रम के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने हाल ही में कानून आयोग (Law Commission) के अध्यक्ष नियुक्त हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज डी. एन. महेश्वरी (D.N. Maheshwari) से विशेष अनुरोध किया। उन्होंने अपील की कि कानून आयोग महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करने वाले सभी कानूनों का गहन अध्ययन करे और केंद्र सरकार (Central Government) को ऐसे सभी भेदभावपूर्ण कानूनों में संशोधन करने की सिफारिश करे।
समानता केवल शब्दों में नहीं, व्यवहार में भी दिखे
जस्टिस नागरत्ना ने जोर दिया कि संविधान (Constitution) में समानता का अधिकार केवल कागजों पर नहीं रहना चाहिए, बल्कि व्यवहारिक रूप में भी लागू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की आधी आबादी को समान अवसर और प्रतिनिधित्व मिलना अब वक्त की मांग है। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि महिलाओं को उनकी सही हिस्सेदारी दी जाए, ताकि वे सार्वजनिक जीवन में अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभा सकें।