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ISRO BlueBird Mission : 6100 किलो का सैटेलाइट लॉन्च, दुनिया हैरान क्यों? समझिए

रूस ने किया था इनकार, भारत ने रचा इतिहास - अमेरिकी कंपनी का सबसे भारी सैटेलाइट LVM3 से लॉन्च, अब बिना टावर के मोबाइल से सीधे होगी सैटेलाइट कनेक्टिविटी

The News Air Team by The News Air Team
बुधवार, 24 दिसम्बर 2025
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ISRO BlueBird Mission
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ISRO LVM3 BlueBird Block-2 Launch: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार सुबह 8:54 बजे श्रीहरिकोटा से अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3-M6) के जरिए अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile के नेक्स्ट जनरेशन कम्युनिकेशन सैटेलाइट ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में सफलतापूर्वक स्थापित करके इतिहास रच दिया है। 6100 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट अब तक का सबसे भारी पेलोड है जिसे इसरो ने ऑर्बिट में भेजा है और इस सफलता के बाद पूरा इसरो दफ्तर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा जबकि दुनियाभर के कई देशों की निगाहें इस लॉन्चिंग पर टिकी हुई थीं।

रूस ने किया इनकार, भारत ने मारी बाजी

इस मिशन के पीछे एक बड़ी कहानी है जो भारत की अंतरिक्ष शक्ति को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। दरअसल पहले इस सैटेलाइट की लॉन्चिंग रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के लांचर एरियन-5 से होनी थी। लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने इसके लिए साफ इनकार कर दिया था और ESA का एरियन-5 भी काम से बाहर हो गया था। ऐसे में भारत को इसलिए चुना गया क्योंकि इसरो की लागत दुनिया में सबसे कम है और हम सस्ते में दुनिया को यह सुविधा प्रदान कर सकते हैं।

क्या है ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट?

ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 न्यू जनरेशन के सैटेलाइट का हिस्सा है जो स्पेस बेस्ड सेल्युलर ब्रॉडबैंड सेवाएं देता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह बिना किसी खास डिवाइस के सीधे रेगुलर मोबाइल और स्मार्टफोन से कनेक्टिविटी देता है। इसका मतलब है कि पुराने कम्युनिकेशन सैटेलाइट जो डाटा को आगे भेजने से पहले स्पेशलाइज ग्राउंड स्टेशनों पर भेजते थे उनसे बिल्कुल अलग यह सैटेलाइट सीधे हमारे इस्तेमाल किए जाने वाले फोन से कम्युनिकेट कर पाएगा।

बिना टावर के मोबाइल से होगी सैटेलाइट कनेक्टिविटी

आसान भाषा में समझें तो अभी जो कम्युनिकेशन होता है उसमें मोबाइल पहले टावर से कनेक्ट होता है और टावर सैटेलाइट से जुड़ता है। लेकिन इस नई तकनीक में बीच का मीडिएटर यानी टावर नहीं रहेगा। बिना टावर के मोबाइल फोन से डाटा, वॉइस कॉलिंग यह सब सीधे सैटेलाइट के जरिए हो पाएगा। इसरो ने बताया कि यह कॉन्स्टेलेशन सभी के लिए हर जगह हर वक्त 4G और 5G वॉइस और वीडियो कॉल, टेक्स्ट, स्ट्रीमिंग और डाटा प्रदान करेगा।

LVM3 की छठी ऑपरेशनल उड़ान

यह मिशन LVM3 रॉकेट की छठी ऑपरेशनल उड़ान है जो कमर्शियल स्पेस लॉन्च में भारत की बढ़ती भूमिका को दिखाता है। LVM3 इसरो का हैवी मूवर है जिसके तीन स्टेज हैं। पहले में दो सॉलिड बूस्टर S200 हैं, दूसरे में एक लिक्विड कोर स्टेज L111 है और तीसरे में क्रायोजेनिक अपर स्टेज C25 है। इसी रॉकेट ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे बड़े मिशन के साथ-साथ दो वनवेब मिशन भी पूरे किए हैं जिसमें 72 सैटेलाइट तैनात किए गए थे।

