यह ख़बर फैलते ही लोगों का हुजूम नदी के तट की ओर भागा, जहाँ भव्य मंदिर में झूलेलाल सोने के रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान थे, उनके एक हाथ में धर्म ध्वज शोभायमान था और दूसरे हाथ में भगवत गीता थी जिसे वह पढ़ रहे थे। लोगों की भीड़ सामने देख कर झूलेलाल ने अग्नि देव और पवन देव को आदेश दिया कि वह जा कर आक्रांता मिरक शाह के साम्राज्य को ध्वस्त कर दे।
इसके बाद पवन देव और अग्निदेव का तांडव शुरू हुआ, यह सब देख मिरक शाह अपने अनुयायियों सहित रोता बिलखता रहम की भीख मांगता हुआ झूलेलाल के दरबार में पहुंचा, भगवान नें जब उसके पछतावे के आंसू देखे तब उन्होंने उसे क्षमा कर दिया। और अग्नि देव और पवन देव को शांत हो कर लौट आने को कहा। अब मिरक शाह हिन्दू मुस्लिम जातिवाद से ऊपर उठ कर इंसानियत के मूल्यों को समझ चुका था। फिर कभी उसमें अपने राज्य में निर्दोष प्रजा पर अत्याचार नहीं किया।
झूलेलाल की पूजा कैसे करें
इस पावन दिवस पर सुबह जल्द उठने की परंपरा है। इसके बाद सभी भक्त किसी नदी, या तालाब पर एकत्र हो जाते हैं। फिर सब विधि विधान से भगवान झूलेलाल की आराधना करते हैं। अनुष्ठान के उपरांत पूजा सामग्री जल में प्रवाहित कर के भक्तजन अपने सुख समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। इसके उपरांत जलीय जीवों को चारा खिलाया जाता हैं, फिर लोगों में मीठे नमकीन चने, शरबत और मीठे भात का प्रसाद बांटा जाता है। फिर भगवान झूलेलाल के शांति और सद्भावना संदेश का प्रचार किया जाता है और उनकी कथाएं सुनाई जाती है और यात्रा भी निकाली जाती है।
झूलेलाल जयंती कैसे मनाते हैं
यह सिंधी समुदाय का सब से पवित्र और महान पर्व माना जाता है। वर्ष 2023 में यह 22 मार्च के दिन मनाया गया। यह पर्व चेटीचंड के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पहली बार पूर्ण चंद्र दर्शन होता है।
चेटीचंड के मौके पर सिंधी समाज में शिशुओं का मंदिरों में मुंडन भी कराया जाता है। पूजन के दौरान सभी सिंधी समाज के लोग ‘’चेटीचंड जूं लख-लख वाधायूं’’ का जय घोष करते हैं।
प्रथा
इस दिवस पर भारतीय लोग गुड़ी पड़वा, तथा उगदी भी मनाते हैं। इस दिन सार्वजानिक मंदिरों और देवस्थानों पर पूजा पाठ होता है, इसके बाद जुलुस निकलते हैं और कई तरह के सुगम सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
प्रसाद
इस पर्व पर मीठी भात और काले उबले चने का प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है।
चलिहो उर्फ़ चालिहो
यह सिंधी पर्व जुलाई या अगस्त में सिंधी समुदाय द्वारा मनाया जाता है, यह पर्व पुरे 40 दिन तक चलता है, जिसमें साधक अपने आराध्य झूलेलाल का आभार प्रगट करते हैं।
भगवान झूलेलाल के संदेश
प्रभु झूलेलाल ने कहा है कि ईश्वर अल्लाह एक है, इन्सान को छूत अछूत, धर्मांतरण, ऊंच नीच, भेदभाव और घृणा छोड़ कर अपने दिलों में एकता, भाईचारा, मेल मिलाप, सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता का दीप जलाना चाहिए।
उन्होंने श्रुष्टि के सभी मनुष्यों को एक परिवार की तरह रहने का संदेश दिया, ताकि समृद्धि के द्वार खुलें और खुशहाली बनी रहे।

झूलेलाल जीवनी ( FAQs )
Q – झूलेलाल का जन्म कब हुआ था ? उनका असल नाम क्या है?
A – चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 के दिन नसरपुर में माँ देवकी और पिता रतनराय के घर में चमत्कारी बालक ने जन्म लिया जिसका नाम “उदयचंद” रखा गया था।
Q- झूलेलाल की जयंती कब है? इसे किस उत्सव के नाम स्व जाना जाता है?
A- उनकी जयंती 22 मार्च 2023 को है और सिंधी समाज में इसे चेटीचंड उत्सव कहा जाता है।
Q – 11वीं सदी में सिंध इलाके का बादशाह कौन था, उसका आचरण कैसा था?
A- उस समयकाल में वहां मिरक शाह नाम का राज था, वह हिन्दू विरोधी अत्याचारी और प्रजा में अप्रिय राजा था।
Q- झूलेलाल के उपनाम क्या क्या है?
A- उन्हें लालसांई, उदेरो लाल, जिन्दा पीर, घोड़ेवारो, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल के नाम से जाना जाता है।
Q- झूलेलाल के माता-पिता का नाम क्या है?
A- उनके पिता का नाम रतनराय और माता का नाम देवकी जी है।
Q – झूलेलाल को कैसे जानाजाता है? वह किस धर्म से थे?
A- वह हिन्दू धर्म से थे और उन्हें एक संत और भगवान के तौर पर पूजा जाता है।
Q – झूलेलाल कहाँ हुए? उनके गुरु का नाम क्या है?
A- वह ठठा नगर, नसरपुर, सिंध प्रांत (अखंड भारत के समय) में जन्मे और उनके गुरु जल देवता है।
Q – झूलेलाल का वंश क्या है?
A- वह अरोड़वंशी माने जाते हैं।
Q – झूलेलाल को कौनसा समुदाय मानता है?
A – झूलेलाल को हिन्दू संत कहते हैं, मुस्लिम फकीर बुलाते हैं, लेकिन सिंधी इन्हें अपने इष्टदेव बताते हैं, और वह इन्हें हर भगवान से बड़ा मानते हैं।
Q – झूलेलाल को किस देवता का अवतार माना जाता है?
A – झूलेलाल को वरुण देव का अवतार माना जाता है।
Q- झूलेलाल ने किस जीव पर सवार हो कर सिंध निवासियों को दर्शन दिया?
A- वरुणदेव (उदेरोलाल / झूलेलाल) ने जलपति के रूप में मछली पर सवार होकर सिंध के लोगों को दर्शन दिया।
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