नई दिल्ली, 10 अगस्त (The News Air)
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंगलवार को राजनीति के अपराधीकरण से जुड़े एक मामले में फ़ैसला सुनाया गया। चुनाव में अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फ़ैसला देते हुए आदेश दिया है कि राजनीतिक दल, चयन के 48 घंटों के भीतर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को जनता को सूचित करें। साथ ही दलों को चुनाव के लिए चयनित उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास प्रकाशित करना होगा। SC ने इस संबंध में अपने 13 फरवरी, 2020 के फ़ैसले को संशोधित किया।
दरअसल, फरवरी 2020 के फ़ैसले के पैराग्राफ 4.4 में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि उम्मीदवार के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारिख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, उसका आपराधिक इतिहास प्रकाशित किया जाएगा।लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने उक्त फ़ैसले के पैरा 4.4 में सुधार किया है और चयन को 48 घंटे के भीतर इसे प्रकाशित किया जाएगा इसके अलावा बेंच ने कुछ अतिरिक्त निर्देश भी पारित किए हैं।
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने ये फ़ैसला दिया। बेंच ने कहा कि हमने पुराने फ़ैसले के अलावा कुछ और दिशानिर्देश जारी किए हैं। अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह निलंबित हो सकता है? क्या चुनाव आयोग ऐसी राजनीतिक पार्टी का चिन्ह निलंबित कर सकता है? अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया है।सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2020 के आदेश में बिहार के चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के लिए व्यापक प्रकाशन का निर्देश दिया था। इन निर्देशों का
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली राष्ट्रीय पार्टी के ख़िलाफ़ उल्लंघन के मद्देनज़र पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज या निलंबित रखा जाए। आयोग ने यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन के मामले में दिया है। माकपा की ओर से वकील ने बिना शर्त माफ़ी मांगते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। हमारा भी विचार है कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने सीपीएम के वकील से कहा कि माफ़ी से काम नहीं चलेगा। हमारे आदेशों का पालन करना होगा।
वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वकील ने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए बिना शर्त माफ़ी माँगी। चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि एनसीपी ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 26 उम्मीदवारों को और माकपा ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। बहुजन समाज पार्टी की ओर से वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि बसपा ने एक उम्मीदवार को निष्कासित कर दिया, जब पार्टी को पता चला कि वह अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा करने में विफल रहा है और एक झूठा हलफ़नामा दायर किया है।माकपा की ओर से वकील ने बिना शर्त माफ़ी मांगते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। हमारा भी विचार है कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं होना चाहिए।
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