टेक ऑफ के 15 मिनट बाद ऑर्बिट में स्थापित

टेक ऑफ के ठीक 15 मिनट बाद इस सैटेलाइट को लगभग 520 किलोमीटर के ऑर्बिट में स्थापित किया गया। लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) पृथ्वी की सतह के सबसे करीब की ऑर्बिट है जो आमतौर पर 1000 किलोमीटर से कम ऊंचाई पर होती है। यह लो अर्थ ऑर्बिट में स्थापित किया जाने वाला सबसे बड़ा कमर्शियल कम्युनिकेशन सैटेलाइट है और भारतीय क्षेत्र से LVM3 द्वारा लांच किया गया सबसे भारी पेलोड भी है।

दो LVM3 लॉन्च के बीच सबसे कम गैप

यह लॉन्चिंग 2 नवंबर को LVM3 रॉकेट द्वारा CMS-03 कम्युनिकेशन सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करने के कुछ ही हफ्ते बाद की गई है। यह दो LVM3 लॉन्च के बीच का सबसे कम गैप है और यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी की अपने भारी मिशनों को तेजी से संभालने की क्षमता का भी एक टेस्ट है। 2023 के बाद यह दूसरी बार हुआ है जब इतनी जल्दी दो LVM3 की लॉन्चिंग की गई हो।

पिछले रिकॉर्ड को तोड़ा

अब तक इसरो द्वारा ले जाया गया सबसे भारी पेलोड वनवेब सैटेलाइट का सेट था जिसका कुल वजन 5700 किलोग्राम से ज्यादा था और जिसे LEO में भेजा गया था। पिछले महीने इसी व्हीकल का इस्तेमाल करके CMS-03 की लॉन्च के साथ जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में रखे गए सबसे भारी सैटेलाइट का रिकॉर्ड भी तोड़ा गया जिस सैटेलाइट का वजन 4410 किलोग्राम था।

मार्केट में कौन है प्रतिस्पर्धी?

ऐसा नहीं है कि मार्केट में LVM3 के अलावा कोई भारी लांचर नहीं है। दूसरे ऑप्शन में SpaceX का Falcon 9 और ESA का Ariane 6 भी है। लेकिन आज की लॉन्चिंग इसरो के लिए यह दिखाने का मौका थी कि वह ऐसी भारी लॉन्चिंग को भी कम से कम लागत पर कर सकता है। यह मिशन तीसरी बार है जब LVM3 का इस्तेमाल किसी सैटेलाइट को LEO में ले जाने के लिए किया गया है।

गगनयान मिशन में भी होगा इस्तेमाल

LVM3 रॉकेट के एक मॉडिफाइड वर्जन का इस्तेमाल गगनयान मिशन में भी किया जाएगा। पावरफुल क्रायोजेनिक इंजन आधारित इस व्हीकल को शुरू में सैटेलाइट को पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किलोमीटर दूर जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट में ले जाने के लिए डिजाइन किया गया था।

इसरो कर रहा है रॉकेट की क्षमता बढ़ाने का काम

व्हीकल की लिफ्ट ऑफ क्षमता बढ़ाने के लिए इसरो रॉकेट के तीसरे या क्रायोजेनिक अपर स्टेज द्वारा उत्पन्न थ्रस्ट को बढ़ाने पर भी काम कर रहा है। यह स्टेज सैटेलाइट्स को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में रखने के लिए जरूरी वेलोसिटी का लगभग 50% हिस्सा होता है।

C25 स्टेज जो अभी लॉन्च व्हीकल में इस्तेमाल हो रहा है वह केवल 28,000 किलोग्राम प्रोपेलेंट ले जा सकता है जिससे 20 टन का थ्रस्ट पैदा होता है। नया C32 स्टेज 32,000 किलोग्राम ईंधन ले जाने में सक्षम होगा और 22 टन का थ्रस्ट पैदा करेगा।

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सेमी क्रायोजेनिक इंजन की योजना

एजेंसी रॉकेट के दूसरे स्टेज में इस्तेमाल होने वाले लिक्विड प्रोपेलेंट को बदलने के लिए सेमी क्रायोजेनिक इंजन के इस्तेमाल पर भी विचार कर रही है। एक क्रायोजेनिक इंजन बहुत कम तापमान पर लिक्विफाइड गैसों का इस्तेमाल ईंधन के रूप में करता है जैसे लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन। जबकि सेमी क्रायोजेनिक इंजन में एक लिक्विफाइड गैस और एक लिक्विड प्रोपेलेंट का इस्तेमाल होता है।

इसरो एक रिफाइंड केरोसिन और लिक्विड ऑक्सीजन आधारित दूसरे स्टेज का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है जिससे व्हीकल की क्षमता में सुधार होगा और यह किफायती भी होगा। इंजन बदलने से व्हीकल मौजूदा 8,000 किलोग्राम की बजाय LEO में लगभग 10,000 किलोग्राम ले जाने में सक्षम हो जाएगा। इस वर्जन का इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए मॉड्यूल ले जाने के लिए भी किया जा सकता है।

बूट स्ट्रैप रीइग्निशन पर काम जारी

स्पेस एजेंसी क्रायोजेनिक इंजन के लिए बूट स्ट्रैप रीइग्निशन पर भी काम कर रही है जिससे लॉन्च व्हीकल उन मिशनों के लिए ज्यादा कुशल हो जाएगा जहां सैटेलाइट को अलग-अलग ऑर्बिट में रखना होता है। बूट स्ट्रैप रीइग्निशन से ऊपरी स्टेज क्रायोजेनिक इंजन बिना किसी बाहरी गैस जैसे हीलियम के अपने आप रिस्टार्ट हो जाएगा। इस मोड से ईंधन का वजन कम होगा और पेलोड ले जाने की क्षमता भी बढ़ेगी।

भारत की स्पेस पावर को मिली वैश्विक पहचान

आज इसरो की इस लॉन्चिंग ने पूरी दुनिया में तालियां बटोरी हैं। इतने कम लागत पर इसरो को पूरी दुनिया में सबसे कम बजट पर अपने मिशन को सफल करने के लिए जाना जाता है। आज अमेरिका की सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए भारत के इसरो ने जो इतिहास रचा है वह आने वाले वक्त में भारत को स्पेस पावर में सबसे बड़ा नाम दिलाने में अहम योगदान देगा।


मुख्य बातें (Key Points)
  • इसरो ने बुधवार सुबह 8:54 बजे LVM3-M6 से 6100 किलोग्राम वजनी ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया जो अब तक का सबसे भारी पेलोड है
  • यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने इनकार किया था और ESA का एरियन-5 बंद होने के बाद भारत को चुना गया क्योंकि इसरो की लागत दुनिया में सबसे कम है
  • यह सैटेलाइट बिना टावर के सीधे मोबाइल फोन से कनेक्ट होकर 4G-5G वॉइस कॉल, वीडियो कॉल और डाटा सेवाएं देगा
  • इसरो LVM3 की क्षमता 8000 किलोग्राम से बढ़ाकर 10000 किलोग्राम करने पर काम कर रहा है जिसका इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में भी होगा
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1: ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट क्या है और यह क्या करेगा?

उत्तर: ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile का नेक्स्ट जनरेशन कम्युनिकेशन सैटेलाइट है जो बिना किसी टावर के सीधे आपके मोबाइल फोन से कनेक्ट होकर 4G-5G वॉइस कॉल, वीडियो कॉल, टेक्स्ट और डाटा सेवाएं प्रदान करेगा।

प्रश्न 2: इस मिशन के लिए भारत को क्यों चुना गया?

उत्तर: यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने इनकार कर दिया था और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एरियन-5 लांचर बंद हो गया था। भारत को इसलिए चुना गया क्योंकि इसरो दुनिया में सबसे कम लागत पर स्पेस लॉन्च सेवाएं प्रदान करता है।

प्रश्न 3: LVM3 रॉकेट की क्षमता कितनी है?

उत्तर: वर्तमान में LVM3 LEO में 8000 किलोग्राम तक पेलोड ले जा सकता है। इसरो इसे अपग्रेड करके 10000 किलोग्राम क्षमता तक बढ़ाने पर काम कर रहा है। आज की लॉन्चिंग में 6100 किलोग्राम का सबसे भारी पेलोड भेजा गया।

प्रश्न 4: यह सैटेलाइट कितनी ऊंचाई पर स्थापित किया गया?

उत्तर: ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में लगभग 520 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया है जो पृथ्वी की सतह के सबसे करीब की ऑर्बिट है।

प्रश्न 5: इस मिशन से आम लोगों को क्या फायदा होगा?

उत्तर: इस सैटेलाइट की मदद से दूरदराज के इलाकों में भी जहां मोबाइल टावर नहीं हैं वहां सीधे सैटेलाइट से मोबाइल कनेक्टिविटी मिल सकेगी और 4G-5G सेवाएं उपलब्ध होंगी।

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